राजनीति और जनता का प्रत्यक्ष मिलन अब मात्र चुनावी हल-चल के वक़्त दिखता है, जब उसके प्रत्याशी जनता रूपी मत को अपना भगवान और उसके साथ तमाम वे रिश्ते- नाते रचने की कोशिश करती है, जिसके जोड़ का धागा बहुत ही नाज़ुक होता है, और उसको बनाया भी इसलिए जाता है, कि क्षणिक उपयोग ह