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अमरीका के स्वर्ग समान सुख के नरक की सच्चाई

17 जून 2016

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भारत सहित विश्व के विकासशील और गरीब देशों के लोगों से पूछा जाए कि किस देश में बसना चाहेंगे तो ज्यादातर का जवाब होगा अमरीका। अमरीका शायद सबके सपनों का देश है। एक ऐसा देश जहां चमचमाती गगनचुंबी इमारतें हैं। शानदार सड़कें हैं। मनोरंजन की तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं हैं। साफ-सुथरा वातावरण। व्यवस्थित जिन्दगी। इन सबसे भी बढ़कर है व्यक्तिगत स्वतंत्रता। इसे उच्छृंखलता कहना ज्यादा ठीक होगा। फिर भला ऐसे स्वर्ग समान जीवन को कौन नहीं जीना चाहेगा। जहां न किसी को किसी परवाह और ना ही कोई सामाजिक या पारिवारिक जिम्मेदारी के संस्कार। पाश्चात्य जगत के सिरमौर इस देश की चमक-दमक में छिपी विद्रुपताओं और विडंबनाओं से बाहरी दुनिया कम ही वाकिफ है। जैसे हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती, कुछ वैसी ही अमरीका की अंदरूनी हकीकत है। ऊपर से दिखाई देने वाले इस स्वर्गिक आनंद के नरक का अंदाजा तभी होता है, जब पागलपन लिए हुए दिल-दहलाने वाली वारदात का कोई बुलबुला कथित आधुनिक सभ्यता-संस्कृति के झंडाबरदार अमरीकी समाज की सतह पर आकर फूटता है। पिछले दिनों एक सनकी ने फ्लोरिडा के ऑरलैंडों में एक नाइट क्लब में अंधाधुंध गोलीबारी करके 50 लोगों को मार डाला। अमरीका में हालत यह हो गई है कि स्कूल में अध्यापिका ने डांट दिया तो गुस्से में छात्र ने घर से बंदूक उठाई और स्कूल में जाकर फायरिंग कर दी। किसी की प्रेमिका से पटरी नहीं बैठी तो खफा होकर बंदूक से सरेआम लोगों को भून डाला। ऐसी भावनात्मक और मानसिक परेशानियों का हिसाब सार्वजनिक स्थलों पर लोगों पर को निशाना बना कर चुकता किया जा रहा है। विक्षुब्धता में किए गए ऐसे नरसंहारों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह उस अमरीकी समाज और देश की असलियत है, जो चेहरे पर कई तरह के विकास और आधुनिकता का मुलम्मा चढ़ाऐ हुए है। जहां बात-बात पर किशोर और युवा सरेआम लोगों पर गोलियां बरसाते हैं। वर्ष 2007 से लेकर फ्लोरिडा में हुए हादसे सहित कुल ऐसी छह वारदातें हो चुकी हैं। जिनमें करीब 140 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। आखिर सर्वशक्तिमान और स्वयंभू अमेरीका में ऐसे हालात क्यों उत्पन्न हो रहे हैं कि वहां के युवा और किशोर अपने ही लोगों के खून के प्यासे हो रहे हैं। अमेरीका से बेहद पीछे विकासशील और गरीब देशों में ऐसी घटनाएं क्यों नहीं होती। भारत सहित ऐसे अन्य देशों में इस तरह की हिंसक वारदात हों तो यह समझा जा सकता है कि व्यक्ति ने गरीबी-बेरोजगारी या बीमारी से तंग आकर ऐसा रास्ता अपनाया है। अमरीका जैसे साधन सम्पन्न और धनी देश में ऐसी दुश्वारियां भी नहीं हैं। फिर भी वहां ऐसी वारदातें दुनियां को चौंका देती हैं। वर्ष 2012 तक अमरीका में आपसी रंजिश को लेकर गोलीबारी की 9 हजार 960 वारदातें हुई। यह निजता की आड़ में पनप रही बंदूक की संक्रमित संस्कृति का द्योतक है। राष्ट्रपति बराक ओबामा इस बुराई पर लगाम लगाने की पैरवी कई बार कर चुके हैं। अमरीका में ताकतवर हथियार लॉबी इसकी समर्थक है। अमरीकी ऊपरी तौर पर चाहे कितने ही ताकतवर नजर आते हों, किन्तु बंदूक चलाने की घटनाओं से साफ जाहिर है कि आर्थिक तौर पर समृद्ध अमरीका समाज अंदर से खोखला होता जा रहा है। असुरक्षा के साए में जी रहा है। अमरीकियों को दुनियां के दूसरे मुल्कों से इतना खतरा नहीं है, जितनी अपने खुद के लोगों से है। जोकि बात-बात में हथियार उठा लेते हैं। क्योंकि हथियार वहां सहजता से उपलब्ध हैं। दरअसल अमरीका अत्यधिक विलासिता और भौतिक साधनों की अति का शिकार हो चुका है। समाज और परिवारों का लगातार विखंडन हो रही है। किसी को टोकना या दखलंदाजी करना अमरीकियों को पसंद नहीं है। यहां तक की गलती करने पर बच्चे को भी नहीं डांटा-फटकारा जा सकता। इसी से ही आगे चलकर उसे किसी तरह का विरोध या गलती सहने की आदत नहीं होती। व्यक्तिवाद और भोगवाद की ऐसी संस्कृति पनप रही, जिसने सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है। सामाजिक सौहार्द तभी पनप सकता है, जब संवाद कायम हो। परिवार या सामाजिक स्तर पर संवादहीनता से युवाओं की विक्षुब्धता बढ़कर उन्हें हिंसक बना रही है। टूटते बिखरते परिवारों में संवाद लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में मनोरोगियों की संख्या बढऩा स्वभाविक है। अमरीका में हर पांच में से एक व्यक्ति मनोरोगी है। हर साल युवाओं की कुल आबादी का 18.2 प्रतिशत हिस्सा किसी न किसी तरह के मनारोग का शिकार बन रहा है। अमरीका में परिवार की जिम्मेदारी उठाने का आसान विकल्प सरकारी अनाथालय हैं। जिनको अमरीकी सरकार संचालित करती है। निजी स्तर पर निरंकुश आजादी और परिवार के प्रति गैर जिम्मेदारी का भाव अमरीका को भौतिकवाद के अंधे गर्त में ले जा रहा है। प्राकृतिक और धार्मिक मान्यताओं के विपरीत समलैंगिक समाज पनप रहा है। आजादी और प्रगति के नाम पर समाज व परिवार तोडऩे वाली ऐसी बुराईयां विश्व के दूसरे मुल्कों में भी फैलने लगी है। अमरीका में व्यक्ति सिर्फ एक इकाई भर रह गया है। रिश्ते-नाते निभाने की जिम्मेदारी और दवाब से मुक्त है। उसके लिए सरकार मौजूद है। ऐसे में पारिवारिक और सामाजिक संबंधों का महत्व ज्यादातर अमरीकियों की समझ से परे है। एकाकी और भौतिकवाद से अघाई अमरीकी जीवन शैली का ही परिणाम है कि वहां आत्महत्या की दर प्रति वर्ष 42 हजार 773 है। प्रतिदिन 117 लोग मौत को गले लगा रहे हैं। जिसमें से 50 प्रतिशत आग्नेय हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। दुनिया में हथियारों के बड़े सौदागरों में से एक अमरीका अब खुद ही हथियारों के खुलेपन की नीति का खामियाजा भुगत रहा है। यह उसी अमरीका की असली तस्वीर है, जो संस्कृति-सभ्यता के लिहाज से दूसरे देशों में कमियां गिनाता है। इसी आधार पर मदद रोकने के लिए उन्हें काली सूची में डालने से नहीं हिचकता। इससे बड़ा दुभागर््य क्या होगा कि यही अमरीकी संस्कृति खासतौर पर विकासशील और गरीब देशों में पैर पसार रही है। अमरीका को यदि विश्व में दूषित संस्कृति का संवाहक कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। शराब, ड्रग्स, नीली फिल्मों से जैसी बुराईयों का बरगद अमरीका ही रहा है। विकास और निजी आजादी के नाम पर विश्व में फैल रही ऐसी समस्याओं से मुकाबला सरकारी बलबूते पर संभव नहीं है। इसके लिए मजबूत परिवार, समाज और आध्यात्म की जरूरत है।

yogihimliya66@yahoo.com

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