डूबता हुआ सूरज दे जाता है संध्या की लाली,
एक खूबसूरत गुलाबी सांझ मतवाली...
डूबता डूबता भी सूरज चांद दे जाता है,
बदले में फिर भी ताने वह खाता है...
वह है प्रतीक दिन ढलने का,
वह है प्रतीक सुकून की रात आने का...
जैसे आज बीत जाएगा,
एक नया कल भी तो आएगा....
फैलाकर आकाश में नए खूबसूरत रंग,
सूरज फिर से लाली में डूब जाएगा...
ना आंसू ना बेचैनी सिर्फ सुकून की आस,
मदहोश चांदनी कमल के आसपास...
उमड़ते बादल और महकता सा गगन,
डूबता सूरज और लहलहाता उपवन...
उम्मीद की रोशनी सुकून की किरण,
चारो और प्रीत के नज़्म....
आकाश को छूती लहरों की अंगड़ाई
और उड़ते पक्षी मस्त मगन
ढलते सूरज के साथ उगता चांद और ठंडी पवन,
और विदुषी की साँझ की कलम...
Written and copyright
by Vidushi malpani "Veena"
khandwa mp