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भूतों का डेरा

3 जुलाई 2022

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           उम्मीद है मैं आपको जो भी कहानियाँ बता रही हूँ पसंद आयेंगे। कभी लिखा तो नहीं इससे पहले पर अब कोशिश कर रही हूँ लिखने की, आपके कमेंट के साथ स्टिकर भी अवश्य ही देना, क्यूंकी बहुत मेहनत से लिख रही हूँ आपके लिए ये कहानियाँ, याद कर करके लिखने से मुझे मेरा बचपन याद आ रहा है।
          आपको मैनें बताया ना की मेरा नानाजी बहुत पहले ही गूजर गये, उसकी बजह से सारे बच्चों का लालन पालन मेरे नानी ने किया था। तो मेरी माँसी सबसे बडी थी, और तब लगबग 15-16साल की उम्र में शादी हो जाती थी। तब मेरे नानाजी जिंदा थे, तब से माँसी के लिए लडका ढूँढना शुरु कर दिया था। पर तब भी शादी नहीं हो पा रही थी, लंबे समय से वे बिमार चल रहे थे, जिद्दी तो इतने थे की अंतिम समय तक अस्पताल ना गये, बिमारी के चलते उनकी मौत हो गई।
            तब मेरे माँसी पागलों जैसे कर रही थे, गाँव के लोग पता है ना आपको, क्या क्या ना बातें करते है तो गाँव में यहीं चर्चा हो रही थी की शादी ना होने की बजह से वह पागलों जैसे कर रही है। पर बात कुछ ओर ही थी, यह बात बहुत जल्द समझ में आ गई।
                   एक दिन मेरी माँ और माँसी अपने खेत में लकडियाँ तोडने गये थे, क्यूंकी शाम को खाना बनाने के लिए लकडियों की जरुरत थी तो लकडियों का प्रबंध भी करना ज़रूरी था।
                   मेरी माँ हमेशा से ही लकडियों को काँटने का काम करती थी और माँसी को वो काम ना आता था तो वह उसे माथे पर लेकर घर तक पहुँचाने का काम करती थी। तो माँ तब सातवी आठवी में और माँसी शायद ग्यारहवी की उम्र की होगी, तो माँसी लकडियों को लेकर घर जा रही थी। माँसी को उस दिन मासिक धर्म चल रहा था।
                  करीब दोपहर का लगबग एक बजे का वक्त होगा, तभी माँसी को कुछ औरतें और कई मर्द एक सुनसान जगह नाचते हुँवे दिखीई दिये, वे हाथों में मशाल लिए जाने कैसे कैसे डांन्स कर रहे थे। जैसे जैसे माँसी आगे जाती वो भी उसीके साथ हाथों में मशाल लिए नाचते आगे जाते दिखाई देते।
                 माँसी को समझ ना आ रहा था की भरी दोपहर के वक्त हाथों में लालटेन लिए कौन नाँच रहा है, फिर वो कैसे उसीके साथ आगे बढ रहा है, फिर गाँव में एक जगह वेताल के नाम से सफेद पत्थर लगे हुँवे थे , वहाँ तक आकर वो सारे अचानक गायब हो गये, मेरी माँसी बहुत डर गई।
                पर क्या करे लकडियाँ लाना भी ज़रुरी थे तब वो वापस उसी रास्ते से गई, क्यूंकी मेरी माँ खेत में थी, फिर ये काम खत्म करके उसे स्कुुल भी जाना था, तो आखरी खेप करने के लिए वह चली गई, घर में नानी भी ना थी, सब उससे छोटे किसको बताती आप बिती, फिर मेरी माँ और माँसी उसी रास्ते से घर आ रहे थे।
               मेरी माँ तो मजे से चल रही थी, पर माँसी इधर उधर देखते हुँवे बडी सहमी सहमी चल रही थी, पर इस बार उसे कुछ नहीं दिखाई दिया, कुछ दिन बात माँसी बिमार हो गई, बुखार कम होने का नाम ना ले रहा था, उपर से हर दिन वे सुबह शाम रात को कभी भी कुछ भी खाने को माँगती थी, उसके अंदर से वे लोग अजीब अजीब आवाज निकालकर खाना माँगते थे, अपना नाम भी बताते हुँवे कहते थे हमनें इसे पकड लिया है।
               कुछ समझ नहीं आ रहा था, मेरी नानी जी वो जो माँगते वो दे देती थी, वो हर वक्त नई ची़जों की माँग किया करते थे, तब गाँव के बुर्जगों को इस बात का पता चला वो मेरी माँसी को देखने घर आये, खाना माँगती तो कुछ बात नहीं पर वो जोर जोर से पैर पटकती, खुद को और ओरों को चोट पहुँचाती , मेरी माँ और दुसरे भाई उसके पास भी नहीं भटकते, बहुत डरते थे, तो सिर्फ नानी ही उसके पास रहती।
          गाँववाले बुर्जुगों मे बताया की ये लडकी भूतों के घेरे में फँसी थी, तब उनकी जत्रा चल रही थी, उनका नाँच गाना चल रहा था, उसी वक्त ये वहाँ से गूजर रही थी, और उसका मासिक धर्म भी चल रहा था, तो उन्होंने इसे पकड लिया। फिर बहुत सारी चीजों से बना उतारा उसी जगह फेंकने को बोला, तब भी ज्यादा कुछ असर ना हूँवा, फिर किसीके कहने पर मेरी माँसी को सिताराम महाराज के मंदिर ले जाया गया।
              पहले वारी के में वो चूपचाप जाकर चली आई, तह कहाँ बसेसे हुँवा करते थे ट्रेन से जाना पडता था, पर दुसरी वारी से वो जो परेशान करती, सिताराम महाराज को गालियाँ देती , उसको बाँधकर ले जाते, जैसे तैसे कर पाँच वारी पूरी हुँवी, तब धीरे धीरे कर उसकी तबियत में सूधार आया। वो पहले जैसे बर्ताव करने लगे, पर इन बातों में करीहन छह से सात महिने गूजर गये।
                उसे हर बार ही कोई ना कोई भूत पकड ही लेता था, गाँव में तब अंधेरा, स्वच्छता का अभाव से भूत खेत हुँवा करते थे। एक बार मेरी माँसी शादी के बात साँतवा महिना चल रहा था तो गोदभराई के लिए मेरी माँसी गाँव में आई, तो एक घर के सामने से न्यौता देकर गूजर रही थी, तब हमारे रिलेटिव्ह औरत जिसका खून उसीके पती ने पागल पन के दौडे में किया था, उसकासर ही काँट लिया था, तो वैसे ही सर कटी वह आवाज देकर मेरी माँसी को बुलाकर कह रही थी, मुझे ना बुलाऊंगी, जो मेरी माँसी वहाँ से भागी, तो वापस कभी इस ओर ना गई।
             अंगात आना तो आम बात थी, जब भी वो ऐसा करती थी हम डर के मारे उसके पास ही नहीं भटकते थे, हम बहुत डरते थे, अब भी पता नहीं कब ही वो पागलों जैसा करने लगे, कुछ बता ही नहीं सकते। इतना जानते हुँवे बडी धीट है मेरी माँसी, मेरे काका के मरते समय वो रहने भी भूतों के हवेली में गई थी, हम तो बुलावा आने पर भी उसके घर कभी ना जाते थे, बाहर से ही पुकारते थे उसे। आखिर के मेरे काका की मौत भी भूतों के डर के बजह से हो गई, तब उन्हों ने रुम छोडकर दूसरी जगह रहने गई, डर के बजह से मेरे काका को दिल का दौरा पडा उसी में उनकी मौत हो गई, मेरी माँसी से जूडी बहुत सी कहानियाँ है जो मैं बताने जाऊ तो रात ही गूजर जाये। फिलहाल के लिए यहीं रुकती हूँ।
        
   
             


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रचनाएँ
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