"सुनो सुनयना मेरी बात" सुनो सुनयना मेरी बात, जिसकी गोंद में हम सभी पले-बढ़े, उछले-कूदे, नाचे-गाए और खेले-खिलाए। उसकी सुंदरता की सरिता में भीगे- नहाए, छाँव में बैठे तो धूप में कुम्हिलाए। बरसात की बौछार छलकाए तो ठंड में ठिठुरे भी। पुरखों की रजाई ओढ़ी तो माँ के आँचल को बिछाया