कब तक लिखती रही में
अपने बारे में सबको बतलाती रही
ना की किसी ने कभी मेरी कदर
जबकि सबकी कदर करती रही में
ना देखा कभी मैंने खुद को किसी
आईने अपनी जगह सबको सवारती
रही में रखा हमेशा खुद को इतना
पीछे की हमेशा सबको आगे करती
रही में खो दी खुद की पहचान पर
सबको एक नया चेहरा देती रही में
कैसे कहुँ अपने बारे में बस अपनी
हाथों की कलम से अपनी पहचान
लिखती चल गई में क्या थी, क्या
बन गई में.........