यूँही।हाय बाय से दुनियाँ भौसागर चले।स्नान ध्यान से तनाव मनवा चले।रहे सदा प्रकृति बहे हवा मस्तानी।मिले रोशनी सूर्य चाँद और तारो की।पहाड़ में झरना झरे, नीर मिले नदी और सागर में।खा खाना हुई आवाज बुलंद, ज़ुबान चले मनमाना। महामारी से दिल कॉप गया,अब दुनियाँ चले उतना।
एक आवाजवो जान सी अनजान,वो रोती रही आज,वो मांगे कई माफ़ी,वो लड़ती रही आज,हर इक साँस,कस्ती हुयी,आँखे बंद,ढलती हुयी,पर न ख़तम हुयी आस,वो न शांत,हर इक जान की आवाज,वो भी कह रही आज,