मैं क्या सोचती हूँ, कोई मुझसे पूछे।
मेरे वजूद का हाल मुझसे पूछे।।
बरसों से खामोश हूँ, सब की सुनती हूँ।
कोई मेरी भी राय मुझसे पूछे।।
दिल और दिमाग से, नवाजा है मुझे भी।
उलझन में कोई सलाह मुझसे पूछे।।
फिक्र है अपनों की, कद्र भी करती हूँ।
इन्हीं भावनाओं का हिसाब मुझसे पूछे।।
निभाती हूँ रिश्ते, परछाई बन के।
मन में उठे जज़्बात मुझसे पूछे।।
सजाए हुए हैं, आँखों में सपने।
बन के हमदर्द अल्फाज़ मुझसे पूछे।।
दबा कर बैठी हूँ, छुपा के पलकों में।
बहते आँसुओं का सैलाब मुझसे पूछे।।
लिखा है जीवन का, हर शब्द सजा के।
खोलकर मन की किताब मुझसे पूछे।।