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बब्बन कार्बोनेट

अशोक पांडे

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14 जुलाई 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 9789393077240

"विलक्षण हाजिरजवाब एंग्री यंगमैन के साथ" हमारे नौजवानी के दिनों में सुनाई पड़ता था कि हमसे पहले वाली पूरी शहराती पीढ़ी की नाल खेत में गड़ी होती है। मतलब साहित्य के इलाके में किसान पृष्ठभूमि से आए लोगों की बहार हुआ करती थी और उनके लिए कस्बा या शहर बड़ी अचकचायी जगह की तरह दीखता था। बाद के दिनों में कस्बे के अपने कहानीकार सामने आए जिन्होंने उसकी खनक-चमक-कुंठा और पिछड़ेपन को बड़ी तल्लीनता से उभारा। पुराने कहानीकारों के अचकाचाएपन से अलग उनके वर्णन में समझ की गहरी जमीन पर उगे तंज की भरपूर छाप दिखती है। यह किताब उसी कस्बाई मध्यवर्ग का हालात-ए-हाजिरा बयान करती है, जिसके पास थोड़ा पैसा आया है, थोड़े नखरे आए हैं, पर बहुत कुछ पुराना भी उसके दिलो-दिमाग़ को काबू किए रहता है। अगर आपका संबंध ग्रामीण जड़ों वाले कस्बे से है तो आप इस किताब को पढ़ते हुए इसकी तकरीर की लज्जत ज्यादा महसूस कर सकेंगे। 

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