लघुकथा...... "बज गई शंख" शंख बज गई झिनकू भैया के आँगन में, भौजी के पाँव लाल महावर और भैया की पियरी मने मन खूब मलका रही है। नवुनिया गमछा और अँचरा पकड़े अड़ गई है एक सौ एक रुपैया लिए बिना गाँठ नहीं बाँधने वाली, टेट ढीली करो मालिक, आज तो सरेआम ही लूट लूंगी। बहुत सताते हो न,