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अधूरी आरज़ू

15 सितम्बर 2024

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संजय की दुनिया का सूरज राहुल के रूप में ढल गया था। उसका बड़ा भाई, उसका सबसे अच्छा दोस्त, चला गया था। एक सड़क हादसा, एक पल में सब कुछ बदल गया था। संजय के लिए, जीवन एक खाली पन्ने जैसा हो गया था, जिस पर कुछ लिखने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी।

नैना, राहुल की विधवा, संजय के जीवन में एक नई सुबह की तरह आई थी। उसकी मजबूती, उसकी संयम, उसकी मुस्कान, सब कुछ संजय को जीने की ताकत देता था। वो उसकी भाभी थी, लेकिन उसके दिल में उसके लिए एक अलग ही भावना पनप रही थी, एक भावना जिसे वो समझ नहीं पा रहा था, लेकिन जिसकी ताकत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी।

संजय 26 का था, एक उम्र जब जवानी की आग धधकती है। लेकिन उसकी आग, एक अलग दिशा में जल रही थी। नैना, 32 की थी, एक उम्र जब जिंदगी की जंगल में लड़ने की ताकत चाहिए होती है। वो लड़ रही थी, अपने और अपने ससुराल वालों के लिए। संजय उसके साथ था, एक सहारा, एक दोस्त, एक भाई से बढ़कर।

लेकिन उनके दिलों में एक और रिश्ते की चाहत थी, एक ऐसा रिश्ता जो समाज के लिए एक पाप था। वो एक-दूसरे को चाहते थे, पर डरते भी थे। डर इस बात का कि समाज क्या कहेगा? उनके परिवार क्या सोचेगा?

संजय के माता-पिता, चरण सिंह और बीमा देवी, इस रिश्ते की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। उनके लिए, नैना उनकी बहू थी, और संजय उनका बेटा। ये रिश्ता उनके लिए एक धब्बा था, एक कलंक।

नैना के माता-पिता, अमर सिंह और सुलोचना देवी, भी इस रिश्ते के खिलाफ थे। बेटी की विधवा हो चुकी थी, और वो उसे दोबारा शादी के लिए तैयार नहीं थे, वो भी अपने दामाद के भाई से। उनके लिए, ये सम्मान का सवाल था।

गाँव की रूढ़ीवादी सोच ने इस रिश्ते को और मुश्किल बना दिया। लोग नैना को एक विधवा के रूप में देखते थे, जिसके लिए दूसरी शादी एक पाप थी। संजय को एक युवा लड़के के रूप में, जिसकी जिंदगी अभी शुरू होनी थी।

संजय और नैना का प्यार एक गुप्त आग की तरह धधक रहा था। वो एक-दूसरे के साथ हर पल जीना चाहते थे, लेकिन हर पल डर भी रहे थे। एक दिन, संजय ने हिम्मत जुटाकर नैना से अपनी भावनाएँ व्यक्त की।

"नैना, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। बहुत प्यार करता हूँ। तुम मेरे लिए सिर्फ एक भाभी नहीं हो, तुम मेरी दुनिया हो।"

नैना के आँखों में आँसू थे, लेकिन उसकी आवाज में एक मजबूती थी। "संजय, मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ। लेकिन ये रिश्ता, ये समाज कभी स्वीकार नहीं करेगा। हम दोनों की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।"

संजय ने नैना का हाथ थामा, "हम दोनों ही इस रिश्ते के लिए तैयार हैं। हम दुनिया से लड़ सकते हैं, लेकिन तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी अधूरी है।"

नैना ने संजय को गले लगा लिया, "मैं भी तुम्हारे बिना अधूरी हूँ। लेकिन हमें सोचना होगा, बहुत सोचना होगा।"

उनके बीच का प्यार एक जंगल में खिलता हुआ कमल था, खूबसूरत तो था, लेकिन जिसे बचाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ रहा था। आगे क्या होगा, ये समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तय थी, संजय और नैना का प्यार, चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ हों, कभी कमज़ोर नहीं होगा।

संजय और नैना की मोहब्बत की खबर जैसे ही गांव में फैली, मानो तूफान आ गया हो। चरण सिंह और बीमा देवी तो पहले से ही इस रिश्ते के खिलाफ थे, लेकिन अब गांव के बुजुर्ग और रिश्तेदार भी इस पर अपनी-अपनी राय देने लगे।

"ये तो बिल्कुल गलत है! एक विधवा से शादी? ये तो हमारे संस्कारों के खिलाफ है!"

"गांव में ऐसी मिसाल तो कभी देखी ही नहीं गई।"

"इन्हें समझ नहीं आ रहा है कि ये क्या कर रहे हैं।"

गांव के लोग संजय और नैना को अलग-अलग तरह से ताने मारते। नैना को विधवा होने का ताना दिया जाता, तो संजय को एक पागल कहा जाता।

नैना के माता-पिता भी इस स्थिति से बहुत परेशान थे। उन्होंने नैना को समझाया, "बेटी, ये सब छोड़ दो। तुम्हारी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।"

नैना ने अपने माता-पिता से कहा, "मां-बाप, मैं संजय से बहुत प्यार करती हूँ। मैं उसके बिना नहीं रह सकती।"

संजय और नैना का प्यार एक ओर तो समाज के दबाव से जूझ रहा था, तो दूसरी ओर उनके परिवारों के बीच भी तनाव बढ़ता जा रहा था। चरण सिंह ने संजय को घर से निकालने की धमकी दी, तो नैना के माता-पिता ने उसे मना करने की हर संभव कोशिश की।

इस सबके बीच संजय और नैना की भावनात्मक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। एक ओर तो उन्हें एक-दूसरे से प्यार था, तो दूसरी ओर उन्हें समाज और परिवार के डर से भी जूझना पड़ रहा था।

रात को अकेले बैठकर नैना रोती थी। उसे लगता था कि उसने संजय की जिंदगी बर्बाद कर दी है। संजय भी बहुत उदास रहता था। उसे लगता था कि वो नैना को खुश नहीं रख पाया।

एक दिन संजय ने नैना से कहा, "शायद हमें हार मान लेनी चाहिए।"

नैना ने संजय को गले लगाते हुए कहा, "कभी नहीं। हम कभी हार नहीं मानेंगे। हमारा प्यार इतना मजबूत है कि ये किसी भी मुसीबत का सामना कर सकता है।"

चरण सिंह और बीमा देवी ने संजय को घर से निकालने की धमकी दी। उन्होंने कहा, "तू हमारे घर की नाक कटवाएगा? तेरी वजह से हमारा नाम गांव में खराब हो गया है।"

नैना के माता-पिता भी कम परेशान नहीं थे। उन्होंने नैना को समझाया, "बेटी, तू एक विधवा है। तुझे अपने बारे में सोचना चाहिए। तू इस रिश्ते में उलझकर अपनी जिंदगी बर्बाद मत कर।"

संजय और नैना ने कई बार अपने परिवार वालों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। उन्होंने संजय और नैना को अलग करने के लिए हर संभव कोशिश की। उन्होंने बीच में रिश्तेदारों को भेजा, पंडितों को बुलाया, लेकिन संजय और नैना अपने प्यार से नहीं हटे।

एक दिन, चरण सिंह ने संजय को एक अल्टीमेटम दिया। उसने कहा, "या तो तू नैना को छोड़ देगा, या फिर इस घर से निकल जाएगा।"

संजय ने अपने पिता की ओर देखा और कहा, "मैं नैना को कभी नहीं छोड़ सकता। मैं उससे प्यार करता हूँ।"

चरण सिंह गुस्से में आ गया और उसने संजय को घर से निकाल दिया। संजय बिना कुछ बोले घर से निकल गया।

नैना बहुत दुखी हुई। उसने अपने माता-पिता से कहा, "मैं संजय के बिना नहीं रह सकती। मैं उसके साथ ही रहूंगी।"

नैना के माता-पिता भी बहुत परेशान थे। उन्होंने नैना को समझाया, "बेटी, तू पागल हो गई है क्या? तू इस लड़के के पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद मत कर।"

संजय और नैना गांव छोड़कर एक नए शहर में चले गए। उन्होंने वहां एक छोटा सा किराए का मकान लिया और एक नई जिंदगी शुरू की। दोनों ने मिलकर मेहनत की और धीरे-धीरे अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने लगे।

शहर में उन्हें किसी ने नहीं पहचाना। वे खुशी-खुशी अपनी जिंदगी जी रहे थे। लेकिन उनके दिल में हमेशा एक खालीपन सा रहता था। उन्हें अपने परिवार की याद आती थी।

शहर में अपनी नई जिंदगी में संजय और नैना ने एक-दूसरे का पूरा साथ दिया। धीरे-धीरे उन्होंने एक छोटा सा घर खरीद लिया और अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने लगे। संजय ने एक छोटी सी दुकान खोली और नैना ने घर के काम के साथ-साथ कुछ छोटे-मोटे काम करने लगी।

उनकी जिंदगी में एक नई खुशी तब आई जब नैना गर्भवती हुई। नौ महीने बाद, उन्होंने एक प्यारे से बच्चे को जन्म दिया। एक बेटे को। बच्चे के जन्म से उनके जीवन में एक नई चमक आ गई। बच्चे को देखकर संजय और नैना बेहद खुश थे। उन्होंने बच्चे का नाम आकाश रखा।

आकाश के जन्म के बाद, संजय और नैना ने अपने पुराने जीवन को पूरी तरह से भुला दिया। वे अपने नए परिवार के साथ एक खुशहाल जिंदगी जी रहे थे। वे शहर में ही रहने लगे और धीरे-धीरे वहां के लोगों से घुल-मिल गए।

हालांकि, संजय और नैना कभी भी अपने परिवार को नहीं भूले। वे हमेशा अपने माता-पिता के बारे में सोचते रहते थे। उन्हें पता था कि उनके माता-पिता अभी भी उनके खिलाफ हैं, लेकिन वे उम्मीद करते थे कि एक दिन उनके माता-पिता उनकी गलती मान लेंगे और उन्हें माफ कर देंगे।

हर साल, संजय और नैना अपने गांव जाते थे। वे दूर से अपने घर को देखते और अपने पुराने दोस्तों से मिलते थे। लेकिन वे अपने माता-पिता से मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।

एक दिन, संजय और नैना को पता चला कि उनके माता-पिता बीमार हैं। उन्होंने तुरंत गांव जाने का फैसला किया। वे अपने माता-पिता से मिलने गए और उनसे माफी मांगी।

चरण सिंह और बीमा देवी बहुत भावुक हो गए। उन्होंने संजय और नैना को गले लगा लिया। उन्होंने माफ कर दिया। उन्होंने कहा कि वे हमेशा अपने बच्चों से प्यार करते हैं।

संजय और नैना बहुत खुश थे। उन्हें लगा कि उनकी जिंदगी पूरी हो गई है। अब उनके पास एक खुशहाल परिवार था और उनके माता-पिता का आशीर्वाद भी था।

संजय और नैना की कहानी कहानी है। यह कहानी हमें बताती है कि प्यार किसी भी मुश्किल से बड़ा होता है। अगर हम सच्चे दिल से किसी से प्यार करते हैं, तो हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं।

यह कहानी हमें यह भी बताती है कि माता-पिता का प्यार सबसे बड़ा होता है। माता-पिता अपने बच्चों से कभी नाराज नहीं रह सकते।

यह कहानी हमें यह संदेश देती है कि प्यार ही जिंदगी की सबसे बड़ी ताकत है। अगर हम प्यार से जीते हैं, तो हम हर मुश्किल का सामना कर सकते हैं। 


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मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर कहानी पढ़कर आगे पढ़ने की जिज्ञासा बनी हुई है 👌👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा और लाइक जरूर करें 🙏🙏🙏

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