नारी कि शक्ति ना जानों तुम,
नारी कि भक्ति ना जानों तुम,
जिस नारी ने तुम्हें जन्म,
दिया उसकी सहनशक्ति ना जानों तुम, कभी सीता बनकर,
तो कभी दुर्गा बनकर धारण,
कियें अपने कितने रूप,
पर उनका अनेक रूप ना,
जानों तुम, हर युग में हैं,
सर्वशक्तिशाली नारी पर नारी,
को कभी समझ ना पायें तुम,
जिस तरह करते हो अपनी,
माँ का आदर, उसी तरह हर,
नारी का आदर कहां कर,
पायें तुम, हर एक नारी को,
इज्जत भी ना दें,
तुम, नारी कि.......
ख़ामोशी को कहां
समझ पायें तुम,
किया उस,
इतना जुल्म,
कि हर वक़्त,
उसी को दोषी,
बतला गयें तुम,
जब उठाई नारी,
ने अपने
खिलाफ आवाज़,
तब हर मर्द,
घबरायें तुम,
एक नारी कि,
शक्ति कब,
समझ पायें तुम.