सादर अभिवादन, 🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏🌷🙏 राधे-राधे,यशोदानंदन,सीता-राम,सिया राम की जय इन सब शब्दों मे कोई एक महत्वपूर्ण बात तो है।। गौरी-शिव,उमापति,लक्ष्मी-नारायण और राधे कृष्णा महोदय, मैने कोई ज्यादा नाम नही लिये,इन्हे मै उंगलियों मे गिन सकता हू और आप भी। अरे नही मैने तो केवल गिणती के केवल चार नाम लिये है। नही वह तो एक ही अद्वितीय व्यक्तित्व के चार अलग अलग परिस्तिथियों मे निभाए गये किरदारों के नाम है। वह आपके, मेरे और उन अनगिनत व्यक्तियो की श्रद्धा के पात्र है जिससे हम सभी को अपना जीवन सुखपूर्वक जीने का संबल मिलता है। कोई उनकी भक्ति करता है कोई उपासना कोई उनको भगवान ही कह देता है सीधा सीधा। समय समय पर वो हर किसी को कुछ ना कुछ देते रहते है कोई उसे किस रूप मे ग्रहण करता है उन पर निर्भर करता है। ऐसे कम ही लोग है जिन्हें उनका मर्गदर्शक किरदार जानने को मिलता है ऐसे लोग ज्यादा है जिन्हे भौतिक वस्तुओ की शुलभता की ही 'आकांक्षा' होती है किसी को मिल जाती है उनकी आवश्कता की पूर्ति,लेकिन ज्यादातर 'निराशा' ही रहती है उनके पास। वास्तविकता यह है कि आवश्कता अपना स्वरूप बढा लेती है और सारे सुखों का भक्षण करती है। "आकांक्षा" यह तो किसी बेटी बहन या माँ का नाम हो सकता है और है भी। "निराशा" भी तो हो सकता है किसी का नाम पर है नही क्यो ? यह सवाल अनुत्तरित नही है इसका जवाब छिपा हुआ है यही यह हर कोई जानता है। कि हर "आकाँक्षा" को "निराशा" मिलती है इसकी शुरुआत उसके जन्म से ही शुरु हो जाती है कभी वह आकांक्षा जान जाती है पर चुप रहती है कभी वह जान करके लड़ने की कोशिश करती है पर उसे इस समाज के द्वारा जीतने ही नही दी जाती। चाहे कितना ही "रुद्रमादेवी" को "रुद्रदेव" बनाकर पाला जाए पर यह समाज जब जानता है कि "रुद्रमादेवी" को कि वह "रुद्रदेव" नही है तब भडक जाता है और उसे बहिष्कृत कर दिया जाता है । जहाँ केवल नाम बदला है काम नही। उन्ही लोगों की रुद्रमदेवी रक्षा करती है। तब भी उसके साथ ऐसा व्यवहार। माफ किजिएगा मैने अपके मन को बिचलित किया हो "रुद्रमादेवी" एक दक्षिण भारतीय चल-चित्र(फिल्म या मूवी) है । मेरा सादर अनुरोध है कि किसी महिला अधिकारी को यह पत्र पढ्ने को प्रेषित करें । उसके बाद समय मिले तो एक बार "रुद्रमादेवी" अवश्य देखें । पत्र को समझने मे मदद करेगी। आकाँक्षा की निराशा से मुलाक़ात लड़ने के बाद होती है हर कोई चाहता है की किसी की भी मुलाक़ात निराशा से कभी ना हो पर अभी तक शायद किसी सभ्य समाज ने आकाँक्षा और निराशा के बीच सीमा रेखा तक भी नही खींची है। यदि है भी तो उसे हर कोई नकारने की ही कोशिश करता है। मेरी उम्मीद यही है कि आप ही है जौ यह कर सकते है कि किसी "आकाँक्षा" की मुलाक़ात "निराशा" से कभी न हो यह उसके जन्म के साथ तय हो जाए। यह भारत की उस अजन्मी बेटी की आवाज है जिसने अभी इस दूनियाँ की रूढ़ियाँ नही देखी है। उसे किसी धर्म वर्ग मे न बिभक्त किया जाए।। उक्त चार शब्द समाज की प्राथमिकताओं मे है पर जब वह प्रयोग मे आते है तो अक्सर नकार दिये जाते है । नर से पहले नारी बहुत बार नकारी । बहन भाई पर भारी तब भी नकारी।। बेटी है सबसे प्यारी वह भी है बाहरी । अर्धांगनी को सब कुछ देंगे,वह नारी।। सारी दूनियाँ यही कहती है की नारी की शक्ति का कोई मुकाबला नही पर अर्थिक और जन्म होते ही अधिकर कदापि नही वह बाद मे हासिल कर ले तो उसका कर्म यदि वह जन्म से ही मिल गया होता कितनी आगे जाती कोई उम्मीद नही। नि:संदेह बहुत आगे........ ह्रदयस्पर्शी आभर ।🙏🌷🙏 बिशिष्ट व्यक्तिव नरेंद्र मोदी जी अपका अनजान लेखक ✍️आर्निक सुधीर
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