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मुंह में छाले (अध्‍याय-9

30 जुलाई 2022

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अध्‍याय-9

मुंह में छाले

मुंह में छाले होना कोई बीमारी नही है, यह प्राय: पेट की खराबी या कब्‍ज की वजह से भी हो सकती है, जिसका उपचार कब्‍ज दूर करने से प्राय: हो जाता है ,। परन्‍तु यदि बार बार लम्‍बे समय तक मुंह में छाले बने रहते है तो यह समस्‍यॉ आगे चल कर मुंह के कैंसर का करण बन सकती है परन्‍तु इस प्रकार की समस्‍या प्राय: ऐसे लोगों को होती है जो लगातार लम्‍बे समय तक तम्‍बाखू , तम्‍बाखू मिश्रित खैनी,गुटका ,पान मसाला, अधिक चूना सुपारी युक्‍त पान खाना आदि ऐसे व्‍यक्तियों को मुंह में छॉले हो जाते है ।

1- मुंह में छॉले (मार्कसाल) :-  डॉ0 ज्‍हार लिखते है कि मुंह के छालों के लिये मार्कसाल मुख्‍य औषधि है मुंह के छॉले तो क्‍या पेट तथा ऑतों की श्‍लैष्मिक झिल्‍ली के धॉवों तक के लिये भी यह उत्‍तम औषधिय है । अगर मार्क साल से लाभ शुरू होकर पॉच छै: दिन के बाद रूक जाये तो सल्‍फर देने से तुरन्‍त लाभ होता है । यदि सल्‍फर से भी पूरा लाभ शुरू होकर पॉच छै: दिन के बाद रूक जाये तो कैल्‍केरिया कार्ब  देने से तुरन्‍त लाभ होता है ।  मार्क सॉल ,सल्‍फर तथा कैल्‍कैरिया कार्ब इस रोग की रोक थाम कर देते है (डॉ0 सत्‍यवृत रोग और उनकी चिकित्‍सा )

अत: मुंह के छॉले होने पर जब मुंह व मसूढे की श्‍लैष्मिक झिल्‍लीयों में धॉव सूजन हो तो सर्वप्रथम मार्क सॉल को याद किया जाना चाहिये प्राय: इससे लाभ हो जाता है । यदि लाभ न हो या होते होते रूक गया हो तो उपरोक्‍त बतलाई दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है । इस दवा को 30 पोटेंसी या 200 पोटेंसी में प्रयोग कर अच्‍छे परिणाम प्राप्‍त किये जा सकते है ।

2-मुंह के छॉलो के साथ हाथों पर भी छॉले उभरे (नेट्रम म्‍यूर):- अगर मुंह के छॉलों के साथ हाथों पर भी छाले उभर आये तो नेट्रम म्‍यूर 30 शक्ति में दिन में तीन बार देना चाहिये । बायोकेमिक में देना हो तो इसकी 3 ,6, 12, 30,200-एक्‍स पोटेंसी को दिन में तीन बार देना चाहिये । मुंह के छॉले होने पर दवा को बार बार दोहराना पडता है अत: इस दवा को निम्‍न शक्ति में ही प्रयोग करना उचित है । बढी हुई रोग स्थिति के अनुसार इस दवा की उच्‍च शक्ति का भी प्रयोग किया जा सकता है ।

3-मसूढो के अन्‍दर क्षतयुक्‍त कैंसर (रमैनस कैलि):- डॉ0 घोष ने लिखा है कि ओठों एंव मसूढे के अन्‍दर क्षत युक्‍त कैंसर मे रैमनस कैलि दवा का प्रयोग करना चाहिये ।

4-ओठों का कोने के फटने पर (एन्‍टी क्रूड, नेट्रम म्‍यूर, नाईटिंक ऐसिड):- ओठों के कोने फटने पर वैसे तो नाईट्रिक ऐसिड 30 में दिन में तीन बार देने से ठीक हो जाते है । नेट्रम म्‍यूर या एन्‍टी क्रूड दवा 30 पोटेंशी में दिन में तीन बार देने से ओठों के फटना प्राय: ठीक हो जाता है ।

5-श्‍लैस्मिक झिल्‍ली का क्षय (स्‍कूकम चूक 3 एक्‍स ):- स्‍कूकम चूक यह एक एण्टि सोरिक औषधि है चर्मरोग व श्‍लैस्मिक झिल्‍ली के ऊपर इसकी प्रधान क्रिया होती है मध्‍य कर्ण के प्रदाह आदि में भी इसका उपयोग होता है । मुंह की श्लैस्मिक झिल्‍ली के क्षय होने पर इसे 3-एक्‍स पोटेंसी में दिन में तीन बार प्रयोग करना चाहिये ।

6-तम्‍बाखू चबाने की आदत (कैलेडियम, ऐवाना सिटावम क्‍यू):- ऐसे व्‍यक्ति जो आदती तम्‍बाखू चबाते रहते है । इसके नियमित सेवन से गालों के अन्‍दर मुंह मे छॉले हो जाते है एंव कैंसर होने की संभावना बढ जाती है ,एक बार यदि तम्‍बाखू खाने की लत लग गयी तो समक्षों इसे छोडना प्राय: नमुमकिन होता है, परन्‍तु ऐसा नही है कि इसे छोडा न जा सके दृढ इक्‍च्‍छा शक्ति से इसे छोडा जा सकता है । यहॉ पर यह बात सर्वविदित है कि तम्‍बाखू सेवन करने वाले व्‍यक्ति को यह मालुम होता है कि इसके नियमित व लम्‍बे समय तक सेवन से जानलेवा कैंसर हो सकता है, इसके बाद भी वह इसे नही छोड सकता ऐसे व्‍यक्तियों को तम्‍बाखू छोडने के लिये प्रथम दिन सल्‍फर 200 शक्ति की एक मात्रा, दुसरे दिन कैलेडियम 200 शक्ति में दवा को प्रारम्‍भ में तीन तीन दिन के अन्‍तर से, इसके बाद प्रति सप्‍ताह एक मात्रा इसके साथ एवाना सिटावम क्‍यू की पन्‍द्रह से बीस बूद दिन में तीन बार लगातार कुछ दिनों तक लेने से तम्‍बाखू के प्रति अरूचि पैदा हो जाती है और धीर धीर इसकी आदत कम होने लगती है ।

7-पान तम्‍बाखू के सेवन से मुंह में छॉले (कैलेन्‍डुला, इचिनेशिया, हाईड्रास्‍टीस केन):- मुंह में छालें कई कारणों से होते है ,परन्‍तु उसमें अधिकाशत: पान तम्‍बाखू, चूना मिश्रित पान मसाले, सुपारी आदि प्रमुख है । इस प्रकार के मुंह के छॉलों पर कैलेन्‍डुला क्‍यू ( यह दवा गेंदे से बनाई जाती है जो धॉव के लिये एक सर्वश्रेष्‍ट दवा है) दूसरी दवा है इचिनेशिय क्‍यू  यह दवा भी छॉल व म्‍यूकस मेम्‍बरे के क्षय पर अच्‍छा कार्य करती है तीसरी दवा है हाईड्रास्टिस केन क्‍यू इन तीनों दवाओं के मदर टिंचर को समान मात्रा में ले कर किसी शीशी में भर कर उसे अच्‍छी तरह से मिला ले इसके बाद एक कप पानी में बीस से पच्‍चीस बूंद मिला कर उसे मुंह में कुछ देर तक भरे रहे बाद में कुल्‍ला कर ले इससे मुंह के धॉव छॉले आदि ठीक हो जाते है ।

8-पान तम्‍बाखू के नियमित सेवन से मुंह में छॉले (करक्‍यूमा लॉन्‍गा क्‍यू, ओसिमम सेनेक्‍टम क्‍यू0 तथा कैलेन्डुला ):-पान तम्‍बाखू के नियमित सेवन से मुंह में छॉले होने पर करक्‍यूमा लोन्‍गा क्‍यू, यह दवा हल्‍दी से बनाई जाती है हल्‍दी में करक्‍यूमा पाया जाता है, जो कैंसर कोशिकाओं को फैलने से रोकता है एंव कैंसर के उपचार की यह एक अचूक दवा है । दूसरी दवा है ओसिमम सेनेक्‍टम यह दवा तुलसी से बनाई जाती है, इसके प्रयोग से कैंसर व छॉलों में लाभ होता है तीसरी दवा है कैलेन्‍डुला यह दवा धॉव व छॉले से मुंह के कटने छिलने पर उपयोगी है । उक्‍त तीनों दवाओं को मदर टिंचर अर्थात क्‍यू में बराबर मात्रा में ले कर उसे किसी शीशी में रख कर अच्‍छी तरह से मिला ले फिर इसकी बीस से पच्‍चीस बूंदे एक गिलास पानी में ले उसे मुंह में भर कर कुछ देर मुंह में रख कर कुल्‍ल करते जाये, बाद में दस दस बूंद आधे कप पानी में मिला कर उसे पी जाये इससे छॉले व मुंह के धॉव जल्दी भर जाते है ।

9-कैंसर होने पर रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिये (टिनोस्‍पोरा कार्डीफोलिया क्‍यू) :- शरीर में कैंसर इम्‍यूनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण होता है, इसलिये आयुर्वेद में कैंसर के उपचार में अन्‍य निर्वाचित दवाओं के साथ गिलोय, जिसे अमृता, भी कहॉ जाता है का प्रयोग किया जाता है । इस दवा के सेवन से शरीर में इम्‍यूनिटी शक्ति एंव रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है, इससे कैंसर आगे नही बढता । हमारे होम्‍योपैथिक में भी गिलोय से बनने वाली दवा का नाम है टिनोस्‍पोरा कार्डीफोलिया इस दवा को मदर टिंचर में ले एंव इसकी बीस से पच्‍चीस बूंदे आधा कम पानी में मिला कर इसे दिन में तीन से चार बार अन्‍य निर्वाचित दवाओं के साथ प्रयोग करना चाहिये । यह दवा बार बार आने वाले बुखार एंव वृद्धावस्‍था की कमजोरी में भी अच्‍छा कार्य करती है ।

10-रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिये (अश्‍वगंधा):- जैसा कि हमने पहले भी कहॉ है कि कैंसर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने की वजह से होता है एंव शरीर में फैलता है , इसलिये मुंह में छॉलों से कैंसर होने पर अधिकतर संभावना रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना है । आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिये गिलोय एंव अश्‍वगंधा का प्रयोग किया जाता है । होम्‍योपैथिक चि‍कित्‍सा में अश्‍वगंधा क्‍यू में उपलब्‍ध है, इस दवा का प्रयोग मदर टिंचर में बीस बीस बूंद आधे कप पानी में दिन में तीन चार बार या आवश्‍यकतानुसार किया जा सकता है । वैज्ञानिकों का मानना है कि अश्‍वगंधा के प्रयोग इम्‍यूनिटी शक्ति बढ जाती तथा इसके उपयोग से कैंसर को खत्‍म किया जा सकता है ।

11- कैंसर की रोकथाम (कार्सिनोसिन):- कैंसर होने की किसी भी अवस्‍था में या परिवार में कैंसर का इतिहास पाये जाने पर कार्सिनोसिन दवा का प्रयोग किया जाता है, कार्सिनोसिन दवा के बिना कैंसर का उपचार संभव नही है, अत: कैंसर की रोकथाम व कैंसर होने पर कार्सिनोसिन दवा का प्रयोग करना चाहिये । ध्रुमपान तम्‍बाखू चबाने आदि की वजह से मुंह में छॉले होते हो तो अन्‍य सुर्निवाचित दवाओं के साथ इस दवा की उच्‍च शक्ति का प्रयोग सप्‍ताह या माह में एक दो बार करना चाहिये यह दवा कैसर से बनाई जाती है ।

12-मुंह में छॉले की सर्वप्रधान औषधि (सल्‍फयूरिक ऐसिड):- सल्‍फयूरिक ऐसिड या जितने भी ऐसिड होते है उनमें कमजोरे के लक्षण प्रधान होते है सल्‍फयूरिक ऐसिड का मरीज जल्‍दबाज होता है उसे हर काम में जल्‍दी रहती है, कमजोरी के बाद जल्‍दबाज होना यह इस औषधि का विलक्षण लक्षण है । बच्‍चों व उसकी मॉ के मुंह में सफेद छॉले हो जाते है । मुंह के भीतरी भाग सफेद नजर आती है ये छॉले मुंह से पेट तथा गुदा तक जा सकते है, गले के परिक्षण में सफेद रंग के छॉले दिखलाई पडते है, मुंह के छाले में मार्कसाल बोरेक्‍स देने से भी लाभ होता है, परन्‍तु इन औषधियों में सल्‍फूरिक ऐसिड की तरह से कमजोरी व जल्‍दबाजी के लक्षण नही होते है यह दवा मुंह के छॉले की सर्वप्रधान औषधि है । इस दवा को प्रारम्‍भ में 30 पोटेंसी में दिन में तीन बार प्रयोग करना चाहिये । आवश्‍कता अनुसार इसकी उच्‍च शक्ति का प्रयोग भी किया जा सकता है ।

13-कैंसर की बीमारी में धॉव होने पर (लैपिस एल्‍वा):- डॉ0धोष लिखते है कि यह दवा गॉठों की सूजन और गलगण्‍ड रोग की महौषधि है । कैंसर की बीमारी में धॉव होने के पहले इसका प्रयोग किया जाये तो लाभ होता है ,जरायु के कैंसर तथा फाईब्रायड टियूमर में जिसमें बहुत जलन और रक्‍त स्‍त्राव हो इसका प्रयोग अवश्‍य किया जाना चाहिये ।

14-सहायक उपचार व अभिमत:- मूंगफली एण्‍टी आक्सिडेन्‍टस का अच्‍छा स्त्रोंत है एंव उसमें विटामिन ई का भंडारण साथ ही इसमें कैल्शियम और विटामिन डी प्रर्याप्‍त मात्रा में होती है ।  यह कैंसर एंव ह्रिदय सम्‍बन्धित बीमारीयों का खतरा कम कर देती है, यह कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होती है । विटामिन बी-6 या बी काम्‍प्‍लेक्‍स विटामिन ई सी एंव डी का प्रयोग प्राकृतिक स्‍त्रोंतों से ही करना चाहिये । ये त्‍वचा के धंब्‍बों को भरने तथा कोशिका निर्माण में सहायक होती है ।

15- डॉ0 योहाना बुडविज का कैंसररोधी प्रोटोकाल अलसी के बीज :- अलसी के बीज में ओमेगा-3 पाया जाता है यह कोई विटामिन नही है परन्‍तु मानव शरीर के लिये अत्‍याधिक उपयोगी है ओमेगा-3 फैटी ऐसिड शरीर में एच डी कोलेस्‍ट्रॉल को बनाये रखता है ,इसके प्रयोग से कैंसर का खतरा कम हो जाता है । अलसी में महत्‍वपूर्ण पोष्‍टिक तत्‍व लिगनेन होता है लिगनेन जीवाणुरोधी ,विषाणुरोधी एन्‍टी फंगल तथा कैंसररोधी है यह प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ एंव शक्तिशाली बनाता है । डॉ0 योहाना बुडविज का कैंसररोधी प्रोटोकाल सन 1931 में ओटो बारबर्ग ने सिद्ध कर दिया था कि कैंसर का मुख्‍य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्‍वसन क्रिया का बाधित होना है यदि कोशिकाओं को प्रर्याप्‍त मात्रा में ऑक्‍सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्‍व संभव नही है इसके लिये उन्‍हे नोबल पुरूस्‍कार भी मिला परन्‍तु तब बारबर्ग यह पता नही कर सके कि कैंसर कोशिकाओं की बाधित श्‍वसन क्रिया को कैसे ठीक किया जाये डॉ0 योहान ने अपने परिक्षणों से यह सिद्ध कर चुकी थी की अलसी के तेल में वि़द्यमान इलेक्‍ट्रान युक्‍त असंतृप्‍त ओमेगा-3 वसा कोशिकाओं में ऑक्‍सीजन को आकृर्षित करने की अपार क्षमता रखता है पर मुख्‍य समस्‍या रक्‍त में अधुलनशील अलसी के तेल को कोशिकाओं तक पहुंचाने की थी वर्षो तक शेध करने के बाद वे मालूम कर पाई कि सल्‍फर युक्‍त प्रोटीन जैसे पनीर अलसी के तेल को धुलनशील बना देता है और तेल सीधे कोशिकाओं तक पहुंचकर आक्‍सीजन को कोशिकाओं में खीचता है व कैसर को खत्‍म कर देता है । डॉ0 योहाना ने अलसी के तेल पनीर कैसर और सब्जियो से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविज प्रोटोकोल के नाम से प्रचलित हुआ वे 1951 से 2003 तक सभी प्रकार के कैंसर रोगियों का उपचार सफलता पूर्वक करती रही, जिसमें इन्‍हे लगभग 90 प्रतिशत सफलता मिलती रही इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्‍हे अस्‍पताल से यह कहकर छोड दिया जाता था कि अब वे दुआ करे , अर्थात यदि कैंसर की शिकायत है तो  होम्‍योपैथिक की निर्वाचित दवा के साथ अलसी पनीर का संयुक्‍त प्रयोग कर कैंसर से बचा जा सकता है । अलसी के बीज को बारीक पीस कर उसमें पनीर मिला कर प्रतिदिन प्रयोग करना चाहिये केवल अलसी के प्रयोग से कैंसर ठीक नही होता इसलिये उसमें पनीर को मिलाकर प्रयोग प्रतिदिन नियमित रूप से करना चाहिये इससे कैंसर के उपचार में सफलता मिलती है ।

तम्‍बाखू के नियमित सेवन से कैंसर

तम्‍बाखू के नियमित सेवन से कैंसर होने की संभावना बढती जा रही है । हमारे देश में इसकी संख्‍या चौकाने वाली है । बच्‍चों से लेकर बडे बुर्जूर्गो में तम्‍बाखू खाने के प्रकरण हमारे देश में अधिक मिलेगे । तम्‍बाखू के नियमित सेवन से मुंह में छाले होने लगते है धीरे धीरे यह फाईब्रोसेस कैंसर की अवस्‍था में तबदील होने लगते है जब तक इसका पता चलता है बहुत देर हो चुंकी होती है । अत: समय रहते तम्‍बाखू का सेवन बन्‍द कर देना चाहिये । परन्‍तु यह इतना आसान नही है एक बार तम्‍बाखू सेवन की लत लग जाये तो इससे बचना प्राय असंभव है । परन्‍तु दृड इक्‍च्‍दा शक्ति एंव कुछ नये प्रयासों से इससे बचा जा सकता है ।

बचाव :- यदि तम्‍बाखू खाने की प्रबल इक्‍च्‍छा हो एंव मुंह में छाले हो रहे हो तो आप निम्‍न प्राकृतिक साधन का प्रयोग कर कैसर एंव तम्‍बाखू खाने की प्रबल इक्‍च्‍छा से बच सकते है । अदरक एंव नीबू में कैंसर ग्रोथ एंव कैंसर सेल्‍स को खत्‍म करने का अदभुत गुण होता है । इसके नियमित कुछ दिनों तक सेवन करने से कैंसर से बचा जा सकता है ।

तम्‍बाखू खाने की प्रबल इक्‍च्‍छा:- ऐसे व्‍यक्ति जिन्‍हे तम्‍बाखू खाने की प्रबल इक्‍च्‍छा हो उन्‍हे अदरक के गुटका का प्रयोग करना चाहिये । इसे आप अपने घर पर बना सकते है इसके लिये आप अदरक को छोटे से छोटे टुकडे में कॉट लीजिये इसके बाद इसमें नीबू का रस इतना मिलाये जिससे यह पूरी तरह से उसमें डूब जाये इसमें इतना सेधा नमक मिलाये तथा इसे छाये में सूखने के लिये रख दीजिये परन्‍तु ध्‍यान इस बात का रखे कि इसे ढके नही अन्‍यथा अदरख खराब हो जायेगा उसमें फॅफूदी पड सकती है इसलिये इसे बिना ढॅके छॉये में सूखने दे गर्मीयों के दिनों में यह तीन चार दिन बाद यह पूरी तरह से सूख जायेगा । इसके बाद जब आप को पूरी तरह से विश्‍वास हो जाये कि यह पूरी तरह से सूख गया है अब इसे आप कि खाली बन्‍द डिब्‍बे में रख लीज‍िये । आप का अदरक व नीबू का खुटका तैयार है ।   जब भी आप को तम्‍बाखू खाने की इक्‍च्‍छा हो इसकी इतनी मात्रा जितनी आप तम्‍बाखू की लेते है मुंह में डाल कर धीरे धीरे चूंसते जाये व अन्‍त में इसे चबा ले । इसका स्‍वाद बहुत अच्‍छा लगेगा । इसे रात्री में सोते समय भी मुंह में रख कर चूसते रहे एंव सुबह इसे अच्‍छी तरह से चबा कर खॉ लीजिये ।       इसके नियमित सेवन से मुंह के छाले एंव कैंसर से मुक्‍ती मिल जायेगी । यह अजमाया हुआ नुस्‍खा है । इससे काफी लोगों को लाभ हुआ है । फिर इसमें खर्च ही कितना है फिर इसे एक बार अजमाने में नुकसान क्‍या है ।

डॉ0   सत्‍यम सिंह चन्‍देल(बी0एच0एम0एस0, एम0डी0, पी0जी0वाय0एन0,सी0एफ0एन0)एंव डॉ0 कृष्‍ण भूषण सिंह चन्‍देल( वरिष्ठ चिकित्‍सक )   

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