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मेरा डरावना मकान

2 जुलाई 2022

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            प्यार पर तो मैनें जाने कितना लिखा है, भर भर कर शेरो शायरीयाँ,  कविताऐ और गजल लिख डाली है मैंने, पर ऐसा नहीं की जिंदगी में मुझे आसपास प्यार ही दिखा है, पर्सनल तौर पर कभी मुझे तो भूतों का अनुभव नहीं आया, पर आसपास मैनें जरुर कई कहानीयाँ सुनी है। बस कुछ कहानीयाँ और किस्से मैं आपके साथ शेयर करना चाहूँगी।  आय होप आपको पसंद आयेंगे।
            ये जो कहानियाँ मैं लिख रही हूँ बिल्कुल सच्ची कहानियाँ है, मेरा कोई अंधविश्वास बढाने का मकसद नहीं है, पर मैनें जो ओरों से सूना, बस आपको बता रही हूँ ।
             मैं और मेरा परिवार एक किराये के मकान में रहता था, निजी उद्देशों के कारण मैंने गाँव का नाम बदलकर मोहोळ में रहती था। वो मकान हमें अपने खुद के घर जैसा ही रखता था, वैसे बचपन होता भी तो है मासूम, किसी की बातों को हम दिल से नहीं लगाते है। करीबन मैं पाँचवी के क्लास में पढ रही थी, तब हम वहाँ रहने गये थे, बडी अच्छी जगह थी वो, काफी आरामदायी और बहुत बडे कमरे थे, क्यूँकी मकान मालिक हमारे गाँववाले थे, हम कहीं भी घूमते रहते, हमारे दो और उनके दो कमरों में कहीं भी सो जाते थे, हमको कभी भी डर नहीं लगता था।
                गर्मियों में अक्सर लाईट चली जाती थी, तो हम सब सोने के लिए टेरेस के उपर चले जाते, टेरेस पर खुली हवा और चाँद को निहारना, तारे गिनना बडा पसंद आता था हमें, करीबन नऊ साडेनऊ के करीब हम बच्चे उपर जाकर सोते थे, क्यूँकी हमारा टेरेस काफी बडा था, तो आसपास के बच्चे भी आते जाते रहते थे। हर कार्यक्रम के लिए हमारे मकान मालिक उन्हें निचे के दो कमरे दे दियी करते थे।
              हमारे निचे के कमरे में अक्सर सामान रखवाया होता था, पर कभी हम वहाँ पर भी रहते थे। तो दो भाईयों के बीच कमरे बाँटे गये थे, हमारे मालिक की साईड में कोई दिक्कत ना थी, पर उनकी साईड में थी, निचे के घर में रहनेवालों को अक्सर हर अमावस पूनम को ऐसा प्रतित होता था की कोई सिने पर बैठा हो , और गला दबा रहा हो।
            एक दिन वहाँ रहनेवाली औरत जोर से चिल्लाते हूँवी कमरे के बाहर आई, उसके चिल्लाने के आवाज से हमारी नींद भी खुल गई, देखा तो वो काफी डरी हूँवी थी, वो अपनी आपबिती बता रही थी, की किसीने उनका गला दबाने की कोशिश की, उन्होनें आँख खोलकर देखा तो कोई नहीं था, जो उस दिन वो भागी वापस कभी लौटकर नहीं आई, सामान लेने के लिए भी उसने किराये के लोगों को भेजा, वो बाहर से ही उन्हें बताती, पर अंदर नहीं गई।
              उसके बात मेरे पापा, नानी और मम्मी को भी वैसे ही अटपते अनुभव आये, हालांकि कोई उनके सिने पर नहीं बैठा, ना ही उन्हें साँस लेने में दिक्कत आई, पर हमारे मामले में बात कुछ और थी, तीन मजली इमारत थी वह। पहला मजला तो वैसा था, दुसरे और तिसरे मजले में भी दिक्कत कम ना थी, जब भी हम सोते थे, तब रात को हम निचे वाली सिढीयों के दरवाजे पर कुंडी लगा लेते थे, तांकि एक बार सोने के बात कोई दिक्कत ना हो, हमारी सिढीयाँ भी काफी डरवानी थी, मेरा भाई सबसे बडा था, पर वो भी आते समय मेरी मम्मी को पूकारता रहता था, मेरी छोटी बहन भी आते वक्त डरती थी, लाईट लगाने के लिए कोई सिस्टम नहीं थी, तो घना अंधेरा रहता था, उपर से ऐसी कहानीयाँ सूनी थी की डर लगता था।
         एक दिन मेरे पापा को आने में देर होनेवाली थी, सिढीयों का दरवाजा खुला ही रखा था, तो सिढीयों से किसीके चलने की कदमों की आवाज सूनाई दी मम्मी को, हम तो सो चूके थे, तब ज्यादा हम टीवी नहीं देखते थे, नऊ बजे तक सो जाते थे, करीबन दस सव्वादस बजे थे, बाहर से हमारी कुंडी खट खटाकर कोई पापा का आवाज निकाल कर पुकार रहा था, माँ ने दरवाजा खोला तो कोई नहीं था, हम सब डर जायेंगे इसलिए उसने कुछ नहीं बताया।
         ऐसा अनुभव हर बार आता था, मेरी मम्मी किसी बजह से अस्पताल में भरती थी, नानी हमारे पास रहती थी, एक दिन हम सब पापा भी घर आये थे, मम्मी के पास मामा रुके थे, क्यूंकी नानी को दिखने में दिक्कत थी, और हम सब छोटे थे, उसे स्टोव्ह जलाना नहीं आता था, बटन कभी ऑन रह जाता था, तो पापा लौटकर आये थे।
          खाना खाने के बाद हम सब सो गये, सोने के बाद कुछ देर बाद पापा की आवाज नानी को सुनाई दी, जब की दरवाजा खोलने पर कोई ना था, दरवाजा बंद करके उसने देखा की पापा तो अपने जगह पर सोये थे, हर बार यहीं  होता था, बाहर चलने की आवाज, दरवाजा खटखटाने की आवाज, फिर बाहर से कोई तुम्हारी ही आवाज निकाल कर एक बार पूकारता , दूसरी बार वो कभी नहीं पूकारता था।
          तो हमें मालूम हूँवा था, की जब तक बाहर से दो या तीन बार कोई ना खटखटाये, पूकारे नहीं हम दरवाजा ही नहीं खोलते थे, हमारे बीच लंबी गच्ची हूँवा करती थी, तो एक बार मेरे मामाजी वहीं सोये थे, हमने दरवाजा खुला ही रखा था, तो मामा ने अचानक नींद में ही सिढीयों के अंदर आनेवाला दरवाजा खोला, और अचानक ही उसकी नींद खुली, वैसे ही वह बिस्तर लेकर अंदर चला आया, पर कुछ नहीं बताया, एक बार वहीं बारादें में सोया था, यूँही पूनम की रात थी, वो वॉशरूम गया, तो तीन बार उसको किसीने उपर पटक के निचे गिरा दिया, सुबह तक वह वहीं पडा था।
           हम उपर टेरेस पर सोने जाते थे, तब सब माँ, पापा , मेरी बडी बहन उपर से दूसरे मजले तक यूँही नींद में बडबडाती नीचे आते थे, दूसरे मजले तक आकर उनकी नींद खुलती थी, और उनके सामने दिखने वाली गढे अचानक गायब होते थे।
          हम इतनी भयानक जगह पर रहने के बावजूद भी हमें कभी कुछ ना हूँवा, हम सब आज भी ठीक है, कोई कहता था, हमारे यहाँ भूतप्रेत थे तो कोई कहता था, हमारे मालिक के पूर्वजों ने जमीन के निचे धन रखा है, जाने क्या बात थी, पर मुझे कभी कुछ ना दिखा, हम हर पूनम अमावस को कुछ खाना नवैद्य के तौर पर उपर टेरेस पर रखते थे, पर हमारे लिए फिर भी वो जगह बडी अच्छी थी, तब हमारे आर्थिक हालात अच्छे ना थे, तो उस जगह ने हमारा साथ निभाया, तो वो आज तक की यादों में शामिल सबसे अच्छा घर है।
      

   


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रचनाएँ
ख्बाब का साया लघू कहानी संग्रह
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ये किताब मेरी कुछ सच्ची घटनाओं का ले़खन है जो मेरे आस पास रहनेवालों के साथ घटा है, आशा करती हूँ आपको अच्छा लगेगा। बचपन में ये कहानियाँ मैंने सुनी थी आपको सुना रही हूँ।
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