ये मुख्यतः मेरा स्वयं का मौलिक काव्य संकलन है । समय समय पर परिस्थितियों के अनुरूप मन आत्म झंकृत होती रहती है तदनुसार कुछ 'शब्द' बिखर जाते हैं । ये बस उन्ही का परावर्तित परिणाम है। ** राम को भजो राम सम सजो । मन वाणी अरु कर्म से राम संग रहो ।। ** ** तेरा मेरा क्या करते हो कुछ न संग चलेगा ढाई आखर जो रमा उसका डंका ही बजेगा **
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