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भूमिका

10 जून 2022

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भूमिका

पश्चिमोन्‍मुखी विचारधारा के अंधानुकरण ने
कई जनोपयोगी, उपचार वि़द्यओं को अहत ही नही किया बल्‍की उनके अस्तित्‍व को भी खतरे
में डाल रखा है ।

आज की मुख्‍यधारा से
जुडी ऐलोपैथिक चिकित्‍सा जहॉ एक व्‍यवसाय का रूप धारण करती जा रही है, वही यह महगी
चिकित्‍सा, मध्‍यम एंव गरीब व्‍यक्तियों
की पहुंच से दूर होती जा रही है । उपचार
के इस व्‍यवसायीक भ्रमं जाल ने मुख्‍य चिकित्‍सा (अग्रेजी) पद्धतियों पर कई सन्‍देहात्‍मक
प्रश्‍नों को रेखांकित किया है, परन्‍तु इस चिकित्‍सा पद्धति ने अपने नये नये
अनुसंधान नई खोज से अनगिनित मरीजों की जान बचाई है, इस बात को कहने में भी कोई सन्‍देह
नही है कि रोग की कई जटिल व विषम परस्थितियों में इसने रोगीयों को एक नया जीवन दान
दिया है, परन्‍तु आज के इस व्‍यवसायिकरण के दौर में यह चिकित्‍सा पद्धति अपने
चिकित्‍सा जैसे सेवा भाव, पुनित, जनकल्‍याण उदेश्‍यों से भटकती नजर आ रही है । रोग
की जटिल व विषम परस्थितियों में यही एक मात्र सहारा है ,इस लिये गलती इस उपचार या
पैथी की नही बल्‍की इस पैथी को साधन सम्‍पन्‍न जीवकोपार्जन के लिये इसे व्‍यवसाय
के रंगों में रंगना गलत है ।

महॅगे से मंहॅगे परिक्षण अब एक चिकित्‍सकीय
आवश्‍यकता बनती जा रही है ,इसके पीछे देखा जाये तो चिकित्‍सक या चिकित्‍सा संस्‍थाओं
का स्‍वार्थ अधिक नजर आता है और यह बात मरीज भी समक्षते है परन्‍तु वो खामोश है ।
अग्रेजी चिकित्सा उपचार प्रक्रियाओं के व्‍यवसायीक प्रतिस्‍पृद्धा की दौड में दवा
निर्माता कम्‍पनीयॉ भी पीछे नही है, उनकी व्‍यवसायीक प्रतिस्‍पृद्ध ने सस्‍ती सुलभ
औषधियों के मूल्‍यों को दुगना, चौगना ही नही, बल्‍की कई गुना बढा दिया है । आज
छोटे से लेकर बडे से बडा डॉ0 जेनरिक दवाये न लिखकर ब्रान्‍डेड दवाये लिखते है
उपचार की इन दोनों प्रक्रियाओं का बोझ सीधे मरीज व उसके परिवार पर अनावश्‍यक,
आर्थिक भार पडता है । बात रोग परिक्षण की हो या कई गुना मंहगी दवाओं की हो सभी में
डॉ0 का कमीशन तैय होता है ।

अब चलते है रोग उपचार के
शाल्‍य क्रिया के फैलाये भंवरजाल की तरफ, चिकित्‍सा उपचार का यह भंवरजाल भी किसी
जादूगर के भ्रमित इंद्रजाल से कम नही है, कभी कभी जहॉ शाल्‍यक्रिया (अपरेशन) की
आवश्‍यकता न हो वहॉ कई चिकित्‍सक शाल्‍यक्रिया हेतु रोगी को विवश कर देते है । बडे
बडे चिकित्‍सालयों के बडे से बडे खर्चो की पूर्ति का यह एक माध्‍यम होता है बडे से
बडे चिकित्‍सालय अपने अस्‍पतालों के मेनेजमेन्‍ट के खर्च को मरीज के शाल्‍यक्रिया
एंव उपचार जैसे पैसों के गणित से पूरा करने में नही चूंकते ।

ये बडे से बडे नामी चिकित्‍सक एंव चिकित्‍सालय
अपरेशन या अस्‍पतालों की सुविधा अस्‍पताल में भर्ति, विभिन्‍न उपचारकर्ताओं की
सेवायें आदि के नाम पर आर्थिक गणित के गुणा भाग के फार्मूला को पहले से ही तय कर
चुके होते है ।

बुनियादी स्‍वास्‍थ्‍य
सेवाओं को आम जनता तक पहुंचाने में सरकारे विफल ही रही है । इसका सीधा प्रभाव आम
जनता भुगत रही है वही शासकीय चिकित्‍सा सेवाओं के प्रति जन सामान्‍य का विश्‍वास
कम होते परिणामों ने चि‍कित्‍सा के व्‍यवसायीकरण में अपना मौन योगदान ही नही दिया
बल्‍की इसे अपने व्‍यवसायीक भंवारजाल को शासन की ऑखों के सामने फलने फूलने का पूरा
पूरा मौका दिया है, यदि शासकीय स्‍कूल व चिकित्‍सालयों में गुणवत्‍ता पूर्ण
,भरोसेमंद सुविधायें उपलब्‍ध होती तो प्राईवेट स्‍कूल व प्राईवेट चिकित्‍सालायो के
अनावश्‍यक खर्च के लिये जनता को भटकना नही पडता ।

राजनैतिक दले सत्‍ता की लोलुप्‍ता में कुंभकरण
की नीद सो रही है, बुनियादी आवश्‍कताओं का ढांचा चरमाराते हुऐ देख, जनता अंधी,
गूंगी ,बहरी बन तमाशा देख रही है, बडे बडे चिकित्‍सालयों के स्‍टेनिंग आपरेशन कर
न्‍यूज चैनलों पर पोले खोली गई परन्‍तु धीरे धीरे बात आई और गयी होती चली गई ।

मुख्‍य धारा की चिकित्‍सा पद्धति को छोड कर
तथाकथित अन्‍य चिकित्‍सा पद्धतियों को हॉसिये में नही रखा जा सकता, आज मुख्‍यधारा
से जुडी चिकित्‍सा पद्धतियों के खर्चीले उपचार से तंग आकर जनता अन्‍य वैकल्पिक
चिकित्‍सा पद्धतियों की तरफ भाग रही है ,जिसके आशानुरूप परिणाम भी सामने आ रहे है

आज के इस व्‍यवसायीक प्रतिस्‍पृद्धा के युग
में जहॉ शिक्षा से लेकर स्‍वास्‍थ्‍य जैसी मूल भूत बुनियादी आवश्‍यकतायें व्‍यापार
बनती जा रही है । बडा दु:ख होता है जब चिकित्‍सा जैसे पुनित कार्य को बडे बडे
चिकित्‍सकों व चिकित्‍सालयों द्वारा धनार्जन का साधन बनाया जाता है । होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा पद्धति सरल होने के साथ सस्‍ती
सुलभ एंव सभी की पहूंच तक है । परन्‍तु पश्चिमोन्‍मुखी विचारधारा के अंधानुकरण की
वजह से जन सामान्‍य का झुकाव ऐलोपैथिक चिकित्‍सा पर अधिक है । जब तक बडे से बडे
परिक्षण व उपचार न हो जाये मरीज को भी तसल्‍ली नही मिलती ।

होम्‍योपैथिक
चिकित्‍सा एक लक्षण विधान उपचार विधि है, इसमें किसी रोग का उपचार न कर लक्षणों
(प्रबल मानसिक लक्षण,एंव व्‍यापक लक्षणों) का उपचार किया जाता है । इससे बडे से
बडे रोगों का निवारण आसानी से हो जाता है, इन्‍ही उदेश्‍यों को ध्‍यान में रखते
हुऐ, मेरे पिता डॉ0 कृष्‍ण भूषण सिंह चन्‍देल ने होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार पुस्‍तक
लिखी थी, जो रोजगार प्रकाशन मथुरा उ0प्र0 से प्रकाशित हुई थी ।

मेरे कई लेख होम्‍योपैथिक एंव चिकित्‍सा
सम्‍बन्धित विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में कालेज में अध्‍ययन करते समय से ही
प्रकाशित होते रहे, मन में लम्‍बे समय यही विचार था कि मै होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार
भाग-2 पुस्‍तक लिखू ताकि होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार पुस्‍तक में जो कमी रह गयी थी
वह पूरी हो जाये एंव यह पुस्‍तक होम्‍योपैथिक से जुडे सभी वर्ग के पाठकों के लिये
उपयोगी सिद्ध हो सके ।

होम्‍योपैथिक के चमत्‍कार भाग-2 पुस्‍तक में
यह प्रयास किया गया है ताकि पाठक प्रथमदृष्‍या लक्ष्‍णों को देखकर औषधियों का
मिलान कर सके (प्रबल मानसिक लक्षण ,एंव व्‍यापक लक्ष्‍ण) , इस उदेश्‍य से हमने
किसी भी औषधि के पूर्व संक्षिप्‍त में लक्ष्‍णों को लिखा है, यह उसे औषधियों के रोग लक्ष्‍णों को खोजने में
मदद करेगी, परन्‍तु हमारा आगृह है कि चिकित्‍सक प्रमाणित मेटेरिया मेडिका से पुस्‍तक
में दी गई औषधीयो का अध्‍ययन गहनतापूर्वक अवश्‍य करे ।

होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का मूल आधार जीवन
शक्ति है जिसे आयुर्वेद में प्राण ऊर्जा चाईनीज चिकित्‍सा में ची अर्थात जीवन
ऊर्जा कहते है । होम्‍योपैथिक चिकित्‍सा का मानना है कि रोग पहले जीवन शक्ति को
प्रभावित करती है, इसके बाद वह भौतिक शरीर में प्रल्‍क्षित होती है, जीवन शक्ति के बारे में हमने इस पुस्‍तक में लिखा है इसलिये इसे बार
बार दोहराने की मै आवश्‍यकता नही है, बडे दु:ख के साथ कहना पडता है कि मेरे साथ
होम्‍योपैथिक कालेज से पढने वाले अधिकाश छात्र होम्‍योपैथिक जैसी सरल चिकित्‍सा को
छोड कर अन्‍य चिकित्‍सा पद्धतियों की तरफ भाग रहे है जबकि इस रहस्‍यमयी लक्षण
विधान चिकित्‍सा पद्धति में कई ऐसे रोगों का उपचार सहजतापूर्वक किया जा सकता है जो
आज की मुख्‍यधारा से जुडी चिकित्‍सा पद्धतियॉ नही कर पाती, इसका प्रमुख कारण है हम
किसी रोग का उपचार न कर लक्षणों का उपचार करते है , इसलिये कभी कभी औषधियों के ऐसे
प्रबल मानसिक व व्‍यापक लक्षण जिनका सीधा प्रभाव जीवन शक्ति पर होता, यह सीधे जीवन
शक्ति को सदृष्‍य विधान के अनुसार छेडती है इसका परिणाम जीवन शक्ति प्रबल होकर मूल
रोग पर प्रहार करती है इससे भौतिक रोग स्‍वयम ठीक हो जाते है ।

इस पुस्‍तक के प्रारम्‍भ में होम्‍योपैथिक
चिकित्‍सा से मिलती जुलती चिकित्‍सा पद्धतियों की जानकारीयॉ दी गयी है ताकि होम्‍योपैथिक
चिकित्‍सक, छात्र , तथा इसमें अभिरूचि रखने वाले पाठकों को इसकी जानकारी हो सके ।
इस पुस्‍तक को सरल तथा सुगम बनाने के लिये सरल हिन्‍दी भाषा शैली का प्रयोग किया
गया है ।

हमारी संस्‍था स्‍वयंम के संसाधनों द्वारा जन जागरण धमार्थ चिकित्‍सालय मकरोनिया सागर का संचालन इस उद्श्‍य से
किया जा रहा है ताकि जरूरतमंद रोगीयों को नि:शुल्‍क उपचार व औषधियॉ उपलब्‍ध हो सके
। इस नि:शुल्‍क चिकित्‍सालय के संचालन का विचार इसलिये आया जब हमने देखा कि कई
निर्धन, गरीब और ऐसे भी व्‍यक्ति जिनके पास सभी कुछ है परन्‍तु कई परिवारों द्वारा
उन पर ध्‍यान नही दिया जाता उनमें कई वृद्ध व्‍यक्ति भी थे, इसे देखते हुऐ हमारी
संस्‍था ने इस धर्मा‍थ चिकित्‍सालय का शुभारंभ सागर के मकरोनिया क्षेत्र में किया

डॉ0
सत्‍यम सिंह चन्‍देल

(बी0एच0एम0एस0, एम0डी0, पी0जी0वाय0एन0,सी0एफ0एन0)

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रचनाएँ
होम्योपैथिक के चमत्कार भाग -2
0.0
इस पुस्तोक से नये व्यिक्ति आसानी से होम्येाेपैथिक चिकित्सा के विषय में जानकारी प्राप्ति कर इसे सीख सकता है साथ ही होम्योसपैथिक चिकित्स कों को भी इसमें नई नई जानकारीयॉ मिलेगी
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भूमिका

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(होम्योपैथिक के चमत्कार भाग 2) प्रस्‍तावना होम्‍योपैथिक मेटेरिया मेडिका की कई लेखकों की पुस्‍तकों  का गहन अध्‍ययन करने पर भी कई जगह सम्‍पूर्ण लक्षणों का विवरण प्राय: नही मिलता, परन्‍तु एक दक्ष होम्‍

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