पड़ी बूंदें जो बारिश की,
रोम रोम मेरा खिल गया।
टूटती सी ख्वाहिशों को,
उम्मीदों का सहारा मिल गया।
उखड़ रहीं थीं सांसे,
टूट रही थी आस,
खोते हुए अंधेरों में,
जैसे सितारा मिल गया।
चातक की चाहत सी,
आज चाहत पूरी जो हुई।
डूबते हुए को,
जैसे किनारा मिल गया।
बुझते दिये की,
फडफडाती लौ की।
सुलगती बाती को,
तेल पिटारा मिल गया।
सूख रहा था पूरा,
झड़ रहे थे पत्ते।
खोखली होती जड़ों को,
जीवन दोबारा मिल गया।