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कवित्ता

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बुलाता है वो अपना पास पर ना आग बाकी हैमधुरता खो गई गीतों में अब ना राग बाकी हैतपते जेठ की गर्मी में वो सावन की उम्मीदेंकहाँ झूलेंगी ये सखियां कोई ना बाग़ बाकी हैघाव तो भर गया लेकिन उन्हें समझाऊं मैं कैसेसदा आँखों में चुभता है वो अब तक दाग बाकी हैबसंती रिश्तों के रंग अब यहाँ मन को नहीं रंगतेकहने को त

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