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पापा का भूतो से सामना

16 जुलाई 2022

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            आज फादर्स डे है, तो आप सभी को और आपके पापावों को फादर्स डे की ढेेरों बधाईया, वैसे सच में माँ के बुनियाद पर इमारत रचने का काम तो पापा ही करते है। पर फिर भी ना जाने क्यूँ थोडे नजर से दूर ही रहते है। क्या करें प्यार माँ के जैसा कर नहीं सकते, थोडे स्ट्रीक्ट जो रहते है।आजकल पापा तो दोस्त हो गये है, पर मैं और मेरे भाई बहन लकी थे की मेरे पापा दोस्त थे हमारे। मुझे याद नहीं की पापा ने कभी हमें डाँटा हो, वो डिर्पामेंट तो मेरे ममी के पास था। आज मेरे पापा इस दुनिया में नहीं है, करीबन 18-19 साल हो गये उन्हें गूजरे हुँवे, पर माँ पापा तो कभी गूजरते ही नहीं, अपने बच्चों में थोडा थोडा करके कायम रहते है, और किसी महापुरुष ने कहाँ है पापा को कभी थे नहीं कहते, क्यूँकी हमेशा उनका नाम हमारे नाम के आगे लगता है, तो उसी नाम में वो जिवित रहते है।
                  तो मेरे पापा की भूतों की कहानी मैं आपको सुनाने जा रही हूँ, मेरे पापा की कोई सोने की खान ना थी, तो बचपन से ही उन्हें बहुत मेहनत करनी पडती थी। मेरी दादी जी घर घर जाकर खाना बनाने का काम करते थी, और मेरे पापा अपने छोटे भाई को संभालने के साथ साथ माँ की मदद भी करते थे।
                    पापा छोटे छोटे काम किया करते थे, काम के बजह से वो बहुत जगह घूमते रहते थे। तब मेरे पापा अहमदनगर में रहते थे, हांलाकि अहमदनगर में ही उनका पूरा स्कुल हो गया। तब मेरे दादाजी के पहचान से काफी जगह काम मिलता था, मेरे दादाजी कलेक्टर के बेटे थे, और उन्हें किसी भी चीज़ की कमी ना थी, पर समय का पहिया उल्टा घूमा और मेरे पापा को माँ पापा के साथ दर दर की ठोकरे खानी पडी।
                 मेरे पापा को एक सरकारी जॉब मिलने वाली थी, तब के जमाने में जान पहचान से जॉब मिलती थी, अब सिर्फ जान पहचान ही काफी नहीं है जान पहचान के साथ माल का होना भी जरुरी है। तब वैसा नहीं था, जान पहचान ही काफी था।
               जहाँ पर नोकरी करना चाहते है वो तो नगर में ही था, पर उनके साहेब घोडेगाव में रहते थे। सब काम करकर अहमदनगर से निकलने में काफी देर हो गई थी, मेरे पापा और दादीजी सायकल पर बैठकर घोेडेगाव गये थे, वो आदमी तो ना मिला पर वहाँ से लौटना भी जरुरी था, तो लौटते लौटते काफी रात हो गई।
                जब पांढरी के पूल पर मेरे पापा और दादी आये तब मेरे दादी माँ को और पापा को एक औरत सफेद साडी पहनी जोरों से चिखती हूँवी मुझे बचाव, मुझे बचाव करकर चिल्लाती दिखाई दी। मेरे पापा तब करीब 22से 23 साल के होगें , मेरे पापा दादी माँ को कह रहे थे, वो देखो माँ वो औरत हाथों में लालटेन लिए पुकार रही है।
            तब मेरे दादी माँ ने उन्हें चूप रहने को बोला। मेरे पापा को सायकल को जोरों से चलाने को कहाँ तब कुछ देर चलने के बाद उन्हें कुछ आदमी सामने दिखाई दिये उनके जान में जान आ गई।
         कई बार मेरे पापा को भूत दिखे है, एक बार अहमदनगर में सरकारी अस्पताल के पास भूत दिखाई दिया, मेरे पापा काम से सायकल पर आ रहे थे, तब एक आदमी अचानक उनके पास आकर मै सायकल परबैठू क्या ये पूछने लगा तब मेरे पापा ने उनका बैठने को कहाँ, तब उस आदमी ने फिरे पूछा कहाँ बैठू पिछे या फिर आगे। तब पापा ने कहाँ पिछे बैठो तब वो पिछे बैठ गया।
          जैसे ही मेरे पापा ने सायकल चलाना शुरु किया वैसे ही उस आदमी ने अपने पैरों को फैलाना शुरु किया, उसने इतने लंबे पैर फैलाये की सायकल जगह पर ही रुक गई, तब मेरे पापा सायकल छोड भाग गये। बाद में मेरे चाचाजी अपने दोस्तों के साथ मेरे पापा को लेकर गये और सायकल लेकर चले आये। कहते है आज भी अस्पताल के पास भूत दिखते है।
             मेरे ममी को भी सीना नदी के लोखंडी पूल के पास भूत दिखा था। मेरे ममी पापा अपने मामा के यहाँ से खाना खाकर देर रात निकले थे घर के लिए, तब मामा के लाख रोकने पर भी दोनों ना रुके। तब पापा को नदी पर आते ही उलटी आने लगी, पापा ने सायकल वहीं रोककर उलटी करने लगे। मेरी ममी वहीं पास खडी थी। रात के बारह बजे थे, तब ममी को एक औरत दिखी, जो पहली छोटी थी, फिर अचानक बढते बढते वो खंबे से भी ज्यादा ऊंची हो गई। मेरे ममी काफी डर गई, पर पापा ना डरे इसलिए ममी ने पापा को बताया नहीं, तभी पिछे से कोई सायकल लेकर आता हुँवा दिखाई दिया।
              ममी ने झट् से उसे रोका , और पापा के उलटी होने तक रोकने को कहाँ, भला मानस था, वो रुक गया। फिर पापा के सायकल पर बैठकर ममी निकली और पिछे वो आदमी सायकल चला रहा था। जैसे ही पूल पार हुँवा, लोग दिखने लगे। तब वो अपने रास्ते और मेरी ममी पापा अपने घर चले आये।
             दूसरे दिन ही ममी बिमार पड गई, उसे राम मंदिर  ले जाकर एक धागा बाँधा, उस पूजारी ने देखा तो वो औरत दिखने का सच पता चला, उस औरत ने वहाँ पर खुदकुशी की थी, तभी वो हरी साडी पहने दिखाई देती थी। पूजारी के बताने पर मेरे दादी माँ ने एक उतारा बनाकर ममी के उपर से उतारकर सीना नदी के पूल के पास फेक दिया। तब उसका बुखार उतरकर दो तीन दिन बाद मेरी ममी ठिक हो गई।
              ऐसी बहुत सी जगह थी नगर में जहाँ जहाँ पर भूतों का डेरा है।  हमारे पापा के नगर जिल्हे में आगडगाव करकर  एक गाँव है जहाँ आज भी भूतों की जत्रा होती है। महाराष्ट्र में एक ही गाँव होगा जहाँ इंसानों के जैसे भूतों का मेल लगता है। मान्यता है की इंसानों के मेले के दूसरे दिन बाद भूतों का मेला लगता है, काळ भैरव नाथ के मंदिर में।
उस दिन सब लोग शाम को ही मंदिर बंद करके सब बोरिया बिस्तर लेकर निकल जाते है।
            आज भी कब से ये प्रथा चालू है, जो जो वहाँ रुका है उस दिन कुछ कहने को जिंदा ना बचा है।ये थी मेरे पापा की भूतों से आमना सामना होने की कहानी। मेरे पापा के मरने से पहले एक साल पहले भी जब उनको दिल की दौरा पडा था तब भी उनको भूतों ने ही झपाट लिया था। पर हमारे घर के सामने रहने वाले एक बुजुर्ग औरत ने उनके उपर से उतारा उतारकर फेक दिया था। तब उनकी तबियत में सुधार आया। मिलते है अगली कहानी में।
   
               
                   

           
      

        

             


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