चंद ख्वाहिशें दिल में सजा लीं,
सजा हो गई।
टूट कर बिखर गए,
ख्वाहिशें कजा हो गईं।
लम्हा लम्हा संजोया,
बनाया सपनों का घरौंदा।
ढ़ह गई दीवारें,
छत भी जुदा हो गई।
बिखरी ख्वाहिशों को,
समेटा फिर पलकों से।
उसी वक्त पलकें भी आँसुओं पर,
फिदा हो गईं।
ढ़ल गया उम्मीदों का सूरज,
उगने से पहले।
और ख्वाहिशों का टूटना,
उसकी रजा हो गई।
टूटे बिखरे सपनों को,
जोड़ रहे थे बैठे-बैठे।
हमारी ये उल्फ़त किसी की,
मजा हो गई।