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अरूणिमा सिन्हा भारत से राष्ट्रीय स्तर की पूर्व वालीबाल खिलाड़ी तथा एवरेस्ट शिखर पर चढ़ने वाली पहली भारतीय दिव्यांग हैं। वर्तमान में गरीब और अशक्त जनों के लिए वे निःशुल्क स्पोर्ट्स अकादमी की स्थापना कर रही हैं। पर्वतारोहण के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए वर्ष 2015 में भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें ‘पद्मश्री’ अलंकरण तथा भारत सरकार द्वारा पर्वतारोहण के लिए हर वर्ष दिए जानेवाले ‘तेनजिंग नोर्गे अवॉर्ड’ से सम्मानित किया। 12 अप्रैल 2011 को लखनऊ से देहरादून जाते समय उसके बैग और सोने की चेन खींचने के प्रयास में कुछ अपराधियों ने बरेली के निकट पदमवाती एक्सप्रेस से अरुणिमा को बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण वह अपना एक पैर गंवा बैठी थी। अपराधियों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए जाने के कारण एक पैर गंवा चुकने के बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवन का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया। ट्रेन दुर्घटना से पूर्व उन्होने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में राज्य की वॉलीबाल और फुटबॉल टीमों में प्रतिनिधित्व किया है।

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एवरेस्ट की बेटी

एवरेस्ट की बेटी

राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा के आगे उज्ज्वल भविष्य था। तभी एक दिन चलती ट्रेन में लुटेरों का मुकाबला करने पर लुटेरों ने उन्हें धकेलकर नीचे गिरा दिया। इस भयानक हादसे से इस चौबीस वर्षीय लड़की को अपना बायाँ पैर गँवाना पड़ा; लेकिन उसने

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