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अध्‍याय-4 पैथालाजी रोग एंव होम्‍योपैथिक (विकृति विज्ञान) होम्योपैथी के चमत्कार भाग 2

12 जून 2022

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अध्‍याय-4     पैथालाजी रोग एंव होम्‍योपैथिक (विकृति विज्ञान)

होम्‍योपैथिक एक लक्षण विधान चि‍कित्‍सा पद्धति है इसमें किसी रोग का उपचार नही किया जाता बल्‍की लक्षणों को ध्‍यान में रखकर औषधियों का र्निवाचन किया जाता है । परन्‍तु कई पैथालाजी परिक्षण उपरान्‍त जब यह सिद्ध हो जाता है कि रोगी को बीमारी क्‍या है ऐसी अवस्‍था में लक्षणों को ध्‍यान में रख कर औषधियों का निर्वाचन तो किया जा सकता है परन्‍तु पैथालाजी के परिणामों को ध्‍यान में रख निर्धारित औषधियों के प्रयोग से परिणाम भी आशानुरूप प्राप्‍त होते है ।

रक्‍त में पाई जाने वाली कोशिकाओं की बनावट उसकी संख्‍या में वृद्धि या कमी से विभिन्‍न प्रकार के रोग होते है ।

रक्‍त में तीन प्रकार की कोशिकायें पाई जाती है

1-इथ्रोसाईट (आर बी सी )

2-ल्‍युकोसाईट (डब्‍लू बी सी )

3-थम्‍ब्रोसाईट (प्‍लेटलेटस )

1-इथ्रोसाईट (आर बी सी ) लाल रक्‍त कणिकायें :-

लाल रक्‍त कणिकायें या  आर बी सी की संख्‍या के घटने बढने की दो अवस्‍थायें निम्‍नानुसार है

(अ) इथ्रोसाईटोसिस या पोलीसाईथिमिया (बहु लोहित कोशिका रक्‍तता या लाल रक्‍त कण का बढना) :-जब रक्‍त में आर बी सी की संख्‍या बढ जाती है तो ऐसी स्थिति को इथ्रोसाईटोसिस (बहु लोहित कोशिका रक्‍तता या लाल रक्‍त कण का बढना )या पॉलीसाईथिमिया कहते है ।

(ब) इथ्रोसाईटोपैनिया (लोहित कोशिका हास या लाल रक्‍त कण की कम होना) :- जब रक्‍त में लाल रक्‍त कणों की मात्रा घट जाती है तो ऐसी स्थिति को इथ्रोसाईटोपैनिया (लोहित कोशिका हास या लाल रक्‍त कण की कम होना)कहते है ।

2-ल्‍युकोसाईट (डब्‍लू0 बी0 सी0 )

श्‍वेत रक्‍त कोशिकाये या डब्‍लू बी सी की संख्‍या के कम या अधिक होने की दो अवस्‍थाये निम्‍नानुसार है ।

(अ) ल्‍युकोसायटोसिस (श्‍वेत कोशिका बाहुलता या श्‍ेवत रक्‍त कणों की वृद्धि) :- रक्‍त में जब श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं की मात्रा बढ कर 10000 प्रतिधन मि मी से ऊपर पहूंच जाती है तो ऐसी स्थिति को श्‍वेत कोशिका बहुलता कहते है । स्‍वस्‍थ्‍य मनुष्‍य में इसकी संख्‍या 5000 से 9000 प्रतिधन मिली होती है परन्‍तु रोगजनक अवस्‍थाओं में इसकी संख्‍या बढ जाती है । रूधिर कैंसर जिसमें ल्‍यूकोसाईटस की संख्‍या बढ जाती है ।

(ब) ल्‍युकोपेनिया (श्‍ेवत कोशिका अल्‍पता या श्‍ेवत रक्‍त कणों का घटना ):- जब श्‍ेवत रक्‍त कोशिकाओं की संख्‍या घट कर 4000 प्रतिघन मी मी रक्‍त में कम हो जाती है तो ऐसी स्थिति को श्‍वेत कोशिका अल्‍पता या रक्‍त में श्‍वेत रक्‍त कणों का घटना ल्‍युकोपेनिया कहलाता है ।

ल्‍युकोसायटोसिस :- रक्‍त में जब श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं की मात्रा बढ कर 10000 प्रतिधन मि मी से ऊपर पहूंच जाती है तो ऐसी स्थिति को श्‍वेत कोशिका बहुलता कहते है । स्‍वस्‍थ्‍य मनुष्‍य में इसकी संख्‍या 5000 से 9000 प्रतिधन मिली होती है परन्‍तु रोगजनक अवस्‍थाओं में इसकी संख्‍या बढ जाती है ।

1-रक्‍त में डब्‍लू बी सी की अधिकता ल्‍यूकोसाईटोसिस (बैराईटा आयोड 30)  :- यदि रक्‍त में डब्‍लू बी सी की अधिकता है तो ऐसी स्थिति में बैराईटा आयोड 30 शक्‍ती में छै: छै: घन्‍टे के अन्‍तराल से प्रयोग करने से डब्‍लू बी सी की मात्रा कम होने लगती है (डॉ0घोष)

2 लाल रक्‍त कणिकाओं का बढना एंव श्‍वेत रक्‍त कणिकाओं का घटना (बैराईटा म्‍योरटिका) :- डॉ0 घोष ने लिखा है कि बैराईटा म्‍योरटिका से शरीर की लाल रक्‍त कणिकाये घट जाती है और श्‍वेत कण बढ जाते है ।

3-डब्‍लू0 बी0 सी0 की संख्‍या बढने पर (बेजेनम-कोल नेफ्था) :- यदि शरीर में श्‍वेत रक्‍त कणों की संख्‍या बढ गई हो एंव लाल रक्‍त कणों की संख्‍या कम हो गयी हो तो इस दवा का प्रयोग करना चाहिये । इसका प्रयोग 30 पोटेंसी या उच्‍च शक्ति में आवश्‍यकतानुसार किया जा सकता है ।

4- डब्‍लू बी सी बढने पर (पायरोजिनम) :- रक्‍त में श्‍वेत रक्‍त कण के बढने पर पायरोजिनम दबा का प्रयोग करना चाहिये , इसका प्रयोग 30 पोटेंसी या उच्‍च शक्ति में आवश्‍यकतानुसार किया जा सकता है ।

5- रक्‍त में डब्‍लू0 बी0 सी0 की अधिकता (आर्सेनिक एल्‍ब, आर्सैनिक आयोडेट, फेरम फॉस एंव नेट्रम म्‍यूर ,पिकरिक ऐसिड) :- यदि रक्‍त में डब्‍लू बी सी की अधिकता के साथ ग्रन्थियों में गांठे हो तो आर्सेनिक एल्‍ब , आर्सैनिक आयोडेट 3 एक्‍स में प्रयोग करना चाहिये ,फेरम फॉस एंव नेट्रम म्‍यूर ,पिकरिक ऐसिड दबाओं का भी लक्षण अनुसार प्रयोग किया जा सकता है । डॉ0 बोरिक ने लिखा है कि डब्‍लू बी सी की अधिकता में फेरम फॉस उत्‍तम दबा है, उन्‍होने कहॉ है कि रक्‍त कणिका जन्‍य रोग एंव शिथिल मॉस पेशीय जन्‍य रोग आदि में आयरन प्रथम दबा है । लोहे की कमी जनित अवस्‍थाओं में आयरन देने अर्थात फेरम फॉस दवा देने से मॉस पेशियॉ सबल एंव रक्‍त वाहिनीय उपयुक्‍त चाप के साथ संकुचित होकर रक्‍त संचार में सुधार लाती है । यह दवा लाल रक्‍त कणों की कमी ,बजन व शक्ति की कमी में अच्‍छा कार्य करती है । कहने का अर्थ यह है कि रक्‍त में आयरन की कमी होने से रक्‍त सम्‍बन्धित जो भी व्‍याधियॉ होती है उसमें फेरम फॉस अच्‍छा कार्य करती है लाल रक्‍त कणों की कमी एंव श्‍वेत रक्‍त कणों की वृद्धि में इस दबा को 6 या 12 एक्‍स में लम्‍बे समय तक प्रयोग करना चाहिये ।

6-ल्‍युकोपेनिया (श्‍वेत रक्‍त कोशिका अल्‍पता ):- जब श्‍ेवत रक्‍त कोशिकाओं की संख्‍या घट कर 5000 प्रति धन मी मी रक्‍त में कम हो जाती है तो ऐसी स्थिति को ल्‍युकोपेनिया या श्‍वेत रक्‍त कोशिका अल्‍पता कहते है ।

7-यदि रक्‍त में श्‍वेत रक्‍त कण घटते हो (क्‍लोरमफेनिकाल) :- यदि रक्‍त में डब्‍लू बी सी घटता हो तो ऐसी स्थिति में क्‍लोरमफेनिकाल दबा का प्रयोग किया जा सकता है । यह दबा प्रारम्‍भ में 30 या इससे भी कम शक्ति की दबा का प्रयोग नियमित एंव लम्‍बे समय तक लेते रहना चाहिये , लाभ होने पर धीरे धीरे उच्‍च से उच्‍चतम शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है

8- रक्‍त में हीमोग्‍लोबिन की कमी

स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्ति के शरीर में रक्‍त के लाल पदार्थ को हीमोग्‍लोबीन कहते है हीमोग्‍लोबिन के प्रतिशत का गिर जाना रक्‍त अल्‍पता का कारण बनता है ,100 एम एल में रक्‍त रंजक की मात्रा लगभग 15 ग्राम पाई जाती है ।

(अ)  रक्‍त में हीमोग्‍लोबिन की कमी (फेरम फॉस 3-एक्‍स) :-  यदि रक्‍त में हिमोग्‍लोबिन की कमी हो रही है या हो गयी है तो ऐसी स्थित‍ी में बायोकेमिक दवा  फेरम फॉस 3 एक्‍स या 6 एक्‍स शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है में दिन में तीन बार नियमित प्रयोग करना चाहिये । वैसे अनुभवों से ज्ञात हुआ है कि हीमोग्‍लोबिन की कमी होने पर फेरम फॉस 30 तथा फेरम मेल्‍ट 30 दवा का प्रर्याक्रम से प्रयोग करने पर सफलता जल्‍दी एंव आशनुरूप मिलती ,इन दोनो दवाओं के साथ काली सल्‍फ30 दवा देने से रक्‍त में आक्‍सीजन व लोह तत्‍व की मात्रा सम्‍पूर्ण शरीर में या जहॉ उसको आवश्‍यकता होती है असानी से पहूंच जाती है ।

(ब)-रक्‍त में डब्‍लू बी सी की कमी ,विश्रृखला मांसपेशीयों में शिथिलता रक्‍त संचय (फेरम फॉस ) :- इसे फास्‍फेट आफ आयर से बनाया जाता है प्रत्‍येक सेल्‍स का जैव आधार लाल रक्‍त कणिकाये है ,लोहे अणु की विश्रृखला से मांसपेशियो में शिथिलता उत्‍पन्‍न होती है ,रक्‍त संचार प्रणाली में कही भी किसी भी कारण मांसपेशियों की शिथिलता व रक्‍त संचय होने पर रक्‍त कणिकाजन्‍य रोगो आदि में लोहे की कमी एंव डब्‍लू0 बी0 सी0 की कमी में इसका प्रयोग किया जाता है,इस दवा का प्रयोग रक्‍त स्‍त्राव में भी किया जाता है  । डॉ0 शुस्‍लर इस दवा को 3-एक्‍स, 6एक्‍स एंव 12-एक्‍स पोटेंसी में उपयोग करने की सलाह देते है । होम्‍योपैथिक सिद्धान्‍त के अनुसार इसका प्रयोग 30 पोटेंसी से उच्‍च शक्ति में भी कर उचित परिणाम प्राप्‍त किये जा सकते है ।

(स)-रक्‍त की कमी के साथ रक्‍त का विभिन्‍न्‍ा अंगों में वितरण का अभाव (फेरम मेल्‍टेलिकम):- यह दवा को लोहा है । इसके रोगी का मुख्‍य लक्षण रक्‍त की कमी के साथ चेहरे पर क्षूठी लालीमा , इसका अद्भूद लक्षण यह है कि शीत लगने पर चहरा पीला पड जाता है ,रक्‍त की कमी के साथ रक्‍त का शरीर के विभिन्‍न अंगों में वितरण उचित तरीके से नही होता , इस दवा का प्रयोग लाल रक्‍त कणों की कमी में उपयोग किया जाता है इससे लाल रक्‍त कणों की संख्‍या बढ जाती है । इसका प्रयोग 30 शक्ति से उच्‍च शक्ति तक किया जा सकता है । कुछ चिकित्‍सकों का अभिमत है कि इसे 6-एक्‍स या 12एक्‍स में प्रयोग करने से भी अच्‍छे परिणाम मिले है ।

(द) संम्‍पूर्ण स्‍नायु मंडल की शिथिलता (जिंकम मैटालिकम) :-  जिंकम मैटालिकम जस्‍ते से बनाई औषधिय है ,इस दवा में सम्‍पूर्ण स्‍नायु मंडल में शिथिलता एंव प्रतिक्रिया का अभाव पाया जाता है लाल रक्‍त कणों की संख्‍या बढाने हेतु इस दवा की प्रारम्‍भ में 30 पोटेंसी का प्रयोग करते हुऐ धीरे धीरे अवश्‍यकतानुसार इसकी उच्‍च शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है ।

9- हिमोफिलीयॉ रक्‍त स्‍त्रावी प्रकृति (फेरम फॉस) :- रक्‍त स्‍त्रावी प्रकृति के मरीजों (हिमोफिलियॉ) में शरीर से रक्‍त स्‍त्राव होता रहता है यह शरीर के किसी भी स्‍थान से हो सकता है जैसे नॉक से मुंह या पेशाब तथा मल के रास्‍ते आदि से ।  ऐसे मरीजो को फरम फॉस 30 शक्ति में दिन में तीन बार देने से लाभ हो जाता है । बायोकेमिक चिकित्‍सा के अनुसार इसे 3-एक्‍स,6-एक्‍स तथा 12-एक्‍स में नियमित दिन में तीन बार तक कुछ दिनों तक प्रयोग करने से उचित परिणाम मिलने लगते है ।

10- रक्‍त स्‍त्राव (मिलीफोलियम क्‍यू) :- डॉ नैश की इस करिश्‍माई दबा को रक्‍त स्‍त्राव में प्रयोग किया जाता है रक्‍त लाल चमकदार होता है, यह शरीर के किसी भी स्‍वाभाविक अंगों से निकले जैसे नकसीर, उल्‍टी, लेट्रींग आदि इसमें मिलीफोलियम क्‍यू (मदर टिंचर) या 30 दिन में तीन बार या आवश्‍यकतानुसार देने से लाभ होता है ।

11- रक्‍त में टॉक्‍सीन को दूर करना (बैनेडियम) :-  रक्‍त के टॉक्‍सीन को दूर करने के लिये बैनेडियम दवा का प्रयोग करना चाहिये इसके प्रयोग से रक्‍त के दूषित पदार्थ नष्‍ट हो जाते है इस दवा की क्रिया रक्‍त के दूषित पदार्थो को नष्‍ट करना तथा आक्‍सीजन देना है । इस दबा का प्रयोग निम्‍न शक्ति में नियमित कुछ दिनों तक प्रयोग करा चाहिये । उच्‍च शक्ति में भी इसका प्रयोग किया जाता है ।

12- चर्म रोगों में रक्‍त को शुद्ध करने हेतु (सार्सापैरिला) :-  चर्म रोग की दशा में रक्‍त को शुद्ध करने के लिये सार्सापैरिला दवा का प्रयोग मदर टिंचर या 6 या 30 पोटेंसी में किया जा सकता है । आवश्‍यकतानुसार या रोग स्थिति के अनुसार उच्‍च शक्ति में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है ।

13- बार बार फूंसियॉ रक्‍त शोधक (गन पाऊडर) :- यदि बार बार फुंसियॉ होती हो तो गन पाऊडर का प्रयोग करना चाहिये, इस दबा के प्रयोग से रक्‍त शुद्ध होता है यह रक्‍त को शक्ति देती है । इस दवा का प्रयोग 3-एक्‍स या 6-एक्‍स या 30 पोटेसी में दिन में तीन बार करना चाहिये ।

14-  गनोरिया (कैनाबिस सिटावम सी एम) :- डॉ0 सत्‍यवृत जी ने लिखा है कि गनोरिया में कैनाबिस सिटावम सी0 एम0 शक्ति में प्रयोग करना चाहिये । इस दबा का असर चार पॉच दिन बाद होता है उन्‍होने लिखा है कि यदि इससे भी परिणाम न मिले तो मदर टिन्‍चर में दवा देना चाहिये ।

15- प्रोस्‍टेट ग्‍लैन्‍डस (डिजिटेलिस) :- डॉ0 कैन्‍ट कहते है कि प्रोस्‍टटे ग्‍लैड की डिजिटेलिस प्रमुख दबा है । अत: प्रोस्‍टेट ग्‍लैन्‍डस की बीमारी मे डिजिटेलिस दवा का प्रयोग 30 शक्ति में कुछ दिनों तक नियमित करना चाहिये ।

16- त्‍चचा में कही भी तन्‍तुओं की असीम वृद्धि (हाईड्रोकोटाईल) :- कई मरीजो के त्‍वचा में कही भी तन्‍तुओं की असीम वृद्धि होने लगती है ऐसी स्थिति में  हाईड्रोकोटाईल 6 या 30 में दिन में तीन बार देना चाहिये । इसका प्रयोग उच्‍च से उच्‍चतम शक्ति में रोग की स्थिति के अनुसार किया जा सकता है ।

17- नॉखून बाल व हडिडयों के क्षय में (फोलोरिक ऐसिड) :- नॉखून , बाल व हडिडयों के क्षय जैसी स्थिति में फोलोरिक ऐसिड दवा का प्रयोग करना चाहिये । इस दवा का प्रयोग 30 शक्ति में दिन में तीन बार या 200 शक्ति की दवा का प्रयोग तीन दिन या सप्‍ताह में एक बार देना चाहिये इसके साथ यदि कैल्‍केरिया फॉस एंव कैल्‍केरिया फ्लोर 6 या 12 का प्रयोग प्रर्यायक्रम से दिन में तीन बार करना चाहिये इससे परिणाम जल्‍दी मिलने लगते है ।

20- गुर्दा रोग (नेफराईटिस)

गुर्दा रोग जिसमें किडनी के नेफरान याने छन्‍ने में सूजन आ जाती है जिसके कारण रक्‍त छनता नही है एंव पेशाब की निकासी का कार्य उचित ढंग से नही होता ,इससे रक्‍त में यूरिया की मात्रा बढ जाती है । इसे गुर्दे की बीमारी में शरीर में सूजन आ जाती है । गुर्दे की इस बीमारीयों में निम्‍नानुसार दवाओं का चयन किया जा सकता है ।

(अ)- पेशाब में एल्‍बुमिन का आना, मस्तिष्‍क क्रिया का शून्‍यपन, बेहोशी का होना (हैलिबोरस):- मस्तिष्‍क क्रिया का शून्‍यपन, बेहोशी का होना ,शरीर का शुन्‍यपन के कारण पेशाब में एल्‍बुमिन का आने पर इस दवा का प्रयोग 30 पोटेंसी में दिन में तीन बार करना चाहिये ।

(ब) पेशाब कर चुकने के बाद, र्दद तलछट का रंग सफेद (सार्सापेरिला) :- पेशाब में एल्‍बुमिन आने पर इस दवा का प्रयाग किया जा सकता है इसका एक अद्भुद लक्षण यह है कि मूत्र नली से हवा निकलती है, यह मूत्र पथरी की एंव गुर्दे दोनों प्रकार की पथरी में यदि उक्‍त लक्षण मिले तो इस दवा के प्रयोग से लाभ होता है । गुर्दे की बीमारी में जब  पेशाब में एल्‍बुमिन आता हो तो इस दवा का प्रयोग  30 पोटेंसी में दिन में तीन बार करना चाहिये , 200 शक्ति में इसका प्रयोग रोग स्थिति के अनुसार किया जा सकता है ,

(स)  नेफराईटिस रोग में (मैथेलीन ब्‍लू) -  नेफराईटिस रोग में मैथेलीन ब्‍लू का प्रयोग किया जाता है यह दवा प्रारम्‍भ में निम्‍न शक्ति में प्रयोग करना उचित है परन्‍तु रोग स्थिति के अनुसार उच्‍च शक्ति में भी इसका  उपयोग किया जा सकता है ।

21- पेशाब में यूरिक ऐसिड का बढना (बैराईटा म्‍यूर) :-  पेशाब की पैथालाजी टेस्‍ट में क्‍लोराईड का अंश घटता हो एंव यूरिक ऐसिड परिणाम में बहुत बढ जाये तो बैराईटा म्‍यूर 30 या 200 का प्रयोग रोग की स्थिति अनुसार करना चाहिये ।

22-पेशाब में यूरिक ऐसिड  (Thlaspi BP Q) :- पेशाब में यूरिक ऐसिड होने पर Thlaspi BP Q सर्वश्रेष्‍ट दबा है । थलासपी बी पी क्‍यू का प्रयोग क्‍यू में आधे कप पानी में दिन में तीन बार किया जाना उचित है । इससे शरीर में जमी हुई यूरिक एंसिड निकल जाती है ।

23- पेशाब में यूरिया अधिक बनने पर (कास्टिकम) :- यदि पेशाब में यूरिया अधिक आने लगे तो कास्टिकम दबा का प्रयोग करना चाहिये (डॉ0 आर हूजेस) । इस दवा का प्रयोग उच्‍च शक्ति या निम्‍न शक्ति में रोग की स्थिति के अनुसार किया जाता है ।

24-मूत्र में यूरिया फास्‍फेट (एल्‍फाएल्‍फा क्‍यू) :-  मूत्र में यूरिया फास्‍फेट रहने पर एल्‍फाएल्‍फा क्‍यू का प्रयोग दिन में तीन बार पन्‍द्रह बूंद आधे कप पानी में या आवश्‍यकतानुसार करना चाहिये इससे यूरिया फास्‍फेट कम होने लगता है ।

25- रक्‍त का एक स्‍थान में संचय होना (हाईपेरीमिया) (कैल्‍केरिया फॉस, कैल्‍केरिया सल्‍फ) :- रक्‍त के एक ही स्‍थान पर संचय होने को हाइपेरीमिया कहते है रक्‍त की कमी में कैल्‍केरिया फॉस के बाद फेरम फॉस दवा अच्‍छा कार्य करती है ऐसी स्थिति में फेरम फॉस तथा कैल्‍केरिया सल्‍फ का प्रयोग प्रयार्यक्रम से करना चाहिये । इससे रक्‍त के एक स्‍थान पर संचय होने पर लाभ होता है । उक्‍त दवा का प्रयोग बायोकेमिक शक्ति में या होम्‍योपैथिक की शक्ति में आवश्‍यकतानुसार किया जा सकता है ।

26-गठिया में यूरिक ऐसिड का जमना-(आर्टिका यूरेन्‍स ) -    डॉ0 धोष लिखते है कि गठिया या वात रोग में यूरेट आफ सोडा पैदा होता है आर्टिका यूरेन्‍स मदर टिंचर की पॉच पॉच बूद दिन में तीन बार लेते रहने से पेशाब के साथ यूरिक ऐसिड निकल जाती है तथा बीमारी ठीक हो जाती है ।

27-रक्‍त में यूरिक ऐसिड बढने पर (आर्टिका यूरेंस, बेंजोइक ऐसिड  ) : - उपरोक्‍तानुसार आर्टिका यूरेन्‍स क्‍यू तथा बेंजोइक ऐसिड 30 शक्ति में दिन में पर्यायक्रम से दिन में तीन बार नियमित लेने से यूरिक ऐसिड के बढने पर लाभ होता है । कुछ चिकित्‍सक बेंजोइक ऐसिड 200 शक्ति की एक मात्रा सप्‍ताह में एक बार या आवश्‍यकतानुसार तथा आर्टिका यूरेंस क्‍यू की दस दस बूंदे दिन में तीन बार देने के पक्षधर है ।

28-पेशाब में कैल्शिम आक्‍जेलेट आना (नाईट्रो म्‍यूरियेटिक ऐसिड क्‍यू) :- यदि जॉच में कैल्शियम आक्‍जलेट है तो उसके लिये नाईट्रो म्‍यूरियेटिक ऐसिड क्‍यू अचूक दबा है इसे पॉच से दस बूद दिन में तीन बार देना चाहिये ।

29-क्‍लोरोफार्म के सूंधने के दोष (ऐसिटिक एसिड) :- ऐसिटिक एसिड यह दवा सभी तरह की बेहोश करने वाली दबाओं ,क्‍लोरोफार्म आदि के सूधने के दोष का प्रति विष है । इसका प्रयोग 30 पोटेंसी या आवश्‍यकतानुसार उच्‍च शक्ति में प्रयोग किया जा सकता है ।

30-रक्‍त में ई0एस0आर0 कम करने के लिये (अश्‍वगंधा क्‍यू0) :- रक्‍त में ई0एस0आर0 कम करने के लिये अश्‍वगंधा क्‍यू0 उपयोगी है इस दवा की पन्‍द्रह बीस बूदे आधे कप पानी में दिन में तीन चार बार आवश्‍कतानुसार लिया जा सकता है ,इस दवा के प्रयोग से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढती है एंव यह दवा कैंसर प्रतिरोधक दवा होने के साथ कैंसर को खत्‍म करने के लिये भी उपयोगी एंव शक्तिवृधक दवा है इसके सेवन से नींद भी अच्‍छी आती है । आयुर्वेदिक चिकित्‍सक इसका प्रयोग क्रूड मात्रा में करते है उनका मानना है कि इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है जिससे कैंसर आदि होने का खतरा कम हो जाता है परन्‍तु इसका अधिक सेवन हानिकारक भी है इसके प्रयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता के बढ जाने से अन्‍य दवाये कार्य नही करती अत: इसका प्रयोग क्रूड मात्रा में अधिक नही करना चाहिये ।

31- मूत्र का संक्रमण (बी कोली) :- मूत्र में संक्रमण होने की स्थिति में बी कोली दवा का प्रयोग 30 श्‍ाक्ति 200 शक्ति में आवश्‍कतानुसार किया जा सकता है । प्राय: 30 शक्ति में दिन में तीन बार प्रयोग नियमित करने से मूत्र का संक्रमण कम होने लगता है बाद में इसकी 200 शक्ति की एक मात्रा का प्रयोग सप्‍ताह में एक बार कुछ दिनों तक करते रहना चाहिये ।

32- पेशाब में अम्‍ल या यूरिक ऐसिड

(अ) पेशाब में अम्‍ल या यूरिक ऐसिड बहुत ज्‍यादा, पेशाब मे पीब रंग लाल, कस्‍तूरी सी गंध (ओसियम केनन) :- ओसियम केनन तुलसी से बनाई जाने वाली दवा है इसमें पेशाब में कस्‍तूरी सी गंध आती है पेशब में यूरिक ऐसिड बहुत ज्‍यादा होती है । इस स्थिति में तुलसी से बनने वाली इस दवा के मूल अर्क की दस से पन्‍द्रह बूदे आधे कप पानी में दिन में तीन चार बार कुछ दिनों तक प्रयोग करने से लाभ होता है ।

(ब) पेशाब आना कभी कभी कम हो जाना (बरबेरिस बलगैरिस):- इस दवा मे गठिये की शिकायत में पेशाब अधिक आती है कभी कभी कम हो जाती है । इस दवा का विलक्षण लक्षण यह है कि रोगी समक्षता है कि उसका सिर बढा हो गया है इसलिये वह बार बार सिर पर हाथ फेरता है । र्दद का केन्‍द्र स्थिल से उठता है एंव चारों तरफ फैलता है । गठिये में यूरिक ऐसिड के जमा होने पर इस दवा का प्रयोग 30 पोंटेशी में या उच्‍च शक्ति में किया जा सकता है ।

(स) शरीर में यूरिक ऐसिड का जगह जगह बैठ जाना (आर्टिका यूरेन्‍स ) :- शरीर में यूरेटस निकलने की जगह शरीर में जगह जगह जमा हो जाता है गठिये के र्दद में आर्टिका यूरेन्‍स क्‍यू का प्रयोग किया जाता है , यूरिक ऐसिड के मूत्राश्‍य, या गठिये में में जमा होने पर इस दवा का प्रयोग क्‍यू में पन्‍द्रह से बीस बूंद आधे कप पानी में दिन में तीन बार कुछ दिनों तक नियमित सेवन करना चाहिये । कुछ चिकित्‍सक 30 से उच्‍च शक्ति में देने के पक्षधर है परन्‍तु यह रोग की स्थिति व चिकित्‍सक के स्‍वाविवेक पर निर्भर करता है ।

(द) रोगी के पेशाब में अमोनिया सी बुरी गंध का आना (बेंजोईक ऐसिड):- रोगी के पेशाब में बदबू आती है जो अमोनिया की तरह होती है । पेशाब खुल कर आने पर र्दद कम हो जाता है परन्‍तु जब पेशाब कम आती है तब र्दद बढ जाता है ,यूरिक ऐसिड का पेशाब के माध्‍यम से निकल जाने पर गठिये का र्दद कम हो जाता है । परन्‍तु जब यूरिक ऐसिड जमा होने लगती है तब र्दद बढ जाता है इसके गठिये का र्दद शरीर में स्‍थान बदलता है ।

डॉ0 सत्‍यम सिंह चन्‍देल [ बी0 एच0 एम0 एस0, एम0 डी0]

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      अध्‍याय -1    विश्‍व प्रचलित चिकित्‍सा पद्धतियों का उदभव   आदिकाल में मानव की आवश्‍यकतायें कम थी, वह अपने भूंख प्‍यास के सीमिति संसाधनों पर निर्भर हुआ करता था ।  आदिमानव यहॉ वहॉ फल फूल या जान

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4-होम्‍योपंचर या होम्‍योएक्‍युपंचर

12 जून 2022
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                                 4-होम्‍योपंचर या होम्‍योएक्‍युपंचर विश्व में प्रचलित विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियॉ किसी न किसी रूप में प्रचलन में है इसी कडी में होम्योपंचर चिकित्सा की जानकारी

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5-नेवल एक्‍युपंचर बनाम नेवल होम्‍योपंचर

12 जून 2022
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                 5-नेवल एक्‍युपंचर बनाम नेवल होम्‍योपंचर नेवल एक्‍युपंचर, एक्‍युपंचर की नई खोज है इसकी खोज व इसे नये स्‍वरूप में सन 2000 में कास्‍मेटिक सर्जन मास्‍टर आफ-1 चॉग के मेडिसन के प्रोफेसर यो

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अध्‍याय-4 पैथालाजी रोग एंव होम्‍योपैथिक (विकृति विज्ञान) होम्योपैथी के चमत्कार भाग 2

12 जून 2022
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अध्‍याय-4     पैथालाजी रोग एंव होम्‍योपैथिक (विकृति विज्ञान) होम्‍योपैथिक एक लक्षण विधान चि‍कित्‍सा पद्धति है इसमें किसी रोग का उपचार नही किया जाता बल्‍की लक्षणों को ध्‍यान में रखकर औषधियों का र्निवा

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बच्‍चों के रोग अध्‍याय-5 ( होम्योपैथी के चमत्कार भाग -2 )

15 जून 2022
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                                       ( होम्योपैथी के चमत्कार  भाग -2 ) अध्‍याय-5 बच्‍चों के रोग बच्‍चों के रोग इस प्रकार के होते है कि वे अपने लक्षणों को एंव अपनी बीमारीयों को नही बतला सकते] ऐसी

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होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति से मिलती जुलती विभिन्‍न चिकित्‍सा पद्धतियॉ अध्‍याय -2

19 जून 2022
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                                                                        (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग-2)     अध्‍याय -2   होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति से मिलती जुलती विभिन्‍न चिकित्‍सा पद्धतियॉ  

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होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का उदभव अध्‍याय-3 (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग-2)

19 जून 2022
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                                                                  (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग-2)     अध्‍याय-3      होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का उदभव     किसी ने सत्‍य ही कहॉ है, आवश्‍यकता आविष

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हिस्‍टीरिया रोग अध्‍याय-7 (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग’2)

19 जून 2022
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(होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग’2)                                                      अध्‍याय-7                                                    हिस्‍टीरिया    रोग  हिस्‍टीरिया एक ऐसा मानसिक रो

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वृद्धावस्‍था और होम्योपैथीक उपचार अध्याय - 6

30 जुलाई 2022
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                                         अध्‍याय-6                                          वृद्धावस्‍था वृद्धावस्‍था कोई रोग नही है ,यह जीवन की सच्‍चाई है , परन्‍तु वृद्धावस्‍था मे कई प्रकार की समस

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नशे की आदते और उसके दुष्‍परिणाम ( अध्‍याय-8)

30 जुलाई 2022
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                                          अध्‍याय-8                            नशे की आदते और उसके दुष्‍परिणाम   नशा किसी भी प्रकार का हो इससे स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा प्रभाव पडता है ,आज के इस बदलते दौर

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मुंह में छाले (अध्‍याय-9

30 जुलाई 2022
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अध्‍याय-9 मुंह में छाले मुंह में छाले होना कोई बीमारी नही है, यह प्राय: पेट की खराबी या कब्‍ज की वजह से भी हो सकती है, जिसका उपचार कब्‍ज दूर करने से प्राय: हो जाता है ,। परन्‍तु यदि बार बार लम्‍बे स

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शरीर के विभन्‍न स्‍थलों की व्‍याधियॉ ( अध्‍याय-10)

30 जुलाई 2022
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अध्‍याय-10 शरीर के विभन्‍न स्‍थलों की व्‍याधियॉ (अ)-कन्‍धे के दाये पार्श्‍व का र्दद – (1)-दवा की क्रिया दाहिनी तरफ दाहिना पैर वर्फ की तरह ठंडा (चिलि‍डोनियम मेजस) :- यह एक बनस्‍पतिक वर्ग की दवा है ज

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पथरी ( अध्‍याय-11)

30 जुलाई 2022
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                          अध्‍याय-11                               पथरी    पथरी एक ऐसा रोग है जिसमें मूत्राश्‍य एंव गुर्दे में पथरी बनने लगती है । कुछ मरीजों में तो उपचार के बाद बाद भी बार बार पथरी

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क्‍वान्‍टम थेवरी

30 जुलाई 2022
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क्‍वान्‍टम थेवरी क्‍वान्‍टम थेवरी :- जहॉ से भौतिक वस्‍तुओं का अस्तित्‍व समाप्‍त होने लगता है वहॉ से सूक्ष्‍म अर्थात क्‍वान्‍टम थैवरी का सिद्धान्‍त प्रारम्‍भ होने लगता है ।  यहॉ पर हमारे वस्‍तु शब्‍द

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