अपने अन्दर के पट खोलो
सोच समझकर फिर कुछ बोलो।
भीतर एक संसार बसा है,
फूलों का अम्बार दसा है।
सब अपने और सब मे मै हूँ।
तुझको किसी से बैर न होगा,
तेरे लिए कोई गैर न होगा।
औरों के दुख मे तुम रो लो,
करुणा दया के बीज तो बो लो।
भेद-भाव जब मिट जायेगा
ऐसा पल जब आ जायेगा।
सारा जहाँ नजर आयेगा
अन्धकार जब ढल जायेगा,
गीत प्रेम के तू गायेगा।
सुंदर सुंदर नदिया झरने
निर्मल जल से मन को धो लो।
सुरेश कुमार 'राजा'