भाग-2 (चन्दन बाबू और चोटी वाली लड़की)
वहाँ से चले तो आए लेकिन विवाह के दिन फिर से चन्दन के माता-पिता को जाना था और जब जाना हुआ तो चन्दन भी जाने की जिद करने लगा। "अब हद ही हो गई इस लड़के की न तो यहाँ रहेगा और न ही वहाँ.." इतना कहकर उसके बापू हरखू ने उसे दो-चार तमाचे जड़े और शान्त कराकर साथ ले चले।
वहाँ सुबह 11 बजे तक पहुंच गये, बारात शाम आनी थी इसलिए सब लोग तैयारियों में लगे हुए थे। आज के दिन जो इक्का-दुक्का जो रिश्तेदार पहले नहीं आए थे वो भी आ गए थे। बच्चे भी अपने तैयारियों में लगे हुए थे। सब नये कपड़े, नये जूते और नये रूमाल एक दूसरे की देखते और खेलते।
चन्दन की नजर झुमकी पर पड़ी जो लगभग 12-13 साल की होगी। खूब सुन्दर देखने में, नये फ्राक पहने, आँखों में काजल हुआ था और सबसे ज्यादा कुछ चन्दन की नजरों को आकर्षित किया तो झुमकी की वो दो चोटियाँ जो उसे और भी खुबसुरत बना रही थी।
अब क्या था चन्दन उस लड़की को देखता रह गया। अब क्या ? अब दिन भर तो उसी के साथ खेलता रहा। बारात आई धूम-धड़ाका मचा और चली भी गई। कुछ रिश्तेदार अपने-अपने घर चले गए और कुछ रह गये। चन्दन के बापू हरखू तो चले गये और माँ के साथ वहीं रह गया। जाते वक्त उसे भी उसके बापू ले जाना चाहते थे कि कहीं यहाँ फिर से कोई तमाशा न कर दे लेकिन वो तैयार ही न हुआ।
अब दिन भर चन्दन झुमकी के साथ खेलता और किसी के साथ खेलता ही न था उसी के घर दिन भर रहता भी। और जब तो दिन बीता घर जाने की बारी आई तो भी यही रहने की जिद करने लगा, उसे झुमकी के साथ खेलने में अच्छा लगता था तो कैसे अब घर जाने को तैयार होता। लेकिन कब तक कोई दूसरे के घर रहे आखिर अपना भी तो घर है। और करता भी क्या? आना ही पड़ा, वहाँ से अपने घर। शुरू में तो कुछ दिन उदास रहता लेकिन फिर अपने में मशगूल हो गया। एक दिन स्कूल से लौटा तो वहाँ जाने की जिद करने लगा, झुमकी की जो याद आई थी। उस दिन तो नहीं गया। लेकिन एक दिन मौका पाकर घर से भाग निकला और वहाँ पहुँच गया। इधर घर पर चारों तरफ खोज-खबर होने लगी तो बाद में पता चला वहाँ चला गया है, वो भी उतना दूर पैदल ही। फिर कुछ दिन वहाँ रहा झुमकी के साथ कुछ ही समय खेल पाता, झुमकी जो स्कूल चली जाती थी और बाबू दिन भर उसका इंतजार करते रहते इसलिए दिनभर तो खेलना न हो पाता था लेकिन शाम को जरूर खेलने को मिलता। फिर एक सप्ताह बाद उसके बापू हरखू आये और लेकर उसे अपने साथ चले गये।
धीरे-धीरे लगभग तीन साल बीत गये। अब चन्दन बाबू कुछ समझदार हो गये। अब वह झुमकी कभी बात नहीं करता ना ही वहाँ जाने की और जाना भी न हुआ। हाँ! कभी-कभी झुमकी की याद आ जाती जब घर के लोग उसे झुमकी का नाम लेकर चिढ़ाते थे। और कभी घर पर कोई शादी-विवाह को लेकर बात होती तो चन्दन भी अपनी बात रखता कि उसकी शादी झुमकी से होगी।
चन्दन और झुमकी दोनों दसवीं बोर्ड की परीक्षा पास हुए, चन्दन के नम्बर तो कम थे लेकिन झुमकी अच्छे खासे नम्बरों से पास हुई थी।
उधर दसवीं बोर्ड की परीक्षा इस वर्ष पास करते ही झुमकी की शादी तय हो गई। अभी लगभग सोलह वर्ष की ही तो होगी झुमकी।
भले ही रोक है कि अट्ठारह वर्ष से कम उम्र की लड़कियों का शादी नहीं किया जा सकता है। लेकिन गाँव में तो ये कहने की बस बातें हैं, ऐसा कौन करता है? अभी भी तो कुछ शादियाँ अट्ठारह से कम उम्र की लड़कियों की तो हो ही रही हैं, दूसरा कौन पूछने वाला है? कब क्या हो रहा है? इससे भला दूसरों को फर्क क्यों पड़े? और हर दूसरा भी तो यही सोचता है ,,,, उसकी मर्जी वो जो चाहे सो करे, हम कौन हैं रोकने वाले? इसमें हमारा क्या जाता है? व्यर्थ की दुश्मनी हम क्यों मोल लें?
पता नहीं किस तरह यह बात चन्दन को पता चल गई कि झुमकी की शादी तय हो गई है और जल्द ही वो किसी और से हो जायेगी, बस इतना सुनना था अब तो सर पर बाबू ने पहाड़ ही उठा लिया। घर पर फिर से उसका एक लम्बे अरसे बाद फूलना हुआ, उसकी शादी होगी तो झुमकी से ही होगी। अब घर वाले क्या करते ?
किसी ने कहा- "अभी और बड़े हो जाओ तो शादी करना"।
"झुमकी, भी तो अभी छोटी है, फिर उसकी शादी हो रही... मेरी नहीं... मेरी शादी झुमकी से होगी.... मेरी झुमकी से शादी करवाओं...." सिसकते हुए चन्दन बाबू इतना ही कह पाये। भला उसके घर वाले करते भी क्या? उनकी मर्जी झुमकी की शादी जहाँ करे।
अब क्या झुमकी की शादी भी हो गई, यह बात पता चलते ही चन्दन का सारा गुस्सा घर वालों पर आया कि उसकी शादी इन्होन्नें मेरे से क्यों न करवाई। उस दिन तो चन्दन बाबू ने कुछ नहीं किया लेकिन अगली रात को घर से भाग निकलेंं।
क्रमश:
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