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8 जून 2016

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ये कहानी है एक ऐसे लड़के की जो शादी के बाद अपने बूढ़े माँ - बाप को छोड़ कर उनसे कहीं  दूर जा कर रहता है ...और एक दिन जब वह सो रहा होता है ,तब उसके साथ एक विचित्र  घटना घटती हैं ...जो मैं आप सब के समक्ष इस कविता के रूप मे  प्रस्तुत करना चाहूंगा ....

....

एक  रात  को था जब मैं सोया ...

जब नींद खुली ,था सब खोया ....

जिस छत के निचे था मैं सोया उसको था कुदरत ने ढोया ...

फिर दौड़ के मैं उस ओर  गया ...जहां मैं अपनों को था छोड़ गया. ..

कुछ बचा न था अब अपना सा. ..सब कुछ तो था एक सपना सा. ..

यह देख मैं था घबराया ...कैसी थी यह कुदरत की माया. ..

जब आँख खुली तब ये पाया. ..अरे मैंने तो  सपने में  था एक सपना बुनाया... 

अब मैं था यह सब कुछ जान गया.....

सच कुछ न था यह मान गया. ...


अब सोचा जाऊ अपनों के पास. ....

अपना लेंगे इसकी थी आस ....

फिर निकल पड़ा मैं अपने घर. ...

कुछ घंटो की दुरी लगी कुछ महीनो का सफ़र .......शायद ये था उस मिलने की बेचैनी का असर ........


....फिर पंहुचा मैं अपने घर ....और उठाया मीठा स्वर .....

...माँ .....पिताजी ........माँ .....पिताजी .....

माँ दौड़ी आई नंगे पाँव. ...

गले लगाकर उसने  भर लिए अपने सारें घाव. ...

उस दिन थी वो खूब रोई....जैसा खोया हुआ अनमोल रत्न मिल गया हो कोई .......


अब तुम  भी यह सब जान लो. ...कुछ ऐसा न करोगे यह ठान लो ........

और माँ - बाप से बढ़कर इस दुनिया में कोई नहीं हैं यह मान लो......


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