बरेठे को अब अपनी हिमाकत का अफसोस हो रहा था... रात दस बजे ससुरी चाय प्यास लगना इतना खतरनाक भी हो सकता था, यह उसे अब महसूस हो रहा था।
गाँव के सिरे पे बदलू का एक भट्ठी और छप्पर वाला चाय का होटल था, जो स्टेट हाइवे पे होने के कारण देर रात तक खुला रहता था। यूँ तो बरेठा पहले भी कई बार रात में गांव से भटक के इधर चला आता था पर आज उसे पछतावा हो रहा था।
आकाश पर बादलों की आवाजाही चल रही थी और नीचे नन्ही बूंदे समेटे ठंडी हवा। बदलू भट्ठी के पास सिकुड़ा बैठा था और बरेठा बाहर पड़ी लंगड़ी बेंच पर। गिलास धोने या सिग्रेट पुड़िया देने वाला बारह-तेरह साल का लड़का भी दहशत से सिमटा बदलू के पास ही खड़ा था। उनके सिवा इस घड़ी वहां और कोई नहीं था।
हुआ यूँ था कि अभी उसने दो घूंट मारे होंगे कि एक छोटे हाथी को ओवरटेक करती, उसे जबरन रुकवाती आठ-दस मोटरसाइकलें रुकी थीं और उनसे हट्टे-कट्टे चौदह पंद्रह युवक उतरे थे... उनमें से ज्यादातर के हाथ में डंडे थे।
यह सब बदलू के होटल से चार कदम की दूरी पर ही हो रहा था। गुजरती गाड़ियों की रोशनी में इतना तो उन्होंने देख लिया था कि गाड़ी में दो गाय थीं शायद।
युवकों ने गाड़ी चलाने वाले और साथ बैठे दोनों लोगों को नीचे उतार लिया और गर्मा गरमी होने लगी।
बरेठा इतना तो अनजान नहीं था कि जान न सकता कि माजरा क्या था, आज के माहौल से बेखबर थोड़े था। बहरहाल, वह धड़कते दिल से किसी अनहोनी का गवाह बनने के लिये तैयार था।
पर यह देख के उसकी हैरत की इंतेहा न रही कि पकड़े गये चालक ने फोन से किसी से बात कराई... फिर किसी बात की सहमति बनी और चालक ने अंटी में खुसा नोटों का पुलिन्दा निकाल कर उन युवकों के हवाले कर दिया।
फिर होटल पे ससेटे इंसानों के देखते दोनों गाड़ी में सवार हुए और गाड़ी यह जा वह जा। मोटरसाइकल वाले हाथ लड़ाते होटल में आ धमके।
"चाय बना रे सबके लिये।" एक ने आदेशात्मक स्वर में कहा और सब आसपास पड़ी बेंचों पर बैठ गये।
बदलू फुर्ती से अपने काम में लग गया।
"भाई जी, आप लोग कौन हो?" बरेठा ने डरते-डरते पूछा।
"यह लो," पास बैठे युवक ने पहले उपहास उड़ाने वाले अंदाज में कहा और सब हंस पड़े, फिर वह बरेठे की पीठ पर धौल जमाता हुआ बोला, "हम धर्म रक्षक हैं। धर्म की रक्षा करते हैं।"
"वह कैसे?" बरेठे को असमंजस हुआ।
"पहले यह बता कि हिंदू है या मुस्लिम?"
बरेठा अटक गया... बरेठा तो उसे कहा जाता था, असली नाम तो अब्दुल सलाम था।
"मुसलमान बताऊंगा तो मार डालोगे भाईजी।" उसने दहशत भरे अंदाज में कहा।
"काहे बे... तू यहां बैठ के गाय खा रहा है क्या बे। तेरे सवाल ने बता दिया कि कटुवा है... तो सुन कि हम कैसे धर्म की रक्षा करते हैं। देख, हम सबने फेसबुक पे अकाउंट बना रखे हैं जहां कटवों को हम जी भर के गालियां देते हैं, दुनिया भर का जहर व्हाट्सएप पे फाॅरवर्ड करते हैं आथेंटिक बता के।"
"उससे धर्म की रक्षा हो जाती है?"
"अबे आगे तो सुन... हमने गौरक्षा गैंग बना रखा हैं। गाय हमारी आस्था का विषय है और तुम साले उसे खाते हो तो हम अपनी गौमाता को तुम आदमखोरों से बचाते हैं।"
"पर भाईजी... बचाई तो नहीं। आपने तो उन्हें गाय ले जाने दी।"
"समझता नहीं न साले। हम सिर्फ उस गौमाता को बचाते हैं, जो मुल्ले ले जा रहे हों। यह तो अपने ही एक्सपोर्ट हाउस जा रही थीं।"
"हांय... पर डिरेबर तो अब्दुल था, मैं जानता हूँ भाईजी उसे।"
"अबे इसी बात का जुर्माना तो भर के गया वह, साले के पास बीस हजार ही निकले... पर इतने भी क्या कम हैं।"
"भाईजी, यह धर्म की रक्षा कोई भी कर सकता है क्या?"
"हाँ क्यों नहीं, तू भी कर सकता है... बस जहां रहते हो, वहां संख्या ज्यादा होनी चाहिये, वर्ना उल्टे पिछवाड़े में लाठी चली जायेगी।"
"कैसे भाई जी?" बरेठे की दिलचस्पी जाग उठी।
तभी बदलू का छोकरा चाय ले आया और सब एक एक गिलास थाम के चाय चुसकने लगे।
"देख... धर्म की रक्षा के लिये आज की डेट में एक स्मार्टफोन सबसे जरूरी टूल है, फिर फेसबुक, ट्विटर पे अकाउंट और व्हाट्सएप भी। तो दिन भर अपने धर्म का रायता फैलाने का, मजहबी पोस्ट पेल-पेल के बिरादरी वालों से "माशाअल्लाह-सुब्हानअल्लाह" कराने का। अपोजिट पार्टी यानि हम लोग को जी भर के जहां मौका मिले गरियाने का और उकसाने का... कि किसी तरह कोई तुम्हारे पैगम्बर का अपमान कर दे। ऐसा हो जाये तो उसका घर फूंक देने का, उसका काम नहीं लगाने का, बल्कि पुलिस में देने का और फिर उसको फांसी पे चढ़ाने की मांग करते हुए दंगा करना, आगजनी करना, दुकानें लूटना। इस तरह समझो कि धर्म की रक्षा हो गयी।"
"इससे क्या फायदा भाईजी?"
"अबे दुकानें लूटने को मिल तो रहीं। अब और क्या फायदा लेना है बे लमढग।"
"लेकिन यह तो गलत है भाईजी।"
"अबे झां$# के झींगुर, धर्म की रक्षा क्या शरीफ लोग करते हैं। शरीफ लोग धर्म को सिर्फ मानते मनाते हैं, रक्षा नहीं करते। रक्षा हम जैसे लोग ही करते हैं जो गलत को भी सही बना सकें, जमीर का गला घोंट के।"
"आप लोग जान भी लेते हैं धर्म की रक्षा के नाम पे।"
"अबे गां#$... पूरी दुनिया में साले तुम्हारे लोग धर्म की हिफाजत करते हुए लोगों के गले काट रहे, गोलियों से छलनी कर रहे, बमों से उड़ा रहे, तब तो न फैली होंगी तेरी आँखें और हमने दस-पंद्रह क्या मार दिये धर्म की रक्षा के नाम पे तो आंखें फैला रहा है कंजड़।"
उसकी भावभंगिमा देख के बरेठे की आगे बोलने की हिम्मत न पड़ी।
चाय खत्म होने को आयी तो पास बैठे वाले के पास फोन आ गया और दूसरी तरफ से जो कहा गया, उसे सुन के वह खड़ा हो गया।
"ए चलो रे... एक और शिकार आया है हाथ, राहुल ने रोक रखा है।" फोन कट करने के बाद वह जोर से बोला।
सारी टीम एक्शन में आ गयी।
"आप उसके साथ क्या करेंगे भाई जी?" बरेठे ने डरते-डरते पूछा।
"माल मिल जायेगा तो ठीक वर्ना कल अखबार में छप जायेगा और दुनिया भर के सेखुलर कल फेसबुक ट्विटर पे बिलबिलाते नजर आयेंगे।" जाते जाते वह बड़े इत्मीनान से बोला था।
फिर उनकी मोटरसाइकलें स्टार्ट हुईं और वे जिधर से आये थे, शोर मचाते उधर ही अंधेरे में गुम हो गये। बरेठा की जान में जान आयी और बदलू ने भी चैन की सांस ली... भले चाय के पैसे न मिले हों।