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अपराध बोध

10 नवम्बर 2021

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हिलाने पर उसकी चेतना को झटका सा लगा... दिमाग तक अस्पष्ट से शब्द पहुंचे। नींद से बोझिल दिमाग पहले तो कुछ समझ न पाया, फिर एकदम से अपनी स्थिति का भान हुआ तो उसे लगा कि कहीं उसे लोग उठा तो न लाये।
यह ख्याल ही उसे तड़पा देने के लिये काफी था... उसने झटके से आंखें खोल दीं। सिवा धूप के कुछ न दिखा। उसने भनभनाते दिमाग को काबू में किया तो फोकस साफ हुआ और वह साफ देख पाया... दूर दिखती भीड़, जिसमें उसके अपने भी थे— पास आ चुकी थी और उसे घेरे में लिये थी लेकिन वह अहम नहीं थे। अहम वे थे जो उस घेरे के अंदर थे... आदिल की मां, उसकी बीवी और उसके तीनों बच्चे... वे सभी उसे देख रहे थे। उसने एक-एक कर उन सभी की आंखों में झांका... लेकिन उनमें नफरत नहीं थी, दया थी और उनके हाथों में खाने पीने का सामान था।
उसे शायद आदिल की मां ही उठा रही थी जो उसके उठ बैठते ही सीधी हो गई थी। उसके हाथ में जूस का गिलास था... बीवी एक प्लेट में शायद खिचड़ी लिये थी... बेटा दही की कटोरी और बेटी पानी का गिलास लिये थी... छोटा बच्चा मां की उंगली थामे उसे देख रहा था।
"खा ले बेटा— जितनी सजा तूने भोग ली, वह काफी थी। मेरा बेटा तो चला गया, अब वापस आने से रहा। अब उसके पीछे एक जान और जाये, हमें यह गवारा नहीं। हम तुझे अपने बेटे का खून माफ करते हैं।" कहते हुए बूढ़ा की आवाज रूंध गई थी।
उसे मुक्ति मिल गई थी— दिल का गुबार छलछला कर आंखों से बह चला। उसने हाथ जोड़ दिये और अवरुद्ध कंठ से बड़ी मुश्किल से बोल सका—
"मैंने आपके बेटे को नहीं मारा था— लेकिन मैं भी उस अनियंत्रित, दिशाहीन, उन्मादी भीड़ का हिस्सा था जिसने आपके बेटे की जान ली थी। उस गुनाह के बोझ से मैं कभी मुक्त न हो सका। कहां न भागा मैं लेकिन कहीं मुक्ति न मिली। सोच लिया था या माफी मांग लूंगा या आप की चौखट पर देह त्याग दूंगा। इससे बढ़ कर कोई उपाय नहीं मुक्ति का। आप लोगों ने माफ कर दिया... मैं अपने पाप के बोझ से मुक्त हो गया, लेकिन जिम्मेदारी के बोझ से मुक्त होना कभी गवारा न करूंगा। मैं आज सबके बीच यह प्रण करता हूं कि आपके बेटे के हिस्से की जिम्मेदारी मैं निभाऊंगा। कानून मुझे जो सजा देता है चुपचाप वह भुगत लूंगा और जेल से छूटकर आप लोगों के लिये वही करूंगा जो आपका बेटा करता। खुद कभी घर न बसाऊंगा। मेरा जो भी परिवार होगा वह आप लोग होंगे। इन बच्चों की परवरिश और पढ़ाई मेरी जिम्मेदारी है। इस बहन की देखभाल मेरी जिम्मेदारी है, जिसे मैं आखरी सांस तक निभाऊंगा... यही मेरा प्रायश्चित होगा।"
सभी की आंखें भीग गई थीं और उसका प्रण सुन कर उसकी मां तो बाकायदा रो पड़ी थी जिसे पिता संभालने लगे थे।


sayyeda khatoon

sayyeda khatoon

बहुत बेहतरीन

10 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
अपराध बोध
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सोशल मीडिया के सहारे दिमाग में भरते जहर का शिकार हो कर कैसे कोई गंदी सियासत का एक मोहरा बन कर अपनी जिंदगी खराब कर लेता है, यह उससे बेहतर कौन जान सकता था जिसने अपना सुनहरा भविष्य वक्ती जज्बात के हवाले हो कर खुद अपने हाथों से बर्बाद कर डाला था।
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