हमेशा की तरह आज भी मे लेट हो गई थी... क्युकी शाम की थकान सुबह इंसान को आलसी बना देती है। और वो एक नींद सुकून की चाहता है,जिसमे उसे कोई बाधित ना करे। पर यह महज़ एक ख़्वाब था, आज ऑफिस में बहुत काम है , मुझे ऑफिस जाना ही पड़ेगा । बहुत मुश्किल से मेने उठने का प्रयास किया मानो मेरी आत्मा मेरी शरीर का साथ ही नही दे पा रही है। मेने बंद आखों से घड़ी को टटोला और वक्त देखने के लिए आंखे खोली तो आंखे बंद ही ना कर सकी। ओह में लेट हो गई हूं.... कहती हुई तेजी से स्नान घर की और दौडी। दैनिक कार्यों से पूरी हो तैयार हो तेजी से कमरे से बाहर निकली। एक नज़र लगातार घड़ी की सुई पर थी। मां में जा रही हूं बहुत लेट हो गई हूं। नाश्ता ऑफिस में ही कर लूंगी..... मां कुछ कहती उससे पहले ही मैने उन्हे एक झप्पी दी और कहा मेरी चिंता मत करो...तुम खाना खा लेना। और मै दरवाजे की और दौड़ी। अब यही उम्मीद थी की बस जल्दी से कोई ऑटो मिल जाय। पर आज किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। दूर दूर तक ऑटो का कोई नामो निशान नहीं था। मेरा चेहरा गुस्से से लाल पीला हुआ जा रहा था। एक नज़र घड़ी की सुई और एक रास्ते के उस छोर तक थी जहा तक में कोई ऑटो रिक्शा देख सकती हूं। जैसे जैसे वक्त निकल रहा था डर बड़ता जा रहा था आज नोकरी हाथ से ना निकल जाए। तभी एक ऑटो वहा आकर रुका उसमे से एक बुजुर्ग सा व्यक्ति बाहर निकला, जिसकी स्थितिबहुत ही दयनीय थी। उसके कपड़े फटे हुऐ थे, आंखे अंदर की और धसी हुई थी , उसका शरीर ऐसा लग रहा था मानो किसी कंकाल पर कपड़े लपेट दिए हो। बहुत ही मधुर आवाज में बोले कहा जाओगी बिटिया.... उनकी आवाज़ ने मेरा ध्यान आकर्षित किया स्टेशन ले चलो बाऊजी कहती हुई में बैठी। थोड़ा जल्दी चलिएगा में बहुत लेट हो गईं हूं। आज दूर दूर तक ऑटो वाले नही दिख रहें है। उन्होंने मुस्कुराते हुए ऑटो चलाना शुरू किया ।बैठ तो गई पर उनकी हालत देख मन में डर था ये सही सलामत पहुंचा तो देगे। मेने घड़ी देखी और बुदबुदाई अभी 8:15 हुए है 9 बजे की ट्रेन ले लूंगी। तभी ऑटो रुका मेने बाहर देखते हुए कहा क्या हुआ... ओह ये ट्राफिक जाम। आज तो मेरी नौकरी चली जायेगी।
मेरा चेहरा पीला पड़ गया था। मेरी हालत देख बोले क्यों परेशान हो बिटिया... मेने कोई जवाब नही दिया। वे फिर बोले परेशान न हों सब अच्छा होगा।
मेने अपना सिर हिला दिया। वे फिर बोले कितना कमा लेती हो बिटिया...
मेने फुसफुसाते हुए कहा यही लगभग अस्सी हजार। मेने पलटकर पूछा आप कितना कमा लेते है बाऊजी... उन्होने बड़े गर्व से कहा यही कोई चार सौ पांच सौ के आसपास। मेने आश्चर्य से पूछा आपका खर्चा चल जाता है... उन्होने बड़े ही गर्व से कहा... हा बिटिया में बहुत खुश हूं। में जितना कमाता हु मेरे घर का खर्च चल जाता है.. ऐसा नहीं है कि में और कमा नही सकता पर मुझे पैसो की जरूरत ही नही है। इन पैसो से में अपना और अपने परिवार का पेट भर लेता हु। जब में घर जाता हूं तो मेरा पूरा परिवार मेरी राह देखता रहता है, हम साथ में भोजन करते है। एक दूसरे से पूरे दिन का ब्योरा सुनते है। बाते करते है और साथ हस्ते है।जब में अपने परिवार को खुश देखता हु तो मेरी सारी थकान उतार जाती है । और मै महसूस करता हु कि में दुनिया का सबसे अमीर इंसान हु। मेरे पास चाहे पैसा ना हो पर दुख सुख बाटने के लिए मेरा परिवार है।बिटिया मेंरा मानना है कि मेरे पास बहुत पैसा होता तो मेरे बच्चे कही दूर रह रहे होते। हम तरस जाते उनकी एक झलक पाने को। हमारे पास जब मनोरंजन के कोई और साधन होते तो हम अपने परिवार को कही पीछे छोड़ देते। और अपनी खुशी कही और ढूंढने लगे। इसलिए मैं खुश किस्मत हु कि मेरे पास पैसा नहीं परिवार है....... जाम हट चुका था ऑटो फिर चलने लगा। उनकी बातो ने मुझे अंदर तक झंजोर दिया... मै सोचने लगी वो पल जब आखरी बार मेने अपने परिवार के साथ खाना खाया हो... पर दूर दूर तक मुझे ऐसी स्थिति याद नही आई। क्युकी हमे ऐसा मोका ही नही मिला पापा की नौकरी बाहर थी, और हमे अच्छी शिक्षा के लिए बाहर भेज दिया गया। और लौटे तो नोकरी लगाकर अब सुबह से शाम यही ऑफिस में गुजर जाती है। घर जाते इतना थक जाते है कि खाना खाते ही सो जाते है।। एक अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए अपनो से बहुत दूर निकल आए है।सच में पैसे तो बहुत है हमारे पास पर परिवार कही खो गया है । बार बार मेरे जहन में बस एक ही सवाल आ रहा था हम दोनो मे से " आख़िर गरीब कौन ........"