अरकान-फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन, वज़्न- १२२-१२२-१२२-१२२ काफ़िया का स्वर- आ, रदीफ़- हो रहा है, “गज़ल” फ़साना दिलों पर खफा हो रहा है ठिकाना घरों पर फिदा हो रहा है निशाने कहीं है कहीं है निगाहें शिकारी वही जो जवां हो रहा है॥ तराने सुना कर गई तुम जहाँ से मसला वहीं पर अदा