आप और हम जीवन के सच..…......बहन भाई का रिश्ता
रक्षाबंधन का त्यौहार पास आते ही मुझे सबसे ज्यादा मेरी छोटी सी गुड़िया की लिखी का इंतजार रहता हैं। बस मुरादाबाद वाली गुड़िया बुआ की राखी हर साल की तरह एक साधारण से लिफाफे में आयी थी। राखी आ गयी है । मम्मी ने पापा के लिए किचन में चाय चढ़ाते हुए आवाज लगायी थी। गुड़िया का लिफाफा दिखाना जरा,पापा गुड़िया बुआ की राखी का सबसे ज्यादा इन्तज़ार करते थे और सबसे पहले उन्हीं की भेजी राखी कलाई में बांधते थे। गुड़िया बुआ भाई बहन में सबसे छोटी थी पर एक वही थी जिसने विवाह के बाद से शायद कभी सुख नहीं देखा था। विवाह के तुरंत बाद व्यापार घाटा होने पर घर वा बेच दिया था। तबसे फ़ूफा जी की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. मामूली सी नौकरी कर थोड़ा बहुत कमाते थे। बेहद मुश्किल से बुआ घर चलाती थी। इकलौते बेटे कार्तिक को भी मोहल्ले के साधारण से स्कूल में डाल रखा था. बस एक उम्मीद सी लेकर बुआ जी किसी तरह जिये जा रहीं थीं। गुड़िया बुआ के भेजे लिफ़ाफ़े को देखकर पापा कुछ सोचने लगे थे। गायत्री इस बार रक्षाबंधन के दिन हम सब सुबह वाली पैसेंजर ट्रेन से गुड़िया के घर मुरादाबाद उसे बगैर बताए जाएंगे। गुड़िया दीदी के घर.मम्मी तो पापा की बात पर एकदम से चौंक गयी थी। आप को पता है न कि उनके घर मे कितनी तंगी है। हम तीन लोगों का नाश्ता-खाना भी गुड़िया दीदी के लिए कितना भारी हो जाएगा....वो कैसे सबकुछ मैनेज कर पाएगी । पर पापा की खामोशी बता रहीं थीं उन्होंने गुड़िया बुआ के घर जाने का मन बना लिया है और घर मे ये सब को पता था कि पापा के निश्चय को बदलना बेहद मुश्किल होता है। रक्षाबंधन के दिन सुबह वाली ट्रेन से हम सभी मुरादाबाद पहुँच गए थे। बुआ घर के बाहर बने बरामदे में लगी नल के नीचे कपड़े धो रहीं थीं। बुआ उम्र में सबसे छोटी थी पर तंग हालत और रोज की चिंता फिक्र ने उन्हें सबसे उम्रदराज बना दिया था। एकदम पतली दुबली कमजोर सी काया. इतनी कम उम्र में चेहरे की त्वचा पर सिलवटें साफ़ दिख रहीं थीं। बुआ की शादी का फोटो एल्बम मैंने कई बार देखा था. शादी में बुआ की खूबसूरती का कोई ज़वाब नहीं था. शादी के बाद के ग्यारह वर्षो की परेशानियों ने बुआ जी को कितना बदल दिया था। बेहद पुरानी घिसी सी साड़ी में बुआ को दूर से ही पापा मम्मी कुछ क्षण देखे जा रहे थे। पापा की आंखे डब डबा सी गयी थी । हम सब पर नजर पड़ते ही बुआ जी एकदम चौंक गयी थी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे और क्या करे। अपने बिखरे बालों को सम्भाले या अस्त व्यस्त पड़े घर को दुरुस्त करे.उसके घर तो बर्षों से कोई मेहमान नहीं आया था। वो तो जैसे जमाने पहले भूल चुकी थी कि मेहमानों को घर के अंदर आने को कैसे कहा जाता है। बुआ जी के बारे मे सब बताते है कि बचपन से उन्हें साफ सफ़ाई और सजने सँवरने का बेहद शौक रहा था। पर आज दिख रहा था कि अभाव और चिंता कैसे इंसान को अंदर से दीमक की तरह खा जाती है। अक्सर बुआ जी को छोटी मोटी जरुरतों के लिए कभी किसी के सामने तो कभी किसी के सामने हाथ फैलाना होता था। हालात ये हो गए थे कि ज्यादातर रिश्तेदार उनका फोन उठाना बंद कर चुके थे। एक बस पापा ही थे जो अपनी सीमित तनख्वाह के बावजूद कुछ न कुछ बुआ को दिया करते थे। पापा ने आगे बढ़कर सहम सी गयी अपनी बहन को गले से लगा लिया था। भैया भाभी आदित्य तुम सब अचानक आज ? सब ठीक है न बुआ ने कांपती सी आवाज में पूछा था। आज वर्षों बाद मन हुआ राखी में तुम्हारे घर आने का हम सब पापा ने बुआ को सहज करते हुए कहा था। भाभी आओ न अंदर मैं चाय नाश्ता लेकर आती हूं। गुड़िया बुआ ने मम्मी के हाथों को अपनी ठण्डी हथेलियों में लेते हुए कहा था। गुड़िया तुम बस बैठो मेरे पास और चाय नाश्ता गायत्री देख लेगी। हमने बुआ जी के घर जाते समय रास्ते मे रूककर बहुत सारी मिठाइयाँ और नमकीन ले गए थे। मम्मी किचन में जाकर सबके लिए प्लेट लगाने लगी थी। उधर बुआ कमरे में पुरानी फटी चादर बिछे खटिया पर अपने भैया के पास बैठी थीं । बुआ जी का बेटा कार्तिक दौड़ कर फ़ूफा जी को बुला लाया था. राखी बांधने का मुहूर्त शाम सात बजे तक का था.मम्मी अपनी ननद को लेकर मॉल चली गयी थी सबके लिए नए ड्रेसेस खरीदने और बुआ जी के घर के लिए किराने का सामान लेने के लिए शाम होते होते पूरे घर का हुलिया बदल गया था। नए पर्दे, बिस्तर पर नई चादर, रंग बिरंगे डोर मेट, और सारा परिवार नए ड्रेसेस पहनकर जंच रहा था। न जाने कितने सालों बाद आज गुड़िया बुआ की रसोई का भंडार घर लबालब भरा हुआ था। धीरे धीरे एक आत्म विश्वास सा लौटता दिख रहा था बुआ के चेहरे पर सच तो ये था कि उसे अभी भी सब कुछ स्वप्न सा लग रहा था। बुआ जी ने थाली में राखियाँ सज़ा ली थी। मिठाई का डब्बा रख लिया था जैसे ही पापा को तिलक करने लगी पापा ने बुआ को बचपन की यादें ताजा हो गई और पापा ने मुस्कुराते हुए कहा तो गुड़िया बुआ तो बस एकटक पापा और हमें परिवार को देखे जा रहीं थीं। कितना बड़ा सरप्राइस दिया था आज पापा ने बुआ को कि पापा को राखी बांधी। ऐसा रक्षाबन्धन शायद पहली बार मनाया था। हम सभी ने साथ-साथ एक बड़े रेस्त्रां में हम सभी ने डिनर किया। फिर गप्पे करते जाने कब काफी रात हो चुकी थी। अभी भी जया बुआ ज्यादा बोल नहीं रहीं थीं। वो तो बस बीच बीच में छलक आते अपने आंसू पोंछ लेती थी। बीच आंगन में ही सब चादर बिछा कर लेट गए थे। गुड़िया बुआ पापा से किसी छोटी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी।
मानो इस प्यार और दुलार का उसे वर्षों से इन्तेज़ार था।बातें करते करते अचानक पापा को बुआ का शरीर एकदम ठंडा सा लगा तो पापा घबरा गए थे। सारे लोग जाग गए पर गुड़िया बुआ हमेशा के लिए सो गयी थी। पापा की गोद में एक बच्ची की तरह लेटे लेटे वो विदा हो चुकी । पता नही कितने दिनों से बीमार थीं। और आज तक किसी से कही भी नही थीं। आज सबसे मिलने की आशा में जिन्दा थीं।
आप और हम जीवन के सच में यह तो एक रिश्ते भाई बहन की कल्पना कहानी है फिर भी हम सभी सच तो समझते हैं।और हम धन जो कि केवल और केवल धरती पर ही साथ रहता हैं। हम सभी बस अहम और छोटी बातों में एक दूसरे से मनमुटाव और मन से जिद कर लेते हैं। आओ हम जिद छोड़ कर रिश्ते नाते और अपनापन महसूस कर सकते हैं।
रक्षाबंधन पर्व मनाते हैं