फाइलेरिया रोग क्या है?
यह रोग मुख्य रूप से मच्छरों की एक क्यूलेक्स प्रजाति से फैलने वाला रोग है। जब ये मच्छर खून चूसते हैं तो अपने कीटाणुओं को उस अंग में छोड़ देते हैं। फाइलेरिय़ा विशेष रूप से एशिया, अफ्रीका और पश्चिमि अमेरिका में पाया जाता है। यह बिमारी लगभग पूरे भारत में फैल चुकी है। कुच ऐसे मुख्य क्षेत्र हैं जहां फाइलेरिया का ज्यादा प्रकोप है, जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, केरल, तमिलनाडु, झारखंड और गुजरात। हर साल लगभग 60 लाख लोग फाइलेरिया से ग्रसित होते हैं।
फाइलेरिया के कृमि
ये आंतों में नहीं बल्कि खून में रहते हैं जो केवल रात में सूक्ष्मदर्शी से देखे जा सकते हैं। ये कृमि लसिका तंत्र में रहकर माइक्रो फाइलेरिया नामक कीटाणुओं को जन्म देते हैं। एक मादा कृमि लगभग 50,000 माइक्रो फाइलेरिया पैदा करती है और ये करीब 15 साल तक जीवित रहते हैं।
फाइलेरिया के लक्षण तथा कारण
1.इलके लक्षणों का पता लगाने में 12 से 16 महिने का समय लग जाता है। कुछ रोगियों में तो ऊपरी तौर पर कोई filariasis symptoms नहीं मिलते। जबकि इनमें भी माइक्रो फाइलेरिया होते हैं। कुछ रोगियों में लसिका तंत्र में कृमियों के प्रवेश करने के कारण कई दर्द जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
2.फाइलेरिया के सुरू होने के पहले साल विशेष रूप से रोगी के जॉघ के ग्रंथियों व अंडकोशों में सूजन आ जाती है। रोगी को कापी दर्द व बुखार के साथ पेशाब करने में काफी तकलीफ होती है।
3.इस रोग की दूसरी अवस्था 15 से 20 साल बाद आती है और लसिका वाहिनियों में रूकावट होने के कारण अंगों में स्थायी रूप से रहने वाली सूजन होने लगती है। जो अंग प्रभावित होता है वह सुडौल आकार लेने लगता है। जैसे कि – ङाइड्रोसिल, पैरें की स्थायी सूजन तथा हाथों, लिंग व योनि के बाहरी हिस्से में सूजन का होना।
फाइलेरिया पर करें ऐसे नियंत्रण- prevention of filariasis
कीड़े किस क्षेत्र को प्रभावित करते हैं, उसके आधार पर फाइलेरिया बिमारी का वर्गीकरण होता है-
1.लिम्फेटिक कीड़े जिसे एलीफांटिसिस कहते हैं और ये पूरी लसिका ग्रंथि को प्रभावित करते हैं।
2.त्वचा के नीचे की फाइलेरिया में त्वचा के नीचे की पूरी परत ग्रसित हो जाती है।
3.लसी गुहा फाइलेरिया पेट की लसी गुहा को पूरा प्रभावित कतर लेते हैं।
फाइलेरिया के आयुर्वेदिक उपचार-filariasis treatment in ayurveda
फाइलेरिया के इलाज के लिए सबसे पहले मच्छरों द्वारा होने वाले संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए रोगियों के रक्त से माइक्रोफिलारिया को समाप्त करना चाहिए। filaria treatment at home के संदर्भ में हम आपको कुछ आयुर्वेदिक उपचार बता रहे हैं-
लौंग- लौंग फाइलेरिया को रोकने के लिए बहुत प्रभावशाली माना जाता है, क्योंकि इसमे मौजूद एंजाइम माइक्रोफिलारिया के उत्पन्न होते ही उसे खत्म कर देते हैं। रोगी चाय में लौंग डालकर उसका सेवन कर सकते हैं।
काले अखरोट का तेल- काले अखरोट के तेल को करीब 70ml पानी में 3 से 4 बूंद डालकर दिन में दो बार पियें। काले अखरोट में मौजूद तत्व कीड़ों को धीरे-धीरे खत्म कर देते हैं। अच्छे परिणाम के लिए 2 महीने नियमित रूप से सेवन करें।
भोजन में इन्हें करें शामिल- फाइलेरिया के इलाज के लिए प्रतिदिन खाने में कुछ आहार जैसे लहसुन, अनानास, मीठे आलू, शकरकंदी, और गाजर का सेवन करें, क्योंकि इनमें विटामिन ए होता हौ जो बैक्टरीरिया को मारने का काम करते हैं।
अदरक व सौंठ का सेवन- फाइलेरिया के उपचार के लिए सूखे अदरक का पाउडर या सोंठ गरम पानी से सेवन करें। जिससे शरीर में मौजूद माइक्रोफिलारिया नष्ट हो जाते हैं।
ब्राह्मी का लेप- ब्राह्मी प्राचीन काल से ही बहुत सी बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ब्राह्मी को पीसकर उसका लेप लगाने से सूजन कम हो जाती है।
रॉक साल्ट का प्रयोग- शंखपुष्पी और सौंठ के पाउडर में रॉक साल्ट मिलाकर, एक चुटकी प्रतिदिन दो बार गरम पानी के साथ लें।