सब कुछ खरीदा
सब कुछ पाया
ना मिली माँ की ममता
और बाप जैसा साया
कभी कभी सोचता हूं
कैसी है तेरी माया
छीन लिया माँ को मुझ से
क्यूँ तुझे तरस न आया
लौटा दे मेरी माँ को
तुझसे है आशा लगाया
बिन लोरी अब ना सोऊ
फिर से दे दे अंचल की छाया!
लेखक प्रमोद कुमार मोतिहारी बिहार