एक दिन आँख ने पूछा पलकों से,
तुम क्या करती रहती हो।
चंद बूंदे आँसुओं की,
संभाल नहीं पाती हो।
जैसे ही उमड़ कर आते हैं,
तुम रोक क्यों नहीं लेती हो।
हो तुम पहरेदार फिर भी,
बहने इनको देती हो।
पलकें बोलीं कुछ बोझिल सी,
दोष मुझे क्यों देती हो।
पहले बताओ इतने आँसू तुम,
भर के कहाँ से लाती हो।
पल गम का हो या खुशी का,
झट से छलक जाती हो।
कहो इन आँसुओं से,
इतना मोह क्यूँ लगाती हो।