बाबू चंदन
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अनुक्रम -
1. बाबू के बचपन का किस्सा
2. चन्दन बाबू और चोटी वाली लड़की
3. वो दुलहन
4. वाह रे! विधाता
5. जो हुआ सो हुआ
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भाग-1 (बाबू के बचपन का किस्सा)
चन्दन बाहर से कमाकर दो साल पर घर लौटा। पहली बार घर से भागकर कमाने गया था। उसने ठान ली थी वह घर कभी नहीं लौटेगा, चाहे कुछ भी हो जाये। अपने इसी जिद पर तो इतने दिन शहर में टिक सका नहीं तो घर से कभी दूर गया ही नहीं था।
एक बार जब वह 14 साल का था तो अपने माँ के साथ किसी शादी में जाना हुआ। पहले दिन तो खूब आराम से खेला-कूदा और दूसरे दिन तो ऐसा हो गया कि वह किसी से ना कुछ बोलता ना कुछ खाता। "का हुआ है?,,, का चाही?,,,, अरे! कुछ त बोलऽअ?" बहुत पूछा गया पर कुछ नहीं बोला। बल्कि रोने लगा। जो भी मिठाइयाँ शादी के लिए बन रही थी, सबमें से सामने लाकर रख दिया गया फिर भी रोना शान्त न हुआ। सारे रिश्तेदार और घर के सब लोग मनाने में लगे थे, लेकिन बाबू तो ऐसे थे मानने को तैयार ही न थे। अन्त में थक-हारकर सबने वहाँ से किनारा कर लिया। मिठाइयाँ भी उनके आगे से हटाया जाने लगा तब वह झपटकर मिठाइयों पर टूट पड़े और सारा एक ही बार में खत्म कर डाला, जो लोग वहां थे देखते रह गये।
बाबू की सिसकारी मिठाईयों के खत्म होने के साथ-साथ खत्म हो गई। और फिर कुछ समय बाद खेलने चले गये।
अब सबको चैन की साँस आई, पर किसको मालूम था यह आफत उनके सिर जल्द ही फिर से मढ़ने वाली है। इस बार तो बाबू बड़ी मुश्किल से मान गये,,,,,लेकिन अब तो वो कहर बरसने वाला था,,,,, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
विवाह में अभी तीन दिन की देरी थी। बाबू शाम तक अन्य बच्चों के साथ खेलने के बाद अपनी माँ के पास आए। और किसके पास जाते, किसी को जानते न थे और ना ही किसी से लगाव।
जब हम घर से दूर होते हैं और वहाँ हमारा कोई अपना या जान-पहचान वाला पास में होता है तो उससे प्रेम और लगाव कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। और माँ तो माँ होती है।
रात को भोजन-वोजन का कार्यक्रम होने के बाद सोने की बारी आयी। आप तो जानते ही होंगे शादी-विवाह के माहौल में जो सबसे ज्यादा परेशानी होती है तो सोने की, एक कमरे में कई-कई लोगों को एक साथ सोना पड़ता है।
कुछ लोग छत पर, कुछ इस कमरे में तो कुछ उस कमरे में, बाबू चन्दन भी माँ के साथ उस कमरे में सो गये जहाँ और भी बाकी स्त्रियाँ जमीन पर पुआल के ऊपर बिछायें बिस्तर पर सो रहीं थीं।
अब क्या आधी रात को बाबू चन्दन का नया ड्रामा शुरू हो गया, खूब चिल्ला-चिल्लाकर रोते हुए - "हम घर जाएब... उउउ...,घरे जाईब..."। सबकी आँखें खुल गई। सबने समझाया, "इतनी रात को भूत पकड़ लेगा,,,, रास्ते पर सियार बैठा होगा काट लेगा.. " । लेकिन नहीं माने- "नाहीं हम जाईब,,,,ईईई,, "। कितना भी मनाया गया, "ठीक है! सुबह पहुँचा देंगे,इस समय सो जाओ" फिर भी कोई असर ना हुआ। मिठाईयाँ फिर से सामने लाकर रखी गई शायद बाबू मान जाय लेकिन इस बार तो उलटा हुआ सारी मिठाईयों को फेंक दिया। अब तो कोई उपाय ही न था। घर भी बहुत दूर था लगभग 40-45 किलोमीटर, लेकिन थक हारकर उसी रात को बाबू और उसकी माँ को बाइक से घर पहुँचाया गया।
क्रमशः
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