बहुत पुरानी बात है, करीबन मैं तब सात आठ साल की हूँवा करती थी, तब ज्यादातर हमारे नाना नानी का गाँव में कोई आने जाने के लिए गाडी नहीं हूँवा करती थी, या तो सायकल से या फिर बैलगाड़ी का सहारा लेना पडता था। 10-20 किमी से ज्यादा ही अंतर पैदल या फिर साइकल से आना पडता था। वैसे तो एक वक्त में हमारे नाना जी गाँव के पाटील हूँवा करते थे, बडा रुतबा था उस वक्त गाँव में, पर बिमारी की चलते बच्चे छोटे थे तब उनकी मौत हो गई ।
फिर मेरे चार पाँच मामा और मेरी माँ और मावशी सबकी पढाई लिखाई पुरी करके उनकी शादी हो गई। पर मेरे छोटे मामा की पढाई बाकी थी, तो वो अपने बहन के घर पर सांतवी के पढाई के लिए रुका हुँवा था, अक्सर भूत खेत या तो मेरे मामा या फिर मावशी को ही दिखाये देते थे। तब बहुत से ऐसे वाकई हुँवे है उनके साथ।
सातवी की उसकी फाईनल एक्झाम थी, बस पेपर खत्म करके आने में उसे बहुत देर हो गई, वो सायकल पर आ रहा था, उसमें कहते है की मुश्किल में ओर मुश्किल सायकल ही खराब हो गई उसकी। सायकल ठीक करते करते बहुत वक्त चली गया।
फिर कहीं से सायकल ठीक हो गई, मेरा मामा जल्दी जल्दी बस सायकल चलाने लगी, अमावस की रात थी, पर एक्झाम थोडी ना अमावस पूनम वक्त देखकर आती है, घर के लिए एक बडा सा तालाब क्रॉस करके जाना होता था, तब बहुत सारे किस्से मशहूर थे उस तालाब के, साल में कितने ही लोग वहाँ जाकर मर चुके थे। तब से तालाब पे जाने के लिअ मना किया गया था।
उस तालाब में एक हलवाई ने भी किसी वजह से जान दे दी थी, तब हर अमावस को उस तालाब से कुछ खमंग और मिठी खुशबू आती रहती थी, वहाँ पर कुछ परछाई दिखाई देती थी, डरते डरते जैसे वैसे वो एक पूल पर आ गया, निचे से नदी बहती थी, बस पूल पार करने के बाद थोडा आगे ही तालाब था, जैसे ही वह तालाब के पास आया, तो दूर से ही कुछ तलने की खुशबू आने लगी, जो हर किसीको अपनी ओर आकर्षित करती थी।
यहाँ तक ठीक था, पर थोडी दूर जाते ही उसे एक सफेद कपडे पहना हूँवा आदमी दिखाई दिया, उसने मामा को सायकल रोकने का इशारा किया, पर मामा ने सायकल ना रोकी, फिर आगे जाते फिर वहीं आदमी मेरे मामा के सायकल के सामने आकर रुक गया, फिर उसने मामा को सायकल पर बिठाने के लिए पूछा तो मामा भी छोटा बच्चा ही था, उसने हाँ में सर हिला दिया।
वो सफेद कपडे पहना आदमी आकर सायकल पर बैठ गया, जैसे ही सायकल आगे बढने लगी, तब सायकल अचानक से धीमे हो गई, सायकल पर बैठा आदमी अचानक से अपने पैर बैठे बैठे ही लंबे करने लगा।मामा को सायकल धीमे चलने की बजह समझ में नहीं आ रही थी, तब उसने पिछे से अचानक मेरे मामा को अपना नाम पुछा, जब उसने अपना नाम सिताराम कहाँ तो उसने अचानक साइकल रोकने को कहाँ, और उसने कहाँ क्यूंकी मेरी यहाँ तक ही हद थी, मैं यहाँ से आगे नहीं आ सकता, क्यूँकी तुम्हारा नाम सिताराम है इसकी बजह से मैं तुम्हें छोड रहा हूँ, नहीं तो तुम्हें मैं अपने साथ लेकक चला जाती आज।
ये कहके वह आदमी अचानक बहुत बडा हो गया, पता नहीं कहाँ से एक सफेद घोडा आया, वह उस पर बैठकर चला गया, ये देखते ही मेरा मामा वहीं बेहोश हो गया, दुसरे दिन मेरे काका रात में मामा घर ना पहूँचे तो ढूंँढने निकल गये,तो मेरा मामा बेहोश पडा था, और सायकल उसके पास ही पडी हूँवी थी, मेरा काका उसे घर पर लेकर आया, उसे होश में ले आये, पर उसे जोर से बुखार आ गया, जो कुछ करने से उतर ना रहा था, हाकीम दवा भी कर ली, पर बुखार कम होने का नाम ही नहीं ।
मेरा मामा बुखार में बडबडाता था, फिर किसी बुर्जगों के कहने पर एक तुकडा बनाकर कुछ सामान के साथ उसपे से उतारकर वहीं तालाब में डाल दिया, तो दो तीन दिन बाद बुखार चला गया। ये था मेरे मामा के साथ घडा हुँवा कुछ, ऐसे बहुत बार हुँवी उसको की भूत दिखाई देते थे, पर शुक्र है की उसे कभी कुछ ना हुँवा, पर बचपन में वो हमें डराने के लिए भूतों का डर दिखाता रहता था।