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बेटी

hindi articles, stories and books related to beti


बेटियाँ हैं तो कल हैबेटियों से खुशियाँ हर पल हैंबेटियाँ हैं कुदरत का अनमोल उपहारउनसे ही आगे बढ़ता है घर संसार।बेटियाँ बोझ नहीं सम्मान होती हैंहर घर की गीता और कुरान होती हैंहर पल रखती है ख़याल अपनों काऔ

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   यूँ तो ये एक आम घटना है, हमारे समाज की यह घर घर की सच्चाई है. या तो ननदें भाभी को खा जाती हैं या भाभी नन्द का जीना, घर में रहना मुश्किल कर देती है और ये सब तब जब सभी बेटियां होती हैं. ये एक आम

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   यूँ तो ये एक आम घटना है, हमारे समाज की यह घर घर की सच्चाई है. या तो ननदें भाभी को खा जाती हैं या भाभी नन्द का जीना, घर में रहना मुश्किल कर देती है और ये सब तब जब सभी बेटियां होती हैं. ये एक आम

बेटी हमारी है,हमारी ही रहेगी,उस घर का मान,और हमारी शान रहेगी।दोनों घर उसके होंगे,किसी से अनजान न होगी,बेटा एक घर का,तो बेटी दोनों घरों की पहचान होगी।           ©प्रदीप त्

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ग्राम पोसारी मैं घटित घटना पर आधारितअपनी बेटी को सरेआम तमाचा मारना और टांगे तोड़ना सिखाएं रोटी गोल बेलना वह कभी भी दिखा सकती है Kalam से क्रांति युवा लेखक BIJENDRA CHANDEL VILLAGE- RASEDA SONADIH CEMENT PLANT DISTRIC BALODABAZAR BHATAPARA CG.CONTENT -7389722188Gmail -bijendrachandel@855Gmail.c

बेटा वंश की बेल को आगे बढ़ाएगा,बुढ़ापे में मेरी सेवा करेगा और मेरा मेरा अंतिम संस्कार करमुझे स्वर्ग की सीढी चढ़ाएगा | यहाँ तक की मृत्यु उपरान्त मेरा श्राद्ध करेगाजिससे मुझे शांति और मोक्ष की प्राप्ति होगी और बेटी, बेटी तो क्या है पराया कूड़ाहै जिसे पालते पोसते रहो उसके दहेज की व्यवस्था के लिए अपने को ख

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एक आवाजवो जान सी अनजान,वो रोती रही आज,वो मांगे कई माफ़ी,वो लड़ती रही आज,हर इक साँस,कस्ती हुयी,आँखे बंद,ढलती हुयी,पर न ख़तम हुयी आस,वो न शांत,हर इक जान की आवाज,वो भी कह रही आज,

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भारत में “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” (Beti Bachao Beti Padhao) एक अति महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील मुद्दा है | बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं पर कविताओं और नारों के जरिए न केवल सरकार बल्कि आम आदमी भी अपनी बात को लोगों के समक्ष रख रहे है, जिससे समाज में फ़ैली कुरीतियां जैसे कन्याभ्रूण हत्य

ये कविता बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यकर्म के अंतर्गत दूरदर्शन हिसार में काव्य पथ कार्यकर्म में प्रस्तुत हुई है. ज्यादा से ज्यादा सुने शेयर करे और अपने दोस्तों को सुनाये . यूट्यूब पर ही सुने. धन्यवाद् आपके सुझाव का स्वागत है

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https://amitnishchhal.blogspot.com/?m=1 मकरंदअगर पुरानी मम्मी होतीं... ✒️बैठी सोच रही है मुनिया, मम्मी की फटकार कोदुखी बहुत है कल संध्या से, क्या पाती दुत्कार वो?अगर पुरानी मम्मी होतीं...अगर पुरानी मम्मी होतींक्या वो ऐसे डाँट सुनातीं?बात-बात पर इक बाला कोकह के क्या वह बाँझ बुलातीं?पापा जो अब च

बेटी को बेटा कहना उसका अपमान है की नहीं यह एक विचारणीय विषय है . हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते न की हम किस जगह पर रह रहे हैं.और कहाँ की बात कर रहे हैं. सबसे पहले तो मैं अपने आप को खुशकिस्मत मानती हूँ की आज मुझे यह अवसर मिला है की जो मैं

यह nara सुनने में ही कितना सुखद लगता है और जोश से भर denदेने वाला प्रतीत होता है . हर स्थान पर यही नारा जिससे की यह आभास होता है की हमारा समाज कितना हम बेटियों को बचाएंगे भी विकसित हो रहा है. है न हम बेटियों को बचाएंगे भी और पढ़ाएंगे भी

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°°°°°°°°°°°°°°°°°°कल फोन आया था,एक बजे ट्रेन से आ रही है..! किसी को स्टेशन भेजने की बात चल ऱही थी ।सच भी था... आजरिया ससुराल से दूसरी बार दामाद जी के साथ.. आ रही हैं; घर केमाहौल में उत्साह सा महसूस हो रहा हैं ।इसी बीच .....एक तेज आवाज आती हैं ~"इतना सब देने की क्या ज

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अगर बिन दर्द के अपने मुझे तू क़त्ल कर देता , खुदा अपने ही हाथों से ये तेरी सांसें ले लेता , जन्म मेरा ज़मीं पर चाहा कब कभी किसने जुनूनी कोई भी बढ़कर कलम ये सर ही कर देता . ................................................................ दिलाओ मुझको हर तालीम हवाले फिर कहीं कर

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ये कैसी विडंबना है कि नारी का समाज में इतने योगदान के बाद भी वो सम्मान नहीं मिला, जितनी की वो हकदार है, इसके पीछे शायद नारी ही दोषी है, जब हम बेटी होते है तो अपने हक के लिए लड़ते है, शादी के बाद जब मां बनने वाले होते है तो ' बेटे की चाह ' रखते है, ऐसा क्यों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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शहर के अस्पताल में अजय का उपचार चलते-चलते 15-16 दिन हो गएँ थे|लेकिन उसकी तबीयत में कोई सुधार देखने को मिल रहा था| आईसीयू वार्ड के सामने परेशान दीपक लगातार इधर से उधर चक्कर पर चक्कर लगा रहे थे |कभी बेचैनी में आसमान की तरफ दोनों हाथ जोड़ कर भगवान से अपने बेटे की जिन्दगी की भ

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यह रचना "बेटियाँ" प्रतियोगिता में सम्मलित की गयी है। इस पर वोट करने के लिए इस रचना के अंत में दिए गए वोट के बटन पर क्लिक करें।रचनाकार- Ravindra Singh Yadavविधा- कविता बीसवीं सदी में,प्रेमचंद की निर्मला थी बेटी ,इक्कीसवीं सदी में,

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मंदिर से निकल कर मिसेज़ मेहता ने मिसेज़ गुप्ता से बोली,- अच्छा जी चलती हूँ मैं. बहू के आने का टाइम हो गया है.- आपका ख्याल रखती है कि नहीं ? हमारी तो बिचारी सुबह सुबह निकल जाती है रात को आती है. अपना ही ख्याल नहीं रख पाती उल्टा हमें ही उसका ध्

ये केसा दौर आ गया इंसान खुद ही खुद को मार रहा है ।बेटे की अती चाहत में बेटी को तु क्यों मार रहा है ।।अपने मान समान के कारण ग़लत क़दम तु क्यों उठा रहा है ।बेटे की अती चाहत में बेटी को तु क्यो मार रहा है ।।बेटीयॉं घर की लक्ष्मी है पगले बेटीयॉं घर की शान है ।बेटियों की ही बदौलत से तो यह सारा संसार है ।

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दिल्ली से लेकर लखनऊ तक में बैठे 'माननीय' शिक्षा के लिए ढेर सारे वादे कर रहे हैं। 'सरकारी अभियान' चलाए जा रहे हैं। पर इलाहाबाद से सटे कौशाम्बी जिले के सैनी कोतवाली के वार्ड नंबर 10 बनपुरवा में रविवार को एक बेटी ने शिक्षा के लिए आवाज बुलंद की। पर उसकी यह आवाज घर के एक कोने में ही दबकर रह गई। अंत में उ

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