“गीतिका” कभी कभी जब मन को भाता, खो जाता हूँ बचपन में यदा कदा वह मिलने जब आता, जी लेता हूँ तनमन में उठा पटक वो छल ना जाने, जो करता था मनमानी अभी दिखा पर मिल न सका वो, डूब गया है अनबन में॥ बड़ी बड़ी इन दीवारों में, शायद उसका हिस्सा हो मिला सका ना नैन नैन से, छिद्र छु