याद आई मुझे बचपन की दोस्त जो रूठ जाने पर मुझे मना लिया करती थी
खाना नहीं खाने पर खिला दिया करती थी
बीमार पड़ जाने पर मेरा खयाल रखा करती थी
माना की वो गरीब थी पर दिल की वो सबसे अमीर थी
कुछ मांग लेने पर वह कभी मना नहीं करती थी
जेब चाहे जेब ख़ाली रही हो पर मन सबका वो रख लेती थी
खेल खेल में कब बड़े हुई दोनों
कब बिछड़ गए पता ना चला
वह अपने घर चली गई एक गुड़िया सी नन्ही परी कब जिम्मेदार नारी बनी ।
बचपन की दोस्ती कभी भुलाई नहीं जा सकती है
वैसे ही अब नये दोस्त दिल बहला नहीं सकते है पर मतलब साधते रहे...