"बोल,” थानेदार ने फिर से घुड़की दी और मटरू कुछ और भी सिमट गया।
“साहेब, हम निर्दोष हैं, हमका कुछ नहीं मालूम।”
“वो तो तू कब से बक रहा है, मुझे ये बता कि अगर तुझे कुछ पता नहीं तो तू वहाँ कैसे पहुँच गया और वहाँ जो लोग थे वह किधर खिसक गए?”
“हमका कुछ नहीं पता।”
थानेदार ने उसके साथ ही सिकुड़ी बैठी उसकी जोरू गहना को देखा, ठीक-ठाक तो दिखती थी, इस जाहिल गवई के हत्थे कैसे लग गयी। उसकी चील जैसे निगाहें भांप कर गहना और ज्यादा सिकुड़ गयी। कहाँ से ले आया कम्बख्त, मैली कुचैली दिखने के बावजूद लगता था के बिना कपड़ों के ग़ज़ब लगती होगी।
“जो मैं पूछ रहा हूँ, वह बता।” थानेदार ने डंडे से गहना को टहोका, ”तू बता।”
“जज-जी, हमे कुछ नहीं पता।”
“क्या कर रहे थे वहां?”
“हम तो शहर से लौटे थे सरकार… वह तो बरसों से ख़ाली पड़ा मकान है, थोड़ा सुसताने बैठ गये कि आपने आके पकड़ लिया।”
“अंदर जाके सुस्ताने लगे थे।” थानेदार ने आँखे निकालीं।
“हमे कुछ आवाज़ें आयी थी… हम अंदर घुसे तो आपने आ पकड़ा।”
“जब उस ख़ाली पड़े मकान में तुम्हारे सिवा कोई नहीं था तो आवाज़ें कैसे सुन लीं?” थानेदार की आँखें सिकुड़ गयीं।
“अब क्या बताएं सरकार, विनाश काले विपरीत बुद्धि।”
“कहावत मत सुना मादर… कल रात मिदनापुर के महाजन के यहाँ डकैती पड़ी है, दो लाख नक़द और तीन लाख के जेवर उड़ाये गए हैं। डकैत चार थे और हमारे भेदिये ने खबर दी थी कि माल का बटवारा करने चरों उस मकान में मौजूद थे, जब हम वहाँ पहुंचे तो वहाँ तुम दोनों ही मिले, इसका क्या मतलब हुआ?”
“हमे का पता।” इस बार गहना ने जवाब दिया।
“चार में से तुम दो … बाक़ी दो कहाँ हैं?”
“यह जादती है माई बाप, हम डकैत नहीं।”
“भेदिये ने गलत सूचना थोड़े दी होगी।”
“हो सकता है हमारे पहुँचने से पहले वह लोग वहाँ हों, हम कुछ आवाज़ें सुन कर वहाँ घुसे थे, तब वह भाग गए होंगे और आपने हमे आकर दबोच लिया।”
“चार हथियारबन्द डकैत तुम दो देहातियों की वजह से भाग गये!”
“शायद आप लोगों के आने की वजह से।” गहना ने पहली बार उसे देखा।
“कैसे? उन्हें नारद जी ने आ कर सूचना दी थी कि हम आ रहे हैं।”
“क्योंकि हमे ऐसी ही आवाज़ आयी थी जैसे फोन बजबजाता है… शायद आपके भेदिये की तरह उनका भी कोई भेदिया आप में हो और उसने फोन कर दिया हो, बोला तो कोई नही था, उन्होंने सुना होगा और सुन के भाग गये होंगे।”
“हम का समझ में नहीं आया था के आवाज़ कैसी थी— वही देखने घुसे थे, अब समझ में आया कि वह फोन बजबजाने की आवाज़ थी।”
“बजबजाना क्या?” थानेदार ने गहना को घूर के देखा।
“अरे साहब, जब फोन बजता नहीं सिर्फ हिलता है बस।”
“वाइब्रेशन।” थानेदार सोच में पड़ गया।
“अरे साहब, अब हमे अंग्रेजी नहीं आती, का करें।”
“देखो— तुम दोनों अगर सच भी कह रहे हो तो भी ऐसी हालत में खलासी मुश्किल है, पूरी इंकवाइरी होगी, फिर देखते हैं के क्या किया जा सकता है। तुम अपनी डिटेल बताओ… मतलब कहाँ रहते हो, क्या काम करते हो, कैसे यहाँ आये?”
मटरू ने सारी डिटेल बता दी। थानेदार एक डायरी पे नोट करता रहा और फिर फैसला सुनाया, ”ठीक है, हम शाम तक चेक कर लेंगे, तब तक ये यहाँ नहीं रह सकती, इसे तब तक मेरे कवार्टर में रुकना पड़ेगा।”
“साहब…” मटरू ने विरोध करना चाहा।
“चुप,” लेकिन थानेदार ने उसे डपट दिया।
पूछताछ ख़त्म हुई, गहना को थानेदार के कवार्टर में पहुंचा दिया गया और वहाँ मौजूद सारे सिपाही इंकवायरी पर दौड़ा दिये गये।
शाम तक का लब्बोलुआब यह रहा कि मटरू की बतायी सारी डिटेल सच साबित हुई और सबकुछ सही निकला। दोनों दिल्ली में रह कर मजूरी करते थे, उनका कोई होता सोता नहीं था, गाव में एक घर था जहाँ जब तब वो दिल्ली से आ कर रहते थे। वह घर, जिस मकान में वह पकडे गये थे वहाँ से एक फर्लांग की दूरी पर था। कुछ लोगों ने निशानदेही की थी कि उनके साथ ही वह बीती रात ट्रैन से दिल्ली से वापस लौटे थे, जिसका मतलब था कि वह कल रात कि डकैती में शामिल नहीं हो सकते थे।
शाम तक थानेदार ने गहना को भी दो बार बिना कपड़ों के समझ डाला और अपने सिपाहियों से क्लीन चिट मिलते ही दोनों को थाने से छुट्टी दे दी।
इस बात को दो दिन गुज़र गये।
भेदिये ने खबर दी कि मटरू के घर वैसे ही ताला पड़ा था जैसे पहले पड़ा था, लगता था कि घर जाने के बजाय वह दिल्ली ही खिसक लिये थे, लेकिन उस बंद घर से कुछ अजीब सी बास आ रही थी।
थानेदार ने चेक करने के लिए कुछ सिपाही दौड़ा दिये।
एक घंटे बाद सूचना मिली कि अंदर छः लाशें पड़ी थीं, जिनकी गर्दने किसी धारदार हथियार से रेत दी गयी थीं और खून बह बह कर आँगन में जम गया था… ख़ास बात ये थी कि उन लाशों में दो लाशें मटरू और गहना की भी थीं।
थानेदार ने अपनी मोटर साइकिल दौड़ा दी।
गांव में शाम के वक़्त अजीब अफरातफरी का माहौल था, छः लाशें बरामद होना कोई छोटी बात नहीं थी, मटरू के घर सिर्फ पुलिस के लोगों की गहमागहमी थी, बाकी ग्रामीणो को वहाँ से दूर खदेड़ दिया गया था।
जिन लाशों को मटरू और गहना की बताया जा रहा था, उन्हें तो थानेदार ने कभी देखा भी नहीं था— उसका सर घूम गया, जबकि सारे गांव ने उन्हें मटरू और गहना के रूप में पहचाना। तो फिर वह दोनों कौन थे जिन्होंने खुद को मटरू और गहना बताया था और दिन भर उनकी पकड़ में रहे थे।
पूरी रात करवटे बदलते गुज़र गई पर थानेदार की समझ में कुछ भी नहीं आया।
अगले दिन जब थाने पहुंचा तो जैसे एक फोन उसकी प्रतीक्षा ही कर रहा था।
“कौन?”
“मटरू— सरकार।”
“ओह,” थानेदार संभल कर बैठ गया, ”दूर निकल गए क्या?”
“हाँ जी, बहुत दूर, अब उस इलाके में दुबारा दर्शन नहीं होंगे। एक आदमी को जेवरात की शकल में आपका हिस्सा दे आया हूँ, आपके घर से निकलते ही भाभी जी तक पहुँच गया होगा, जेवरात ठिकाने लगाने में टंटा था— आपके लिए मुश्किल नहीं।”
“गहना मस्त थी।”
“हाँ जी, पता चला, उसके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता— गाहे बगाहे धंधा करती रहती है।”
“टिकासन कहाँ था?”
“मिदनापुर में— उसी महाजन के घर नौकरी कर रहे थे दोनों बड़े दिनों से, वह चारों भी हमारे ही साथी थे— हाजीपुर के। फोन करके बुलाया था, उस मकान में पी-पिला कर बटवारा करने बैठे थे कि किसी ने आपको बता दिया, हमारे भेदिये ने हमे बता दिया। वहाँ से उठ कर जल्दी जल्दी में भागे तो मटरू का घर ही सामने पड़ा, चारोँ के साथ ही उन देहातियों का भी गला रेत चुका तो ख्याल आया कि फोन तो वहीँ छूट गया था। उसे वापस लेने पहुंचे तो आपकी गाड़ियों की आवाज़ सुन कर फोन से बैटरी सिम अलग करके वहीँ खेत में फेक दिया— बाद में मिल गया था, अब आपने दबोच ही लिया तो मटरू और गहना ही बन बैठे। आप सिपाहियों को हमारी फ़ोटो दे कर भेजते तो मुसीबत हो जाती पर आपकी दिलचस्पी तो गहना को समझने में थी, औरत इसी जगह तो काम आती है। या आपके सिपाही मटरू के घर घुसते तो भी हम पकडे जाते, पर भगवान् का शुक्र है कि कुछ नहीं बिगड़ा और सबकुछ ठीक-ठाक निपट गया।”
“मटरू की डिटेल कैसे पता थी?”
“गला रेतने से पहले रो रो के खुद बक रहा था साला।”
“रिपोर्ट क्या बनाऊं?”
“अज्ञात लोगों को नामजद कर दो।”
फिर फोन डिसकनेक्ट हो गया।