अशोक पांडे
अशोक पांडे हिंदी साहित्य जगत में एक उभरता सितारा हैं। इनका जन्म 29 नवंबर 1966 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले का ग्राम हल्दुवा में हुआ। स्कूली शिक्षा बिड़ला विद्यामंदिर, नैनिताल से। ‘देखता हूँ सपने’ शीर्षक से कविता-संग्रह 1992 में छपा। विश्व साहित्य से कविता, उपन्यास और गद्य के अनुवादों की क़रीब दो दर्जन पुस्तकें, एक कथा-संग्रह ‘बब्बन कार्बोनेट’ और महिला-विमर्श पर आधारित पुस्तक ‘तारीख़ में औरत’ प्रकाशित। लातीन अमेरिका और यूरोप के अलावा सुदूर हिमालयी इलाक़ों की सीमांत घाटियों की अनेक लंबी यात्राएँ। इनमें से कुछ के विवरण पुस्तकों की सूरत में छपे हैं जिनमें ‘थ्रोन ऑफ़ द गॉड्स’, ‘अनडॉन्टेड स्ट्राइड्स’ और ‘द सॉन्ग सुप्रीम’ प्रमुख हैं। तिब्बत की कविता पर विशेष कार्य। यात्रावृत्तों के अलावा सिनेमा, खेल, हिमालय, चित्रकला और संगीत जैसे विषयों पर लेखन पिछले तीस सालों से अख़बारों-पत्रिकाओं में छपता रहा है। चर्चित ब्लॉग ‘कबाड़ख़ाना’ और उत्तराखंड की संस्कृति पर आधारित पहली वेबसाइट ‘काफल ट्री’ के संस्थापक-संपादक। हल्द्वानी में रहते हैं। ब्लॉग - http://kabaadkhaana.blogspot.com/
लपूझन्ना
1970 के दशक के उत्तरार्ध में, उत्तर भारत के एक छोटे-से क़स्बे रामनगर में बिताए गए एक बचपन का वृत्तांत है ‘लपूझन्ना’। नौ-दस साल के बच्चे की निगाह से देखी गई ज़िंदगी अपने इतने सारे देखे-अनदेखे रंगों के साथ सामने आती है कि पढ़ने वाला गहरे-मीठे नॉस्टैल्जि
लपूझन्ना
1970 के दशक के उत्तरार्ध में, उत्तर भारत के एक छोटे-से क़स्बे रामनगर में बिताए गए एक बचपन का वृत्तांत है ‘लपूझन्ना’। नौ-दस साल के बच्चे की निगाह से देखी गई ज़िंदगी अपने इतने सारे देखे-अनदेखे रंगों के साथ सामने आती है कि पढ़ने वाला गहरे-मीठे नॉस्टैल्जि
तारीख़ में औरत
औरत ने कुदरत को सँवारकर रखने में अपनी हिस्सेदारी निभाई क्योंकि उसका जन्म ही सृजन के लिये हुआ था। उसने युद्ध नहीं रचे। उसे इसकी फ़ुरसत ही नहीं थी। तमाम तरह की विभीषिकाओं के बीच और उनके गुज़र जाने के बाद भी उसने जीवन के बीज बोए। इसके लिये उसे कभी किसी अत
तारीख़ में औरत
औरत ने कुदरत को सँवारकर रखने में अपनी हिस्सेदारी निभाई क्योंकि उसका जन्म ही सृजन के लिये हुआ था। उसने युद्ध नहीं रचे। उसे इसकी फ़ुरसत ही नहीं थी। तमाम तरह की विभीषिकाओं के बीच और उनके गुज़र जाने के बाद भी उसने जीवन के बीज बोए। इसके लिये उसे कभी किसी अत
बब्बन कार्बोनेट
"विलक्षण हाजिरजवाब एंग्री यंगमैन के साथ" हमारे नौजवानी के दिनों में सुनाई पड़ता था कि हमसे पहले वाली पूरी शहराती पीढ़ी की नाल खेत में गड़ी होती है। मतलब साहित्य के इलाके में किसान पृष्ठभूमि से आए लोगों की बहार हुआ करती थी और उनके लिए कस्बा या शहर बड
बब्बन कार्बोनेट
"विलक्षण हाजिरजवाब एंग्री यंगमैन के साथ" हमारे नौजवानी के दिनों में सुनाई पड़ता था कि हमसे पहले वाली पूरी शहराती पीढ़ी की नाल खेत में गड़ी होती है। मतलब साहित्य के इलाके में किसान पृष्ठभूमि से आए लोगों की बहार हुआ करती थी और उनके लिए कस्बा या शहर बड