बड़े संभाले रखा था
सहेजे जिन रिश्तों को
थोड़ी पकड़ हुई ढ़ीली
हाथ से छूट गए
रिश्ते वो काँच के
खन्न से टूट गए
जब लगे हम समेटने
टूटे बिखरे रिश्तों को
लगाते ही हाथ
हमें ही चुभ गए
जो रिश्ते कभी दिल का
सुकून हुआ करते थे
हर वक्त हमारे
साथ साथ रहते थे
हमारे होने का
एहसास कराते
आज ऐसे रूठ गए
हमें अपनाने से ही मुकर गए
माना जिन्हें अपना
चाहा जिन्हें दिल से
आज होकर अनजान
पास में गुजर गए