नारी की शक्तियां
धरती, चांद, तारे रच
दुनिया की खङी सृष्टि कर्ता ने
जीवन की पहल शुरु
कई मुश्किलों के बाद
विस्तार न हुआ सृष्टि का
भूल कहाॅ
समझ न आयी
ओर जब आयी तो
विरची नारि
आदमी की बन संगनी
जब नारी ने उठाया जिम्मा
असंभव संभव हुआ
अलग अलग मौकों पर
नारी करती रही साबित
वह श्रेष्ठ है
अपराजेय है
पर नर की छुद्र सोच
नारी को कमतर मानता
कुछ ख्याल बन गये
बच्चे पैदा करना
घर को सम्हालना
एक मात्र काम नारी का
सच था
नारी घर सम्हाल रही बहुत अच्छे
पर कम न थी किसी बात में
फिर एक बार
ईश्वर को क्या सूझी
शायद चाहा दिखानी ताकत नारी की
सृष्टि बनाने मिटाने बाले
हार गये खुद ईश्वर
एक असुर से
नाम महिषासुर
देव भी आधीन असुर के
संसार के सारे नर
छोङ पौरुष अपना
करने लगे गुलामी उस असुर की
नर की क्या विसात
जब नारायण भी चुप थे
पर नारियां चुप न थीं
विलक्षण सृष्टि नारायण की
जमा हुईं सारी स्त्रियां
अलग अलग विद्या जानतीं
कोई तपस्विनी, श्रेष्ठ तपस्या से
एक मातृ स्वरूप
एक बृह्मचर्य धारण करती
अलग अलग ताकतें नारियों की
नारी की एकाग्रता
नारी की कर्मठता
नारी की व्यवहारिकता
नारी की विवेकशीलता
नारी का कौशल
नारी का कभी न थकना
नारी का समर्पण
नारी का पुरुषार्थ
नारी की प्रयोगशीलता
और भी कितनी अपराजेय शक्तियां
धर रूप दुर्गा माता का
जब लङीं असुर शक्ति से
संसार बचाने को
भगवान को हराने बाला असुर
हार गया नारी शक्ति से
फिर भी कह देते
नारी कमजोर है
.... जय माता दी...