"विधा- दोहा"रे रंगोली मोहिनी, कैसे करूँ बखानविन वाणी की है विधा, मानों तुझमे जान।।-१भाई दूजी पर्व है, झाँक रहा है चाँदनभ तारे खुशहाल हैं, अपने अपने माँद।।-२झूम रही है बालियाँ, झलक उठे खलिहानपुअरा तपते खेत में, कहाँ गए धन धान।।-३नौ मन गेंहूँ भरि चले, बीया बुद्धि बिहानपानी