शुद्ध हवाएँ बहक गयी, और सिमट गयी मेरी धरती,
नदियां, निर्जल, सूखी सी और प्यासी है मेरी धरती.
व्यथा सुनाते खड़े पड़े, ये जर्जर वर्क्ष सदा हमको,
हमने उनको काट दिया, जो जीवन देते थे हमको.
दूषित अम्बर रोता है, सोता है विष की चादर में,
पसर गया प्रदुषण अब हे मानव तेरे घर - घर में.
में तो प्यास बुझाती हूँ,फिर मुझको तू दूषित मत कर,
बेटा में तो पानी हूँ, पानी रहने दे ज़हर न कर.
मेरी वर्षा की बूंदो में,