आज मैं जो कहानी सुनाने जा रही हूँ वो मेरे दिल के बहुत करीब है, क्यूँकी इसके एक हिस्से में मैं भी हूँ, आज भी जब सोचती हूँ तब वो मुझे हुबहू सामने दिखाई देती है, कितनी शांत, शर्मिली, मिलनसार लडकी थी वो, जो बेचारी बिना बजह मर गई, अब मुझसे पुछोगे तो सच में तब मेरी उम्र ही नहीं थी की मैं उसके मौत का कारण जान पाती, पर उसके मौत का म़ंजर सामने देख आज भी दिल दहल जाता है मेरा।
कितने धूमधाम से शादी करकर वो वहाँ उम्मीदें लिये आई थी, बिल्कुल गुडिया जैसी थी वह, अकलूज उसका मायका था, और वह कुर्डूवाडी में शादी करके आई थी, आप सोच रहे होंगे कहाँ है ये कुर्डूवाडी तो सोलापूर जिल्हें में आता है ये शहर, जो असल में एक जंक्शन है।
तो उसका नाम मिनल था, उसके ससुराल में उसके सास ससुर के साथ दो भाई, बहन भरा पूरा परिवार था, पर सब काम के लिए पूने में थे और उसका पती सास ससुर के साथ वहाँ रहता था। बहन की तो शादी हो गई थी।
बहुत बडा चप्पलों का दुकान थी उनकी जिसपर सास ससुर के साथ पती भी काम करता था, बस वो अकेली ही होती थी घर में , सब काम पर जो जाते थे। इतनी खुबसुरत थी की हर कोई बस देखता ही रह जाये उसे।
ज्यादातर कभी वो बात नहीं करती थी, हम जहाँ रहते थे, उसी मकान के पास एक हँण्ड पंम्प था, तो वो वहाँ पर कपडे धोने आती थी, अपनी बारी का इंतजार करते हूँवे वो बकेट रख सिढीयों पर जाकर बैठती थी। कभी किसी से भी नहीं वो झगडती थी, कभी किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी, बस अपने आप में गुमसूम रहती थी वो।
हर दिन के दोपहर एक दो बजे वो वहाँ आती थी, हमारे मकान से कुछ दूर ही उसका मकान था, दो मजला ईमारत में वो रहती थी, बस इतना ही हम जानते थे की वो शादी करके यहाँ आई है।
पर क्या मालूम कुछ तो अजीब था उसमें। जो देखते ही पता चलता था, सास ससुर बहुत अच्छे थे उसके पप पती ज़रा बेकार ही थी, हर दिन झगडता रहता था, नई नवेली दुल्हन होकर कभी उसके चेहरे मुस्कान नहीं देखी थी मैनें , हमेशा आँखों में उदासी ही देखी थी मैनें।
एक दोपहर, मेरे हिसाब से गुरुवार की दोपहर हेगी, क्यूँकी गुरुवार को हमारा स्कुल सुबह में होता था, और दोपहर छुट जाता था, ताकि युनिफॉर्म धोने के वक्त मिले, और उस दिन बजार भी होता था। तो बजार भी जाने को मिलता था।
तो मैं स्कुल से निकल कर अपने दोस्त के घर गई थी, उससे कुछ नोट्स देने थे जो की वो स्कुल में नहीं आई थी, थोडी बिमार जो थी। तो मैं उसके घर गई, बस नोटस् देकर निकलने वाली थी, की कुछ शोर सुनाई दिया, और वहाँ से धूँवा निकालता दिख रहा था, सारे अडोस पडोस के लोग अपने अपने काम में बिझी थे, पर धूँवा जैसे ही बढने लगा, आसपास के लोग बाहर आने लगे।
मैं भी भागके मेरे दोस्त के साथ बाहर आई, ते देखा की बहुत ज्यादा धूँवा के साथ आग की लपटे भी निकल रही है, वो लडकी अंदर से बचाव बचाव चिल्लाते हूँवी सिढीयों से निचे भागती आ रही थी। पर बहुत जलन हो रही थी, तो जोरों से चिल्ला रही थी।
उसने अंदर से दरवाजा बंद कर रखा था, उपर के रुम में जाकर खुद को जलाया था, वैसे ही जलती हूँवी वो निचे भागी और कोशिश करके दरवाजा खोल दिया उसने।
उसके ससुर तब तक घर आये थे, उन्होंने अपनी धोती खोलकर उसके उपर रपट दी, और आग बूझाने की कोशिश की, पर बहुत ज्यादा वो जल चूकी थी, हम उसे देखकर ही डर गये।
वो लडकी जिसका चेहरे पर एक नूर देखा था, आज वो बेजान आधी अधूरी जल गई थी। उसे देखकर मैं डर गई, मैं और मेरी दोस्त अंदर से दरवाजा बंद करके बैठ गई। थोडी देर बाद उसके घर के लोग आये, जल्द से जल्द ही उसको अस्पताल ले जाने का बंदोबस्त कर दिया गया। पर उस लडकी की बदकिस्मती, की वो 90 परसेंट जल चूकी थी। घर से बस गाँव की शिवार ही क्रॉस कर चूकी थी, की उसकी मौत हो गई, वापस वहीं अंम्ब्यूलन्स सायरन बजाती लौट आई, एक उम्मीद को खत्म कर।
एक अठरा साल की लडकी जो शादी करके कितने ख्बाब बूनकर आई थी, अब चिता पर बेजान लेटी थी, पर सच में क्या ये उसका अंत था की वो वापस आनेवाली थी अपना अधूरा ख्बाब पूरा करने।
फिर कुछ दिन बाद उसके घर में मूँहफली के जली हूँवी छिलके हमारे यहाँ कचरे की पेटी पर डाले। मैं वहाँ वॉशरुम जाकर बैठी, मैं पागलों जैसे करने लगी, कभी भी कुछ भी करती, किसीको भी मारती, कुछ भी खाने को माँगती।
मेरे माँ ने उतारा करके मेरी उपर स उतार दिया उसके बाद में ठीक हो गई। पर वो मकान आज भी हॉन्टेड है। आज भी उस मकान में जो कोई भी रहता है वो ज्यादा दिन तक रह नहीं पाता है।
मेरे भाई का दोस्त कितना समझाने पर भी वहाँ रहन गया। वो अपने भाई और उसकी नानी के साथ वहाँ रहने गई। हमारे घर से भगवान का तस्वीर भी लेकर गई।
हमारे लाख समझाने पर वो नहीं मानी, फिर उसके बच्चों का पढाई का सवाल था।
एक दिन रात को वो जिसका नाम राजू था, खाना खाकर सो गया था, पर रात को अचानक ऊठकर खाना माँगने लगा, फिर वो आठ दस से ज्यादा रोटियाँ खा गया, दुसरे ही दिन डर के मारे वो लडका और उसका भाई वहाँ गये ही नहीं सोने, हमारे यहाँ ही सो गये। दादी दुसरे घर सोई। कुछ दिन बाद बोरियाँ बिस्तर उठाकर दुसरी जगह रहने गये।
आज भी वहाँ से कोई आता जाता नहीं है।सब डरत् है हालांकि उसने अब तक किसी को तकलीफ ना दी, पर वो किसीको उसके यहाँ रहने भी ना देती, लोगों को वो वैसी ही जलती सिढीयों से भागती दिखाई देती है। उसके घरवाले घर छोडकर चले गये। ये थी।आज की कहानी।