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हिस्‍टीरिया रोग अध्‍याय-7 (होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग’2)

19 जून 2022

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(होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग’2)

                                                     अध्‍याय-7

                                                   हिस्‍टीरिया    रोग
 हिस्‍टीरिया एक ऐसा मानसिक रोग है जो प्राय:महिलाओं में अधिक होता है, इस रोग के लक्षण इस प्रकार होते है, कि प्राय: व्‍यक्तियों को ऐसा लगता है कि रोगी पर किसी दुष्‍ट आत्‍मा, भूत प्रेत का साया है या फिर किसी ने जादू टोना कर दिया है । हिस्‍टीरियाग्रस्‍त रोगीरोगावस्‍था में कभी एकटक निहारती है, तो कभी नाचने गाने लगती है,कभी कभी तो विचित्र मुद्राओं में विभिन्‍न प्रकार की हरकतें करने लगती है, उसकी इस प्रकार की हरकतों से घर वालों को लगता है कि उसे कोई शारीरिक बीमारी नही है,  बल्‍की इस पर किसी भूत प्रेत आदि का प्रभाव है, इसलिये कुछ व्‍यक्तियों में यह धारणा बन जाती है कि इस प्रकार के रोगी को किसी तांत्रिक को दिखला कर झाड फूंक कराना चाहिये, जबकि यह एक प्रकार का मानसिक रोग है ,अत: झाडफूक के चक्‍कर में न पड कर ऐसे रोग का उचित उपचार किया जाना चाहिये ।  हिस्‍टीरिया रोग ऐसी स्‍त्रीयों को अधिक होता है जो परिवार में अधिक लाडली होती है । यदि ऐसी बच्‍चीयों की शादी ऐसे परिवार में हो जाती है, जहॉ उसे पूरा प्‍यार नही मिलता या फिर ऐसी लडकीयॉ जो शादी से पूर्व किसी दूसरे से प्‍यार करने लगती है ,एंव उनकी शादी उनके मन पसंद लडके से नही  होती , इसी प्रकार की और भी कई समस्‍यायें है, जो उसके मस्तिष्‍क में घर कर जाती है । इससे उसके मस्तिष्‍क में तनाव होने  लगता है हार्मोस स्‍त्राव तथा सिम्‍फाईटम पैरासिम्‍फाईटिक तथा वेगस नर्व कीअसमानता के परिणाम स्‍वरूप उसका प्रभाव पाचन तंत्र प्रणाली पर देखा जाता है ।इसमें उसकी संसूचना प्रणाली के साथ नर्वस तंत्र अनियंत्रित हो जाते है , इसका ही परिणाम है कि वह कभी गाना गाने लगती है, तो कभी क्रोध से वस्‍तुओं को फेकने लगती है, कभी कभी तो विभिन्‍न मुद्राओं में अश्‍लील हरकते भी करने लगती है ।   चीन व जापान की एक प्राकृतिक उपचार विधि ची नी शॉग है , इसके उपचारकर्ताओं का मानना है कि इस रोग का मूल कारण तो रोगी के मस्तिष्‍क की सोच होती है , परन्‍तु इसका प्रभाव उसके संसूचना तंत्र एंव नर्वस तंत्र पर होता है । संसूचना एंव नर्वस तंत्र के संयुक्‍त प्रभावों का परिणाम रोगी के पेट पर महसूश होता है, इसलिये प्राय:इसके रोगी को पेट से एक गोला गले तक उठता हुआ प्रतीत होता है, इसके बाद ही उसे
हिस्‍टीरिया के दौरे पडने लगते है । नाभी चि‍कित्‍सकों का मानना है कि हिस्‍टीरिया का कारण रोगी अपने असन्‍तुलित विचारों को नियंत्रित नही कर पाता, इसी के कारण उसका मानसिक तनाव इतना बढ जाता है कि उसे पेट से गोले उठने या पेट में सिहरन की अनुभूतयॉ या कभी कभी र्दद उठता है, इस रोग का उदगम स्‍थल नाभी है एंव नाभी स्‍पंदन का अपनी जगह से हट जाना है ,जिसकी वहज से रस एंव रसायनों में असमानता होती है और यही इस रोग का प्रमुख कारण है ।  नाभी स्‍पंदन से रोग निदान चिकित्‍सकों का मानना है कि नाभी का सीधा सम्‍बन्‍ध मस्तिष्‍कव भावनाओं से होता है । उक्‍त दोनों चिकित्‍सा पद्धतियों में बिना किसी दवा दारू के कई प्रकार के मानसिक रोगों को ठीक कर दिया जाता है । ची नी शॉग चिकित्‍सा में पेट पर पाये जाने वाले आंतरिक अंगों को टारगेट कर उसे सक्रिय कर उपचार किया जाता है एंव नाभी चिकित्‍सा में नाभी स्‍पंदन का परिक्षण कर उसे यथास्‍थान लाकर उपचार किया जाता है,इन दोनो प्राकृतिक उपचार विधि में करीब करीब काफी समानतायें है, दोनो उपचार विधियों का मानना है कि नाभी स्‍पंदन का अपने स्‍थान से हट जाने पर संसूचना प्रणाली
एंव मस्तिष्‍क पर प्रभाव पर प्रभाव पडता है, इससे रस एंव रसायनो का संतुलन बिगड जाता है । इसे आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान में हार्मोन्‍स की असमानता भी कहते है ।    

                                 होम्‍योपैथिक
चिकित्‍सा एक लक्षण विधान चिकित्‍सा पद्धति है इसमें रोग के लक्षणों को औषधियों केलक्षणों से मिलाकर औषधियों का निर्वाचन कर उपचार किया जाता है । हिस्‍टीरियाग्रस्‍त रोगीयों का होम्‍योपैथिक औषधियों के लक्षणानुसार विवरण निम्‍नानुसार है ।  
1-किसी अप्रिय घटना या दु:ख को मन में दवा लेने से (इग्‍नेशिया):-किसी अप्रिय घटना जैसे किसी प्रियजन या घर के किसी सदस्‍य की मृत्‍यु हो जाना ,या प्रेमी का उसे छोड देना ,किसी शोक या दु:ख से उत्‍पन्‍न मानसिक रोग, रोगी अपने दु:ख को अपने मन के अन्‍दर दवाये रहता है किसी से शेयर नही करती आदि स्थिति के कारण हिस्‍टीरिया हो तो यह दवा उपयोगी है इसका रोगी एकान्‍त में बैठा अपने दु:ख को सहा करता है वह अपना दुख दूसरों को नही बतलाता,इसके रोगी का स्‍वाभाव बदलते रहता है, एक क्षण रोना तो दुसरे ही क्षण हॅसने लगता है यह हिस्‍टीरिया रोग की महौषधी है परन्‍तु डॉ0 डनहम का कथन है कि कोई भी औषधिय हिस्‍टीरिया रोग के लक्षणों से इतनी नही मिलती जितनी यह मिलती है, परन्‍तु डॉ0 कैन्‍ट का कहना है कि यह हर प्रकार के हिस्‍टीरिया रोग को दूर नही करती, परन्‍तु यह ऐसे रोगियों को ठीक कर देती है जो अत्‍यन्‍त बुद्धिमान हो ,कोमल तथा मृदुस्‍वाभाव के नाजुक तथा अत्‍यन्‍त भावुक प्रवृति के हो किन्‍ही कारणों से अत्‍यन्‍त उत्‍तेजित हो जाने पर उनका ऐसा व्‍यवहार हो जिसे वे स्‍ंवय न समक्ष सके । हिस्‍टीरिया में उक्‍त लक्षणों के साथ सिर में तेज र्दद या मूर्छा हुआ करती है इसके साथ पेट से एक गोला आकर गले में अटकता है । यह सर्द प्रकृति की दवा है । इस दवा के विषय में हैनिमैन सहाब का कहना है कि इस दवा को सोने से पहले देने से रोगी को बैचेने हो सकती है । 30 ,200 पोटेंसी में दवा का प्रयोग किया जा सकता है ।  

-पेटमें अफारे के परिणाम से गोलें का उठता श्‍वास लेने में कष्‍ट है (एसाफेटिडा):- यह दवा हींग से बनाई जाती है,पेट में वायु संचय होने पर आयुर्वेदिक में हींग से बनी दवाओं का प्रयोग होता है,हिस्‍टीरिया में पेट से एक गोला उठता है जो ऊपर की तरफ गले में आ कर रूकता है ,यह पेट में गैस बनने की बजह से जब गैस नीचे के रास्‍ते से न निकल कर ऊपर गले की तरफ बढती है इसका परिणाम यह होता है कि रोगी को बार बार डकारेआती है । पेट में गैस बनने एंव उसकी गति उर्ध्‍वगामी याने ऊपर की तरफ हो तो यह दवा हिस्‍टीरिया रोग में प्रयोग की जा सकती है ।  
3-आनन्‍द नाचना गाना कभी क्रोधित दुखी पेट में गोला उठना (क्रोकस सैटाईवा) -यह दवाकेशर से बनाई जाती है,हिस्‍टीरिया रोग में बहुत अधिक आनन्‍द होना, नाचना और गाना, कभी क्रोध तो कभी दु:खी होना आदि में इस दवा का प्रयोग किया जाता है ,रोगी को पेट में कोई गोलाकार जिन्‍दा वस्‍तु धुमने फिरने का अहसास होता है यह क्रोकस सैटाईवा का खॉस लक्षण है इस दवा को बार बार दोहराने की जरूरत पडती है अत: आवश्‍यकतानुसार इसकी निम्‍न शक्ति का प्रयोग उचित है आवश्‍यकता पडने पर इसकी उच्‍च शक्ति का प्रयोग भी किया जा सकता है परन्‍तु प्रारम्‍भ में निम्‍म शक्ति की दवाओं से ही उपचार करना उचित है ।

4-स्‍नायु शूल न्‍यूरैल्‍जिया (साइप्रिपिडियम प्‍यूबिसेन्‍स) - हिस्‍टीरिया ग्रस्‍त महिलाओं में नर्तन रोग, (कोरिया) स्‍नायु शूल (न्‍यूरैल्‍जिया)तथा स्‍नायु सम्‍बन्धित रोगों में साइप्रिपिडियम प्‍यूबिसेन्‍स दवा निर्देशि है । मानसिक खराबी आदि लक्षण रहने पर यह दवा उपयोगी है । कभी कभी कुछ चिकित्‍सक हिस्‍टीरिया रोग में अन्‍य सुनिर्वाचितऔषधियों के साथ मानसिक गडबडी के लक्षणों के उपचार के लिये इसका प्रयोग करते है दवा को आवश्‍यकतानुसार निम्‍न या उच्‍च शक्ति में प्रयोग किया जा सकता है ।  

5-हिस्‍टीरिया में पेट से गोले का उठना जो गले में आकर अटकता हो (कोनियम मेक):-पेट से एक गोला उठता है जो गले में आकर अटकता है, जिसे रोगी बार बार निगलने का प्रयास करती है जिसे ग्‍लोबस हिस्‍टेरिकस कहते है  ,परन्‍तु वह गोला नीचे खिसक कर पुन: गले में आ जाता है ,इस औषधिय में ग्रन्थियों का कडा होना है जो स्‍तन गाठ , कैंसर टयूमर आदि में हो सकती है प्रोस्‍टेट में भी यह स्थिति निमिर्त होती है डॉ सत्‍यवृत जी ने लिखा है कि जब स्‍त्रीयों को अपने शरीर की ग्रांथियों का कडापन देखकर मासूसी, नउम्‍मीद, होने लगे तब इस प्रकार का गोला पेट से उठा करता है । इसमें जबरजस्‍त संयम के बुरे मानसिक परिणाम के लक्षण भी देखे जाते है ,इस औषधिय का विलक्षण लक्षण यह है कि रोगी के ऑख बन्‍द करते ही पसीना आने लगना तथा ऑखे खुलते ही पसीने का बन्‍द हो जाना यह दवा सर्द प्रकृति की है ।  दवा 6 ,30,200 पोटेंसी में प्रयोग करने के निर्देश है ।  

6-तेज सिर र्दद या मूर्छा के साथ पेट से गोला उठे रोग एक जगह टिक न सके (बेलेरियम)-:सख्‍त सिर र्दद, सामान्‍य कारण से मूर्च्‍छा होने के साथ पेट से गर्म भांप की तरह गोला उठे, रोगी का पूरा स्‍नायु संस्‍थान उत्‍तेजित तथा चिन्‍ताग्रस्‍त होता है रोगी को स्‍नायुविक बैचेनी घेर लेती है । यह दवा स्‍नायु संस्‍थान की ऐसी बैचेनी, उत्‍तेजना तथा चिन्‍ता को ठीक कर देती है इससे रक्‍त संचार की उत्‍तेजना भी कम हो जाती है एंव उसे शान्ति का अनुभव के साथ नींद आने लगती है ।स औषधिय का प्रधान लक्षण बैचैनी है इसी बैचेनी का परिणाम यह होता है कि रोगी एक जगह पर टिक कर नही बैठ सकता वह जगह बदलते रहता है यहॉ वहॉ चलता फिरता है बातों में भी वह किसी एक विषय पर केन्‍द्रित नही होता इसका परिणाम यह होता है कि वह एक विषय से हट कर दूसरे विषय पर छलॉग लगाता है दिमाक तेज विचारों से भरा रहता है । परन्‍तुमन में काल्‍पनिक वस्‍तुऐ दिखालाई देने लगती है स्‍वयम को वह समक्षती है कि जो वह है वह नही है वह कोई और ही है । इस दवा का विलक्षण लक्षण यह है कि वह जब तक बैठी या लेटी रहती है तब तक उसके मन में ऐसे विचार आया करते है ज्‍योही वह उठकर चलने फिरने लगती है उसके ये विचार गायब हो जाते है । रोगी अपने को हल्‍का महसूस करती है, रोगी को सिर पर वर्फ की तरह ठंडा महसूस होता है,इस प्रकार के हिस्‍टीरिग्रस्‍त लक्षणों में इस दवा का मूल अर्क (मदर टिंचर) या 6 ,
30 शक्ति की दवा को दिन में तीन बार देना चाहिये ।

7-बैंचेनी, घबराहट सम्‍पूर्ण अंग में रोगी अपने को तथा दूसरों को चोट पहुंचाता है शरीर
की मांसपेशीयों में कम्‍पन्‍न -(टेरेन्‍टुला हिस्‍पैनिका)-
यह मकडी के विष से बनाई जाने वाली दवा है । इस दवा में सम्‍पूर्ण शरीर में बैचेनी रहती है तथा मॉसपेशीयों में कम्‍पन्‍न के लक्षण पाये जाते है , इस दवा का एक प्रमुख लक्षण है वह यह कि संगीत से रोगी के लक्षणों में कमी आती है ,परन्‍तु कभी कभी संगीत से वह उत्‍तेजित होकर नाचने गॉने लगती , रोगी को कभी भी दौरे पड जाते है एंव वह स्‍वयम को या दूसरों को चोट पहुचाने का प्रयास करती है,रोगी की मॉसपेशीयों में कम्‍पन्‍न्‍ होता है इससे वह फडकती है हाथ पैर हिलते रहते है झटके लगते है ऐठन पडती है इस उग्र दशा में रोगी बिना होश के अजीब तरह की
हरकत करता है हाथ पैरों को नाचने की सी अवस्‍था में बनाता रहता है । इस औषधिय का एक विशेष लक्षण ध्‍यान रखने योग्‍य है वह है जब रोगी की तरफ ध्‍यान दिया जाता है तब ही उसे हिस्‍टीया के दौरे या आक्रमण होता है , रोग का एक निश्चित समय पर होना ,रोगी हर बात में जल्‍दी जल्‍दी करता है जो काम हो उसे भी जल्‍दी जल्‍दी पूरा करना चाहता है जल्‍दबाजी के लक्षणों को भी ध्‍यान में रखना चाहिये इस औषधि की रोगणी को बहुत दिनों तक स्‍थाई फिट आते है जल्‍दी जल्‍दी फिट आते है (एपिलेप्टि फार्म) अत: यह दवा एपिलेप्टि फार्म हिस्‍टीरिया की विशेष दवा है । दवा सर्द प्रकृति के रोगीयों के अनुकूल है ।  यहॉ   पर मै थोडा सा होम्‍योपैथिक प्रुविंग से हट कर इस दवा को याद रखने के लिये एक   सामान्‍य सा उदाहरण पेश कर रहा हूं आप सब ने मकडी को देखा ही होगा वह शांत नही बैठती उसके हाथ पैरों में हमेशा फडकन व कम्‍पन्‍न होता रहता है किसी भी कार्य को वह तीब्रता से करती है तथा हमेशा बैचैनी जैसी स्थिति में दिखलाई देती है , उसकी तरफ देखा जाये तो उसके शरीर की समस्‍थ हरकते बढ जाती है वह कॉपने धरधराने लगती है उसके हॉथ पैरों में कम्‍पन्‍न होने लगता है वह नाचने वा भागने का प्रयास करती नजर आती है , हर कार्य में उसे शीध्रता रहती है ।  हिस्‍टीरियाग्रस्‍त रोगीयों को यह दवा 6, 30, 200 पोंटेंसी में देना चाहिये ।

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