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जो हुआ, सो हुआ

18 सितम्बर 2021

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भाग-5 (जो हुआ, सो हुआ)

सात-आठ दिन बीते पर चन्दन घर में ना किसी से बोलता ना  घर से बाहर निकलता, बस अकेले कमरे में पड़ा रहता।
उसके पिता हरखू को तो यह राज मालूम था लेकिन लालच क्या न करवाता? सोचा थोड़े दिनों सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ठीक होने का कुछ नाम ही निशान न था। वो भी छाती पीट कर रह गये और अपने किये पर पछतावा करने लगे।
चन्दन अब तक दुलहन से एक बार भी न मिला ना उसके बारे में कुछ सोचा। उधर दुलहन भी दिन-रात सिसकती रहती, उसके अलावा वो भी क्या कर सकती थी। घर में ना कोई सुध से खाना खाता ना किसी से कोई कुछ बोलता। जैसे सब कोई किसी का शोक मना रहे हो।
इस बीच धीरे-धीरे चन्दन की माँ की तबीयत में सुधार हुआ।
     चन्दन यही सोचकर घर से बाहर ना निकलता कि कोई उसका मजाक उड़ाने लगेगा। उसी की ही चारों तरफ बाते होंने लगेंगी। सच ही है ऐसा ये तो समाज का काम है ही, भला वो न करे तो कौन करे? लेकिन एक बात ये भी है,  समाज को आपसे कुछ लेना-देना नहीं, उसे तो जो थोड़ा सुकून दूसरों की बातों से मिलता है बस उसी से मतलब है।
सामने वाला आपके बारे में क्या सोचेगा? भले ही सामने वाला आपके बारे में कुछ ना सोचे लेकिन आप जरूर सोचेंगें सामने वाला आपके बारे में यह-यह....वो-वो.... और ना जाने क्या सोचेगा? यह भी मनुष्य की प्रकृति ही है, शायद हमारे कुछ सिद्ध तपस्वियों को छोड़कर।
किसी से हरखू को पता चला-"शहर में एक डाक्टर हैं, शायद उनसे दिखाने से बात बन जाये। हाँ! खर्चा खूब लगेगा।"
हरखू ने भी जवाब दिया "अब जितने भी खर्चे लगे वो दुलहन ठीक हो जाए बस यही भगवान की कृपा होगी। आखिर वो भी तो अपनी ही है ना" ।
शाम को जब बात हरखू ने चन्दन को बताई तब एक सुकून सा हुआ। "भला बेचारी का क्या कसूर है? यह तो मेरी किस्मत ही खोटी है " यह सोचकर चन्दन ने अपने-आप को सांत्वना दिया। और आज विवाह के दस दस दिनों बाद पहली बार दुलहन के पास गया। कमरे में प्रवेश करते ही बिस्तर पर बैठी लतिया सकपकाते हुए उठकर एक किनारे खड़ी हुई और चन्दन बाबू को घूँघट की आड़ से हल्की सी देखने लगी न जाने क्या कहे?
"कल सुबह तैयार हो जाना" चन्दन ने कहा।
लतिया का ह्रदय धकक् से करके रह गया जाने कहाँ जाने के लिए कह रहे हैं, तैयार हो जाना।
"जी.." उसके मुँह से बस इतना ही निकला।
"सुबह हम शहर जायेंगे...उउ जवन...तुम्हरे दाँत में परेशानी है न....वही डाक्टर से दिखाना है।" अगले पल ही चन्दन बोला।
लतिया चुप रही। चन्दन फिर से बोला-"सब ठीक हो जाईगा,,,, उउ बढ़िया डाक्टर हैं।"
"हूँ" बस इतना ही कहकर लतिया चुप रह गयी और चन्दन कमरे से बाहर चला गया।
इस समय लगभग शाम के सात बज रहे होंगे, उसे कुछ ख़्याल आया और दस दिनों में पहली बार घर से बाहर कदम रखा। वह सीधे रामू के पास पहुँचा।
"और कहो कईसे आना हुआ,,,, महाराज जी इतने दिनों बाद दर्शन दिये" रामू चन्दन को देखते ही झट से बोल पड़ा।
दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ और बातों ही बातों में चन्दन ने रामू जो उसका दोस्त है को बताया कल शहर दुलहन के इलाज के लिए जाएगा इसलिए कुछ रुपये-पैसों की जरूरत है,,, वैसे उसके पास कुछ पैसे तो हैं , लेकिन कहीं कम न पड़ जाये इसलिए वह उसके पास आया है।
अगला दिन चन्दन दुलहन को लेकर शहर गया और दिन-चार दिनों तक रुककर इलाज करवाया फिर घर आ गया। बीच-बीच में तीन-चार महीनें एक-दो दिनों के लिए उसे शहर में और जाना पड़ा ताकि सही से इलाज हो सके। और अब सब ठीक भी हो गया। चन्दन और घर में सबने यही मन ही मन कहा- "जो हुआ, सो हुआ....ईश्वर जो भी करता है, अच्छा ही करता है।"
कहते हैं ना दुःख और सुख का बादल एक सा नहीं रहता है। कभी वह गहरा होता है तो कभी हल्का होता है। बादल-सा उसका रंग भी बदलता रहता है जैसे कभी काला, कभी नीला, कभी लाल तो कभी पीला।
यहाँ अब सबकुछ ठीक है, कई वर्ष भी बीत चुके हैं। इस समय चन्दन अखबार पढ़ रहा था लेकिन अचानक उसकी नजर एक शब्द पर जाकर रुक गयी। "मंटो" बस इतना ही पढ़ा आगे नहीं पढ़ सका, उसे आज भी मंटो नाम कूढ़ सी है, मंटो नाम से आज भी उसके रोये खड़े हो गये।
लेकिन कुछ पल "मंटो" नाम पर नजरे टिकाये रहने के बाद उसने गहरी साँस लेते हुए एक बार फिर ईश्वर का धन्यवाद किया और उस डाक्टर के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना की।

समाप्त !

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रवि कुशवाहा.......🖊

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बाबू चंदन
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एक सामाजिक व मनोरंजक किस्म का व्यंग्यात्मक लहजे में आपके सामने पेश होने जा रही है यह छोटी सी कहानी "बाबू चंदन "। जो चंदन की जिंदगी की किस्सों के सााथ-साथ उस मोड़ पर पहुँँचती है, जहाँ एक पल के लिए चंदन ठगा सा रह जाता है जिसकी अभी नयी-नवेली शादी हुई है। लेकिन कहते हैं ना किस्मत का पहिया हमेशा घूमता है, तो आगे क्या होता है? यह जानने के लिए पूरा पढ़े "बाबू चंदन"।

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