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जीवन के इस मंच पर, हम महज़ इक किरदार हैं.. मालिक तो कोई और ही है, हम तो बस किरायेदार हैं.. जीतना, हारना, रोना और फिर हंसना, यही दो चार ज़रूरी काम हैं.. वर्ना काग़ज़ के चन्द टुकड़ो मे, भला कहा
सब कुछ यहीं है, अनंत भी और शून्य भी. तुम्हे समझ तो आता होगा ना?? कर्म भी और फल भी, दर्द भी और हर्ष भी, मौन भी और पुकार भी, अहंकार का संहार भी.. तुम्हे पता तो होगा ना?? वो जो कल आया, आज नहीं