shabd-logo

शरीर के विभन्‍न स्‍थलों की व्‍याधियॉ ( अध्‍याय-10)

30 जुलाई 2022

81 बार देखा गया 81

अध्‍याय-10

शरीर के विभन्‍न स्‍थलों की व्‍याधियॉ

(अ)-कन्‍धे के दाये पार्श्‍व का र्दद –

(1)-दवा की क्रिया दाहिनी तरफ दाहिना पैर वर्फ की तरह ठंडा (चिलि‍डोनियम मेजस) :- यह एक बनस्‍पतिक वर्ग की दवा है जो फ्रान्‍स जर्मनी में पाये जाने वाले पौधे से तैयार की जाती है । इस दवा की क्रिया शरीर के दाये भाग पर विशेषरूप से होती है दाये कन्‍धे की हडडी में सर्वथा र्दद का बने रहन ,दायी जांध में होने वाला र्दद, छाती के दाये भाग का स्‍नायविक र्दद तथा दाये पैर का वर्फ की तरह ठन्‍डा रहना ,परन्‍तु बाया पैर स्‍वाभाविक अवस्‍था में रहता है । दाये ओर के प्राय: सभी व्‍याधियों में यह एक लाभकारी दवा है । जैसे दाये छाती ,ऑख ,कान दाये सिर के माथे के दाहिने स्‍नायविक का र्दद ,दाये हाथ की कलाई में र्दद । वैसे यह जिगर की बीमारी की भी एक श्रेष्‍ठतम दबा है । इसका र्दद पीठ के पिछे दाहिने कन्‍धे (स्‍कैपुला) स्‍कन्‍धास्थि (परन्‍तु हडडी के अन्‍दर की तरफ नही ) की तरफ होता है । तथा उससे नीचे की तरफ  र्दद का लगातार बना रहना । ऐसी स्थिति में चिलिडोनियम ही मुख्‍य दबा है । कभी कभी इसका र्दद दाये कन्‍धे से मेरूदण्‍ड तक फैल जाता है ।  लाईकोपोडियम तथा चिलिडोनियम इन दोनो दबाओं का प्रभाव दाये भाग में अधिक होता है । परन्‍तु चिलिडोनियम अल्‍प कालिक क्रिया करने वाली दवा है । लाईकोपोडियम तथा चिलिडोनियम इन दोनो औषधियों का रोगी तेज गर्म चीज या खाना पसन्‍द करता है । इसका रोगी सर्द प्रकृति का होता है । पुरानी बीमारी में लाईकोपोडियम से फायदा होंता है । डॉ0 घोष लिखते है कि ब्रायोनिया का अपव्‍यवहार होने पर चिलिडोनियम से उक्‍त दोष ठीक होकर कुछ फायदा हो तो उसके बाद सल्‍फर तथा लाईको0से रोग को सम्‍पूर्ण आरोग्‍य किया जा सकता है

(2) र्दद दहिने तरफ से बाईट तरफ सभी कष्‍ ठन्‍ड से बढते रोगी गर्म पदार्थ खाना पसन्‍द करता है (लाईकोपोडियम) – इस दवा का वर्णन पूर्व में भी किया जा चुका है इस दबा की क्रिया भी शरीर के दाये तरफ अधिक होती है । रोग वर्णन पूर्व रोगी के मानसिक लक्षणों को भी मालुम कर लेना नितांत आवश्‍यक है वैसे इसका रोगी सर्द प्रकृति का होता है इसके प्राय: सभी कष्‍ट ठन्‍ड से बढते है । इसलिये यह गर्म पदार्थ खाना या पीना अधिक पसंद करता है । मानसिक लक्षण व्‍यक्ति को अपनी योग्‍यता पर सन्‍देह होना,आत्‍मविश्‍वास की कमी, लोभी ,कन्‍जूस तथा लडाकू,असंतुष्‍ठ तथा धैर्यहीन होता है ।   इस दवा के रोगी का आक्रमण शरीर के दाये भाग से प्रारम्‍भ होकर धीरे धीरे बांये पार्श्‍व की तरफ फैलता है । कोई भी कष्‍ट या उदभेद का आक्रमण दाहनी ओर से प्रारम्‍भ होता है ,यहॉ तक कि फुंसियॉ ही क्‍यों न हो अगर दाहनी तरफ से प्रारम्‍भ होकर बाई तरफ को बढे तो लाईको0 से निश्चित ही फायदा होगा । पेट के कब्‍ज एंव अफरा इत्‍यादि में भी इसका उपयोग  होता है पेट में यदि पहले दाहने तरफ से र्दद उठे तो लाईको दवा से उचित लाभ मिलेगा ,इसी प्रकार गिल्‍टी या टांसिल की सूजन भी यदि दाहिने तरफ से प्रारम्‍भ होती है तो इस दवा को कदापी नही भूलना चाहिये । कन्‍धे का र्दद सर्वप्रथम दाहिने भाग से प्रारम्‍भ होकर धीरे धीरे बाई ओर को बढता है ,र्दद स्‍थाई भी हो सकता है चिलिडोनियम के बाद इस दबा का प्रयोग अवश्‍य करना चाहिये ,जैसा कि पहले ही बतलाया जा चुका है कि यह दीर्ध क्रिया करने वाली दवा है इसलिये इस दवा का प्रयोग बार बार एंव जल्‍दी जल्‍दी नही करना चाहिये । नई बीमारीयों में जहॉ चिलिडोनियम का प्रयोग होता है वही पुरानी बीमारीयों में लाईकोपोडियम का प्रयोग बडे ही विश्‍वास के साथ किया जा सकता है ।

3-किसी भी रोग की प्रथमावस्‍था में (फेरम फास) :- यह डॉ0 सुशलर की बायोकेमिक दबा है जो शुद्ध फास्‍फेट आफ आयरन के‍ विचूर्ण से तैयार की जाती है, होम्‍योपैथिक सिद्धान्‍तानुसार भी इसका प्रयोग किया जाता है, रक्‍त में लाल रक्‍त कणों की कमी तथा लोहे की कमी में यह दबा विशेष लाभदायक है । यह किसी भी रोग या प्रदाय की प्रथमावस्‍था में दी जाने वाली दवा है ,इस दवा के क्षेत्र में भी शरीर का दाहिना भाग आता है । र्दद चाहे दॉये कन्‍धे का हो या दाहिने सिर ,दाहिने ऑख के नीचे ,दाहिने नासिका छिद्र में जलन ,दाहिने कलाई ,कन्‍धे के वात के दर्द में भी इस दवा का प्रयोग किया जाता है वैसे बाये भाग पर भी यह दवा अपना समान अधिकार रखती है , र्दद जो हरकत से बढे तथा ठण्‍ड से धटे ,दाये गर्दन कलाई दाये गर्दन की अकडन इत्‍यादि पर भी इसका विशेष प्रभाव होता है डॉ शुसलर इस दवा के 6 एक्‍स 12 एक्‍स विचूर्ण के पक्षधर है, परन्‍तु इसका प्रयोग होम्‍योपैथिक के शक्तिकृत दवा से भी की जा सकती है । प्रदाह या र्दद दायी तरफ हो या बाई तरफ मेरे अनुभव से यह कन्‍धे के दोनों तरफ के र्दर्दो में समान रूप से कार्य करती है ।

(4) दाये तरफ का र्दद (मैगनेशिया फास्‍फोरिकम) :- यह दवा डॉ0 सुशलर की द्वादश तन्‍तु दबाओं में से एक है जो सल्‍फेट आफ मैग्‍नेशिया तथा कार्बोनेट आफ सोडा से निर्मित होती है , इस दवा की क्रिया भी प्रमुख रूप से शरीर के दाहिने भाग में विशेष रूप से होती है कन्‍धे के दाये तरफ का र्दद ,वात,चक्षु गहार , ऑखों के खोल के ऊपरी भाग में स्‍नायु शूल ,पेट में दाये तरफ र्दद , दाहिने कान के पिछले भाग का र्दद स्‍नायुशूल जो ठण्‍ड से बढे ,चेहरे के दाये भाग का र्दद ,दाहिने तरफ के गले में कष्‍ट कडापन ,दाहिने कन्‍धें एव बाहों में चुभन जैसा र्दद संधियों का र्दद , दाहिने पैर वर्फ की तरह ठण्‍डा परन्‍तु बायॉ पैर स्‍वाभाविक अवस्‍था में हो । इसका र्दद भी ठण्‍डी हवा शीत से बढते है गर्मी से रोग घटता है । दर्द अकास्‍मात स्‍थान बदलता है, मुंह या दाहिनी भौ के स्‍नायविक र्दद में भी इस दवा का प्रयोग होता है अर्थात दाहिने पार्श्‍व के र्दद में इसकी विशेष क्रिया होती है ।

(5) दर्द अचानक बिजली की तरह चमक कर उसी क्षण चला जाये, शरीर के दाहिनी ओर र्दद का अचानक उठना (बेलाडोना) :- यह दवा यूरोप में पैदा होने वाले वनस्‍पति से तैयार की जाती है । यह दाहिनी तरफ प्रभाव करने वाली द्रुतगामी औषधियों में से एक है ,इस दवा की क्रिया मस्तिष्‍क पर भी देखी जाती है अत: उन्‍माद, पागलपन ,इत्‍यादि में भी इस दवा का उपयोग होता है । र्दद वाले स्‍थान को रोगी छूने नही देता, जगह लाल बैचैनी रहना इत्‍यादि लक्षण देखे जाते है ,र्दद किसी भी प्रकार का क्‍यो न हो यदि वह शरीर के किसी भी स्‍थान में अचानक बिजली की तरह चमक कर उसी क्षण चला जाये तो इस दवा का प्रयोग कदापी ही भूलना चाहिये डॉ घोष लिखते है बेलाडोना की अधिकांश बीमारीयॉ शरीर के दाहिनी ओर होती है र्दद का अचानक उठना ,एंव चले जाना, दाहिने कन्‍धे के र्दद ,शूल का र्दद या स्‍नायु शूल का र्दद इत्‍यादि में यह दबा अच्‍छा काम करती है । इस दबा के प्रमुख लक्षण,जलन ,शोथ,ज्‍वर ,उपताप तथा रक्तिमा स्‍पर्श से र्दद का बढना ,दिन के तीन बजे से रोग का आक्रमण यह दवा सर्द प्रकृति की दवा है अर्थात सर्द प्रकृति के रोगियो के लिये यह श्रेष्‍ट औषधिय है । तल पेट में दाहिनी में तेज र्दद ,स्‍पर्श से र्दद का बढना ,लक्षणानुसार दाहिने कन्‍धे के र्दद में भी इस दवा का प्रयोग अवश्‍य करना चाहिये नये रोगीयों में 30 शक्ति से प्रयोग प्रारम्‍भ करते हुऐ आवश्‍यकता एंव रोग स्थिति के अनुसार इसकी शक्ति बढाई जा सकती है ।

(6) दाहनी तरफ अधिक जख्‍म गैगरीन ,कार्बकल, ब्‍लैक वाटर फीवर (क्रोटेलस) :- यह दवा सर्फ विष से बनती है, इसका प्रभाव भी दाहनी तरफ अधिक होता है, इसके रोगी में रक्‍त स्‍त्राव सभी अंगों से एंव तीब्र गति से होता है, रोग रंग का पीला पड जाना आदि लक्षण इस दवा में देखे जाते है इसका व्‍यवाहार प्राय: दर्दो की अपेक्षा अन्‍य विशैले जख्‍म गैगरीन, कार्बकल, ब्‍लैक वाटर फीवर, इत्‍यादि में होता है, कन्‍धों इत्‍यादि के र्दद में इसका प्रयोग उचित नही है ।

अनुभव केस:- कन्‍धे में होने वाले प्राय: हर केसों की स्थि‍ती का जायजा लेकर दवा का निर्वाचन किया जाये तो सफलता अतिशीध्र ही मिलती है । मै प्राय: अपने रोगियों को र्दद की प्रवृति जैसे र्दद ऊपर से नीचे को जाता है या नीचे से ऊपर इस स्थिति का पहले पता लगा कर लीडम एंव कैल्मिया लैटिफोलियस पर विचार करता हूं क्‍योकि इन दोनों दवाओं की प्रकृति इस प्रकार है जैसा कि मैटेरिया मेडिका में उल्‍लेखित है ।

लीडम पाल :- का र्दद नीचे से ऊपर को बढता है जबकि कैल्मिया का र्दद ऊपर से नीचे को उतरता है । प्राय: इसी सिद्धन्‍त को ध्‍यान में रख मैने पचास प्रतिशत केसों में सफलता प्राप्‍त की है । बीच बीच में फेरम फास या मेगफॉस दोनों प्रर्याय क्रम से दी जा सकती है

अनुभव दाये कन्‍धे के र्दद में :-एक मरीज जिसकी उम्र करीब 45 वर्ष के आस पास होगी उसे पुराने कन्‍धे का र्दद था जो करीब एक वर्ष पुराना होगा , र्दद दाये कन्‍धे से होता हुआ बाये पीठ तक फैल जाता था जिससे कभी कभी सीने में भी र्दद होने लगता था , पहले मैने उसे कैल्मिया दिया क्‍योंकि र्दद ऊपर से नीचे को बढता था परन्‍तु उसे फायदा नही हुआ इसलिये दूसरे दिन चलिडोनियम 30 की दवा का निर्वाचन उसे लक्षणानुसार दिया साथ में मैग फॉस 6 एक्‍स की दवा तीन बार लेने को कहा इससे र्दद कम होने लगा था इस लिये उक्‍त दवाये यथावत एक सप्‍ताह तक चलने दिया । बाद में चिलिडोनियम की शक्ति 200 में सप्‍ताह में एक बार दी गयी इसका परिणाम यह हुआ कि उसका र्दद पूरी तरह से ठीक हो गया परन्‍तु एक माह पश्‍चात उसे पुन: र्दद उठा उसे लाईकोपोडियम 1 एम में उसके लक्षणों के अनुसार दिया इससे उसे दुबारा र्दद नही हुआ यहॉ पर परिणाम यह निकलता है कि चिलिडोनियम से जो आंशिक लाभ हुआ था उसे लाईकोपोडियम की उच्‍च शक्ति ने पूरी तरह से ठीक कर दिया । आज के लाईफ स्‍टाई एंव कम्‍प्‍यूटर आदि में लम्‍बे समय तक कार्य  करने की वजह से नवयुवकों में भी यह समस्‍या अधिक देखी जा रही है । वैसे दाहिने तरफ के कन्‍धे के र्दद में प्राय: मुक्षे इन दवाओं से आशानुरूप लाभ मिल ही जाता है । कुछ प्रकरणों में र्दद की प्रवृति व लक्षणों को ध्‍यान में रख कर औषधियों का चुनाव करना पडता है , परन्‍तु अन्‍य दवाओं के साथ इन दवाओं का भी प्रयोग हो ही जाता है ।

(ब) बायें कन्‍धे का र्दद

1- रोग का बायें तरफ से प्रारम्‍भ होकर दायी तरफ स्‍पर्श का सहन न होना (लैकेसिस) :- यह दवा दक्षिणी अमेरिका में पाये जाने वाले एक प्रकार के सर्फ के विष से तैयार की जाती है, इस दवा का परिक्षण सर्वप्रथम डॉ कैन स्‍टेटाइन हेरिंग ने की थी, एक बार उन्‍हे एक सर्प ने काट लिया वे बेहोश हो गये तथा नीद मे वे बकते रहे, जब वे ठीक हुऐ तो उन्‍होने अपनी पत्‍नी से सारी बातें पूछी व सब लिखते गये बाद में इस दवा का परिक्षण किया गया ।  रोग का बायें तरफ से प्रारम्‍भ होकर दायी तरफ को जाना स्‍पर्श का सहन न होना , नीद के बाद रोग में वृद्धि, कोई भी रोग अगर बाई तरफ से प्रारम्‍भ होकर दायी तरफ को बढे तो इस दवा का प्रयोग कदापी नही भूलना चाहिये टॉसिलाईटिस, डिफथीरिया, वातरोग, डिम्‍ब के स्‍नायविक र्दद, टयूर, प्रदाय युक्‍त स्‍थान नीले बैगनी रंग का हो जाता हो, स्‍पर्श का सहन न होना, इस दवा के मानसिक लक्षण इस प्रकार है, रोगी ईर्ष्‍यालु, सन्‍देही, तथा बकवासी प्रकृति का होता है, र्दद लहरों की तरह उठता है, यह गर्म प्रकृति की दवा है, अत: रोगी उष्‍णता प्रधान होता है, ठन्‍ड से गर्मी में जाने से रोगी बीमार हो जाता है । यह बहुत गहरी क्रिया करने वाली दवा है जो घातक विष है, इसलिये इसका प्रयोग निम्‍न शक्ति में कदापी नही करना चाहिये, 30 एंव 200 शक्ति तक इसका प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है ।

2- क्रिया शरीर के बाये पार्श्‍व, र्दद बिजली की गति की तरह (ऐक्टिया रेसिमोसा):- अमेरिका में उत्‍पन्‍न होने वाले बनस्‍पति से यह दवा तैयार होती है इसका दूसरा नाम सिमिसिफयूगा भी है वैसे तो यह स्‍त्री रोग की प्रधान दवा है, यह शीत प्रधान औषधि है, इस दवा की क्रिया शरीर के बाये पार्श्‍व में अधिक होती है बाये कन्‍धे का र्दद ,डिम्‍ब कोष का स्‍नायविक र्दद , बाये उरू में स्‍नायविक र्दद ,बाये गर्दन कन्‍धे का दर्द या वात अकडन इत्‍यादि एंव बायें अंगों की बीमारीयों में भी इसका प्रयोग होता है इसका र्दद बिजली की गति की तरह होता है ,गर्मी से रोग में कमी ,ठंड से रोग का बढना, रजोधर्म के दिनों में रोग वृद्धि, रजोस्‍त्राव जितना होगा रोग भी उतनी गति से बढता है, सोते समय मॉस पेशियों का कॉपना, सून्‍नभाव यह एक विलक्षण लक्षण है रोगी जिधर लेटता है, कम्‍पन्‍न या सुन्‍न भाव देखा जाता है । इसका र्दद हिलने डुलने से बढता है । मानसिक लक्षण रोगी अपने को बादलों से धिरा हुआ महसूस करता है, नीद नही आती वह समक्षता है कि पागल हो जायेगा व स्‍वयम को समाप्‍त कर देने की इक्‍क्षा चारों ओर अंधेरा ,इसका रोगी मृत्‍यु से सदा भयभीत रहता है, स्‍त्री क्रोधित, चिडचिडे स्‍वाभाव एंव आत्‍महत्‍या की इक्‍क्षा रखती है, आखों के बायें तरफ का र्दद , बाये कूल्‍हे का र्दद इत्‍यादि ।

(स)-शारीरिक वेदना अथवा वात रोग   वात :- शरीर के बडे जोडों तथा मॉस पेशियों के र्दद को वात रोग कहते है ।   गठिया :- शरीर के छोटे जोडो के र्दद को गठिया कहते है ।

1-र्दद आराम से बढता चलने फिरने या हरकत करने से कम (रसटाक्‍स) :- इस दवा का र्दद आराम करने से बढता है , चलने फिरने या हरकत करने से कम होता है । रोगी ठन्‍ड नम हवा को सहन नही कर सकता, इससे उसके रोग में वृद्धि होती है । ब्रायोनियां का लक्षण इसके विपरीत है ।

2- र्दद आराम से घटना, हरकत से रोग वृद्धि (ब्रायोनिया) :- इस दवा का र्दद आराम करने से घटता है, हरकत से रोग वृद्धि होती है,  अर्थात रसटाक्‍स के लक्षणों के विपरीत है । शरीर में सूई गडने की तरह र्दद हो तो इसका एक प्रमुख लक्षण समक्षना चाहिये (काली कार्ब में भी सूई गडने की तरह र्दद होता है ) र्दद वाली जगह को सेकने या गर्म पदार्थो के सेवन से रोग वृद्धि , र्दद वाले स्‍थान को दबाने से र्दद में कमी होती है, इसके अतरिक्‍त इसका एक और प्रधान लक्षण है जीभ व मुंह, पाकस्‍थल, सब जगह सूखापन के विशेष लक्षण देखे जाते है । यह दवा वात, कटि शूल, बडी ग्रन्थियों के दर्द, कभी कभी र्दद अपना स्‍थान अचानक बदलता है, र्दद वाली जगह फूलती है एंव गर्म लाल हो जाती है, बिजली की तरह चमक    रसटाक्‍स के लक्षण जहॉ पर मिले वहॉ ब्रायोनिया से तुलना अवश्‍य करनी चाहिये क्‍योंकि ये दोनों औषधियॉ एक दूसरे की पूरक औषधियॉ है, तथा स्‍वाभाव से विरूद्ध आचरण रखने वाली औषधियॉ है । डॉ0 हैनिमैन का कहना है कि मॉसपेशी, गठिया ,वात रोग ,कमर र्दद इत्‍यादि में इस दवा की उत्‍तम क्रिया होती है ।

3- र्दद नीचे से प्रारम्‍भ हो कर ऊपर की तरफ बढता है (लीडम पैलस्‍टर) :- ऐसे र्दद जो नीचे से प्रारम्‍भ हो कर ऊपर की तरफ बढते है । इसका रोगी गर्म प्रकृति का होता है रोगी का शरीर ठंडा होता है, उसे हर वक्‍त ठंड महसूस होती रहती है, रोग वाली जगह को छूने से ठंडा मालुम होता है, इसके बाद भी रोगी र्दद वाले स्‍थान को ठंडे पानी या बर्फ में रखना चाहता है, इससे उसको राहत मिलती है, यह इस दवा का विलक्ष्‍ण लक्षण है । गर्मी या ढकने से र्दद बढता है, इसका वात का र्दद तिरछा चलता है, वात, गठिया वात तथा र्ददों में इसका प्रयोग किया जाता है ।  लीडम एक टिटनेस प्रतिरोधक दवा भी है । दवा का प्रयोग आवश्‍यकतानुसार निम्‍न व उच्‍च शक्ति में प्रयोग किया जा सकता है ।

4- र्दद ऊपर से प्रारम्‍भ होकर नीचे की तरफ बढता है (कैल्मिया लैटिफोलिया):- यह सर्द प्रकृति की औषधिय है, इसका रोगी वात प्रकृति का होता है, इस औषधि का र्दद ऊपर से प्रारम्‍भ होकर नीचे की तरफ बढता है, ठीक लीडम के विपरीत । इसका र्दद एक स्‍थान से एकाएक दुसरे स्‍थान पर पहुंच जाता है अर्थात र्दद अपना स्‍थान परिवर्तन करता है । रोगी को रात्री में हडियों में र्दद होता, घुटने के निचली हडडी का र्दर्द, इस औषधि का र्दद तीब्र एंव टींस मारने या शरीर में नुकीली वस्‍तु चुभाई जाने की तरह का र्दद होता है । बात रोगी को अगर हिदय रोग की शिकायत हो तो भी यह दवा गहराई तक पहुच कर रोग को ठीक कर देती है । कैल्मिया की पीडा अकसर बाये हाथ के ऊपर से शुरू होकर नीचे की तरफ दौडती है ।

5- सभी रोग ऑधी आने, बिजल चमकने, कडकने से पहले रोग बढते है (रोडोडेन्‍ड्रोन) :- यह दवा गठिया, वात तथा वात रोगी की एक महौषधियोअर्थात रसटाक्‍स के लक्षणों के विपरीत है । शरीर में सूई गडने की तरह र्दद हो तो इसका एक प्रमुख लक्षण समक्षना चाहिये (काली कार्ब में भी सूई गडने की तरह र्दद होता है ) र्दद वाली जगह को सेकने या गर्म पदार्थो के सेवन से रोग वृद्धि , र्दद वाले स्‍थान को दबाने से र्दद में कमी होती है, इसके अतरिक्‍त इसका एक और प्रधान लक्षण है जीभ व मुंह, पाकस्‍थल, सब जगह सूखापन के विशेष लक्षण देखे जाते है । यह दवा वात, कटि शूल, बडी ग्रन्थियों के दर्द, कभी कभी र्दद अपना स्‍थान अचानक बदलता है, र्दद वाली जगह फूलती है एंव गर्म लाल हो जाती है, बिजली की तरह चमकव हरकत करने, गर्म प्रयोग से घटता है । गठिया वात में कई बार पहले अंगूठे पर आक्रमण होता है । ऑधी पानी या बिजली कडकने से पहले जोडों में र्दद होता है, रोडोडेन्‍ड्रान की तरह रसटाक्‍स का र्दद भी हवा पानी से बढता है । परन्‍तु दोनों में मुख्‍य अन्‍तर यह है कि रसटाक्‍स का र्दद मॉसपेशियों में अधिक होता है  जबकि रोडोडेन्‍ड्रान का र्दद अंधड निकल जाने पर ठीक हो जाता है । रोडोडेन्‍ड्रान का र्दद अस्थियों में अधिक होता है, जबकि रसटाक्‍स का मॉसपेशीयों में ,रसटाक्‍स का र्दद वर्षा ऋतु भर बना रहता है, जबकि रोडोडेन्‍ड्रान का ऑधी तुफान आने पर होता है तथा इसके शान्‍त होते ही र्दद ठीक हो जाता है । रोडोडेन्‍ड्रान का र्दद  एक जोड से दूसरे जोड में जाता है अर्थात र्दद अपना स्‍थान परिवर्तित करता रहता है यह लक्षण रसटाक्‍स में नही पाया जाता । अण्‍डकोष वृद्धि, सूजन, तथा र्दद में भी इस दवा का प्रयोग होता है यह दाये अण्‍डकोष पर विशेष प्रभावकारी औषधि है । दवा का प्रयोग रोग स्थिति के अनुसार निम्‍न या उच्‍च शक्ति में की जा सकती है ।

6- र्दद की गति बिजली की भॉती, मॉस युक्‍त स्‍थानों में अधिक, र्दद हरकत से बढना है (एक्टिया रेसिमोसा) :- इसका दुसरा नाम सिमिसिफयूगा है, यह एक शीत प्रधान औषधि है जो स्‍त्रीयों की बीमारी हिस्‍टीरिया इत्‍यादि में उपयोगी होती है, शरीर के बायें भाग में इस दवा का विशेष क्रिया होती है, बायी गर्दन, कन्‍धे तथा बाये उरू के स्‍नायविक र्ददों में, डॉ0 घोष लिखते है कि विभिन्‍न्‍ा प्रकार के बाये अंगों की बीमारीयों को यह दवा आरोग्‍य करती है । र्दद की गति बिजली की भॉती चलती है, इसका र्दद मॉसयुक्‍त स्‍थानों में अधिक होता है, इसका र्दद हरकत से बढता है, रोगी जिस करवट लेटता है उसी तरुफ की मॉसपेशियों में कम्‍पन्‍न का होना इसका विशेष लक्षणों में से एक है, यह दवा बायी ओर के साईटिका के लिये विशेष रूप से उपयोगी है ,इस दवा के मानसिक लक्षणों पर भी विचार करना चाहिये । दवा का उपयोग निम्‍न शक्ति तथा उच्‍च शक्ति में सफलतापूर्वक किया जा सकता है ।

7-छोटी छोटी संधियों के र्ददों में (एक्टिया स्‍पाइकेटा) :- यह दवा छोटी छोटी संधियों के र्ददों में जैसे कारपस , तथा मेटाकारपस के दर्दो में प्रयोग होती है ,ऐडी तथा निम्‍नांगों की सूजन ,धुटनों की कमजोरी इत्‍यादि में इसका प्रयोग किया जाता है । दर्द की स्थिति के अनुसार 30 या 200 शक्ति में प्रयोग करना चाहिये ।

8- अंगुलियों के वात में तथा गाठों के वात (कोलोफाईलम) :- हाथ की अंगुलियों के वात में तथा गाठों के वात में कोलोफाईलम दवा का प्रयोग किया जाता है । पैरों की अंगुलियों के वात रोग में भी इससे अच्‍छे परिणाम मिले है आवश्‍यकतानुसार 30 या 200 शक्ति का प्रयोग प्रारम्‍भ में करना चाहिये , आवश्‍कता एंव रोग की स्थिति के अनुसार इसकी उच्‍च पोटेंसी का प्रयोग भी सफलता पूर्वक किया जा सकता है ।

9-छोटी छोटी संधियों के वात में (ऐपोसाइनम) :- छोटी छोटी संधियों या जोडो के र्दद में,पैरो के तलुवों एंव अंगुलियों में जेार का र्दद होता है, इसके वात का र्दद शरीर की सभी गॉठों में र्दद होता है, पैरों के तलुवों में झुनझुनी या आलपीन चुभाने जैसा र्दद होता है ,पैरों के तलवे ऑग की तरह गर्म होते है , एंव उनमें जलन होती है , ऐपोसाइनम , प्रारम्‍भ में इसकी निम्‍न शक्ति 30 का प्रयोग करना चाहिये इसके बाद धीरे धीरे इसकी पोटेंशी बढाई जा सकती है ।

10-टीबिया के र्दद में (मेजोरियम) –घूटने के नीचे की टीबिया बोन के र्दद पर इसका विशेष प्रभाव है(डा0सत्‍य 457) हमने तो इस रोग में इस दवा के 30 शक्ति में बहुत ही उपयोगी पाया है, परन्‍तु आवश्‍यकतानुसार इसकी उच्‍च शक्ति का भी प्रयोग किया जा सकता है ।

डॉ0   सत्‍यम सिंह चन्‍देल(बी0एच0एम0एस0, एम0डी0, पी0जी0वाय0एन0,सी0एफ0एन0)एंव  डॉ0 कृष्‍ण भूषण सिंह चन्‍देल( वरिष्ठ चिकित्‍सक )  



 



    

16
रचनाएँ
होम्योपैथिक के चमत्कार भाग -2
0.0
इस पुस्तोक से नये व्यिक्ति आसानी से होम्येाेपैथिक चिकित्सा के विषय में जानकारी प्राप्ति कर इसे सीख सकता है साथ ही होम्योसपैथिक चिकित्स कों को भी इसमें नई नई जानकारीयॉ मिलेगी
1

भूमिका

10 जून 2022
1
0
0

भूमिका पश्चिमोन्‍मुखी विचारधारा के अंधानुकरण ने कई जनोपयोगी, उपचार वि़द्यओं को अहत ही नही किया बल्‍की उनके अस्तित्‍व को भी खतरे में डाल रखा है । आज की मुख्‍यधारा से जुडी ऐलोपैथिक चिकित्‍सा जहॉ एक

2

प्रस्तावना (होम्योपैथिक के चमत्कार भाग 2)

12 जून 2022
0
0
0

(होम्योपैथिक के चमत्कार भाग 2) प्रस्‍तावना होम्‍योपैथिक मेटेरिया मेडिका की कई लेखकों की पुस्‍तकों  का गहन अध्‍ययन करने पर भी कई जगह सम्‍पूर्ण लक्षणों का विवरण प्राय: नही मिलता, परन्‍तु एक दक्ष होम्‍

3

अध्‍याय -1 विश्‍व प्रचलित चिकित्‍सा पद्धतियों का उदभव

12 जून 2022
0
0
0

      अध्‍याय -1    विश्‍व प्रचलित चिकित्‍सा पद्धतियों का उदभव   आदिकाल में मानव की आवश्‍यकतायें कम थी, वह अपने भूंख प्‍यास के सीमिति संसाधनों पर निर्भर हुआ करता था ।  आदिमानव यहॉ वहॉ फल फूल या जान

4

4-होम्‍योपंचर या होम्‍योएक्‍युपंचर

12 जून 2022
0
0
0

                                 4-होम्‍योपंचर या होम्‍योएक्‍युपंचर विश्व में प्रचलित विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियॉ किसी न किसी रूप में प्रचलन में है इसी कडी में होम्योपंचर चिकित्सा की जानकारी

5

5-नेवल एक्‍युपंचर बनाम नेवल होम्‍योपंचर

12 जून 2022
0
0
0

                 5-नेवल एक्‍युपंचर बनाम नेवल होम्‍योपंचर नेवल एक्‍युपंचर, एक्‍युपंचर की नई खोज है इसकी खोज व इसे नये स्‍वरूप में सन 2000 में कास्‍मेटिक सर्जन मास्‍टर आफ-1 चॉग के मेडिसन के प्रोफेसर यो

6

अध्‍याय-4 पैथालाजी रोग एंव होम्‍योपैथिक (विकृति विज्ञान) होम्योपैथी के चमत्कार भाग 2

12 जून 2022
1
1
0

अध्‍याय-4     पैथालाजी रोग एंव होम्‍योपैथिक (विकृति विज्ञान) होम्‍योपैथिक एक लक्षण विधान चि‍कित्‍सा पद्धति है इसमें किसी रोग का उपचार नही किया जाता बल्‍की लक्षणों को ध्‍यान में रखकर औषधियों का र्निवा

7

बच्‍चों के रोग अध्‍याय-5 ( होम्योपैथी के चमत्कार भाग -2 )

15 जून 2022
0
0
0

                                       ( होम्योपैथी के चमत्कार  भाग -2 ) अध्‍याय-5 बच्‍चों के रोग बच्‍चों के रोग इस प्रकार के होते है कि वे अपने लक्षणों को एंव अपनी बीमारीयों को नही बतला सकते] ऐसी

8

होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति से मिलती जुलती विभिन्‍न चिकित्‍सा पद्धतियॉ अध्‍याय -2

19 जून 2022
0
0
0

                                                                        (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग-2)     अध्‍याय -2   होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति से मिलती जुलती विभिन्‍न चिकित्‍सा पद्धतियॉ  

9

होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का उदभव अध्‍याय-3 (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग-2)

19 जून 2022
0
0
0

                                                                  (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग-2)     अध्‍याय-3      होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का उदभव     किसी ने सत्‍य ही कहॉ है, आवश्‍यकता आविष

10

हिस्‍टीरिया रोग अध्‍याय-7 (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग’2)

19 जून 2022
0
0
0

(होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग’2)                                                      अध्‍याय-7                                                    हिस्‍टीरिया    रोग  हिस्‍टीरिया एक ऐसा मानसिक रो

11

वृद्धावस्‍था और होम्योपैथीक उपचार अध्याय - 6

30 जुलाई 2022
0
0
0

                                         अध्‍याय-6                                          वृद्धावस्‍था वृद्धावस्‍था कोई रोग नही है ,यह जीवन की सच्‍चाई है , परन्‍तु वृद्धावस्‍था मे कई प्रकार की समस

12

नशे की आदते और उसके दुष्‍परिणाम ( अध्‍याय-8)

30 जुलाई 2022
0
0
0

                                          अध्‍याय-8                            नशे की आदते और उसके दुष्‍परिणाम   नशा किसी भी प्रकार का हो इससे स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा प्रभाव पडता है ,आज के इस बदलते दौर

13

मुंह में छाले (अध्‍याय-9

30 जुलाई 2022
0
0
0

अध्‍याय-9 मुंह में छाले मुंह में छाले होना कोई बीमारी नही है, यह प्राय: पेट की खराबी या कब्‍ज की वजह से भी हो सकती है, जिसका उपचार कब्‍ज दूर करने से प्राय: हो जाता है ,। परन्‍तु यदि बार बार लम्‍बे स

14

शरीर के विभन्‍न स्‍थलों की व्‍याधियॉ ( अध्‍याय-10)

30 जुलाई 2022
1
0
0

अध्‍याय-10 शरीर के विभन्‍न स्‍थलों की व्‍याधियॉ (अ)-कन्‍धे के दाये पार्श्‍व का र्दद – (1)-दवा की क्रिया दाहिनी तरफ दाहिना पैर वर्फ की तरह ठंडा (चिलि‍डोनियम मेजस) :- यह एक बनस्‍पतिक वर्ग की दवा है ज

15

पथरी ( अध्‍याय-11)

30 जुलाई 2022
0
0
0

                          अध्‍याय-11                               पथरी    पथरी एक ऐसा रोग है जिसमें मूत्राश्‍य एंव गुर्दे में पथरी बनने लगती है । कुछ मरीजों में तो उपचार के बाद बाद भी बार बार पथरी

16

क्‍वान्‍टम थेवरी

30 जुलाई 2022
1
1
0

क्‍वान्‍टम थेवरी क्‍वान्‍टम थेवरी :- जहॉ से भौतिक वस्‍तुओं का अस्तित्‍व समाप्‍त होने लगता है वहॉ से सूक्ष्‍म अर्थात क्‍वान्‍टम थैवरी का सिद्धान्‍त प्रारम्‍भ होने लगता है ।  यहॉ पर हमारे वस्‍तु शब्‍द

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए